भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय के अभियान में सप्तपुरी में शामिल उज्जैयिनी भी धुरी बनती जा रही है. महाकाल लोक के बाद विश्व की पहली विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना आधुनिकता के साथ काल गणना की वैदिक पद्धति की पुनर्स्थापना मानी जा रही है..!!
उज्जैन प्राचीन काल से विश्व में काल गणना का केंद्र रहा है. वैदिक घड़ी के माध्यम से टेक्नोलॉजी का उपयोग कर भारतीय कालगणना की सनातन परंपरा को नवजीवन दिया गया है. प्रदेश की धार्मिक और आध्यात्मिक राजधानी के रूप में उज्जैन विश्वविख्यात है. अब तो उज्जैन एमपी की राजनीति की भी धुरी बन गई है. कभी पहले कोई भी मुख्यमंत्री उज्जैन में रात्रि नहीं रुकता था और अब तो महाकाल ने उज्जैन से ही मुख्यमंत्री बना दिया है.
मध्यप्रदेश में अब तक रहे सभी मुख्यमंत्री महाकाल की भक्ति और आराधना में लीन रहे हैं लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री का तो उज्जैन कर्मक्षेत्र ही है. कृष्ण की शिक्षास्थली, एमपी की राजनीति के मोहन की कर्मस्थली में ऐसा कालचक्र आया है कि सांस्कृतिक अभ्युदय और विकास के अब तक के सारे सपने और संकल्प पूरे हो सकते हैं. अभी यह शुरुआत ही है लेकिन नई सरकार बनने के बाद उज्जैन में विकास के नजरिये से जो रफ्तार चल रही है वह इस सप्तपुरी को भव्य और दिव्य स्वरूप देने में महत्वपूर्ण अवसर बन सकती है.
विक्रमादित्य वैदिक घड़ी इंटरनेट से कनेक्ट है. इसमें समय देखने के साथ ही मुहूर्त, ग्रहण, संक्रांति और पर्व तक की जानकारी भी मिलेगी. इंटरनेट और जीपीएस से जुड़ी होने से पूरी दुनिया में हर जगह के लोग वैदिक घड़ी का उपयोग कर सकते हैं. यह घड़ी मौजूद स्थान के सूर्योदय के आधार पर समय की गणना करेगी. इस घड़ी को मोबाइल और टीवी पर भी सेट किया जा सकता है. इसके लिए विक्रमादित्य वैदिक घड़ी मोबाइल एप भी तैयार किया गया है.
इस वैदिक घड़ी में वैदिक प्रतीकों को अंकों के स्थान पर बताया गया है.सनातन धर्म के देवी देवताओं के प्रतीकों को कालगणना के साथ जोड़ा गया है. इस घड़ी में 1:00 बजे के स्थान पर ‘ब्रह्म’ लिखा हुआ है. इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म एक ही है, दूसरा कोई नहीं. इसी प्रकार 2:00 बजे 3:00 बजे सभी घंटे के समय के लिए वैदिक प्रतीकों के नाम से उल्लेखित किये गए हैं. वैदिक घड़ी में मौजूदा ग्रीनविच पद्धति के 24 घंटे को 30 मुहूर्त में विभाजित किया गया है.
खगोलीय ज्योतिष और काल गणना में प्राचीन काल से उज्जैयिनी प्रमुख केंद्र रहा है. यहीं से कर्क रेखा गुजरती है. इसीलिए यहां पर प्राचीन काल में कर्कराज मंदिर स्थापित किया गया. काल के दो अर्थ होते हैं. एक समय और दूसरा मृत्यु. महाकाल को महाकाल इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था. इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर रखा गया है.
उज्जैन विक्रमादित्य की भी नगरी है. हिंदू कैलेंडर विक्रम संवत की शुरुआत भी उज्जैन से ही हुई है. विक्रम संवत की गणना इसी वैदिक घड़ी से की जाती है. विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की स्थापना उज्जैन की वेधशाला में टावर पर की गई है. वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव के विधानसभा क्षेत्र में वेधशाला आती है. उन्होंने विधायक निधि से राशि उपलब्ध करा कर टावर का निर्माण कराया था. उन्हें मुख्यमंत्री बने तो अभी बहुत कम समय हुआ है इसका मतलब है कि वैदिक घड़ी के निर्माण और उसकी स्थापना की पहल विधायक के रूप में उनके द्वारा पहले से ही की गई थी. यह संयोग है कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद वैदिक घड़ी का लोकार्पण हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका वर्चुअल लोकार्पण किया.
भारतीय ज्ञान विज्ञान परंपरा ज्योतिष को नए सिरे से महत्व मिल रहा है. भारतीय ज्ञान परंपरा में काल गणना और अंतरिक्ष गणना के इतने सटीक अनुमान उपलब्ध हैं कि आज पूरी दुनिया में उनके आधार पर वैज्ञानिक शोधकर उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं. भारत में अंतरिक्ष के क्षेत्र में दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान उतारने की जो ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है इसके पीछे भी भारतीय गणना की सटीकता ही मानी जाएगी. उज्जैन धार्मिक रूप से तो विश्व का महत्वपूर्ण केंद्र है ही लेकिन अब धीरे-धीरे विश्व धरोहर के रूप में स्थान हासिल करता जा रहा है. विक्रमादित्य वैदिक घड़ी इस विरासत को नया आधार प्रदान करेगी.
भगवान् कृष्ण आज पूरी दुनिया में भक्ति और आस्था का केंद्र बने हुए हैं. कृष्ण की शिक्षा और लीला पूरे विश्व को जोड़े हुए है. उज्जैन कृष्ण की शिक्षास्थली है. उज्जैन से कृष्ण ने जो शिक्षा ली वह आज पूरी दुनिया को प्रेरित और प्रोत्साहित कर रही है. उज्जैन और कृष्ण के सनातन रिश्तों को आधुनिकता के साथ पुर्नस्थापित करने के लिए राजनीति के मोहन ने कदम उठाए हैं. विधानसभा के अपने भाषण में मुख्यमंत्री द्वारा कहा गया था कि मध्यप्रदेश में भगवान कृष्ण से जुड़े जो धार्मिक स्थल हैं उन सबका जीर्णोद्धार और विकास किया जाएगा.
मध्यप्रदेश ऐसा गौरवशाली प्रदेश है. जहां राम और कृष्ण दोनों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं. उज्जैन में कृष्ण ने शिक्षा पाई है तो चित्रकूट में राम ने वनवास बिताया है. मध्यप्रदेश में सांची भीमबेठका और खजुराहो विश्व धरोहर स्थल हैं. उज्जैन की विक्रमादित्य वैदिक घड़ी इस धरोहर में एक कड़ी जोड़ रही है. विक्रमादित्य की नगरी अब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की नगरी बनी है.
मुख्यमंत्री के कर्मक्षेत्र आज राजनीति में प्रसिद्धि पा जाते हैं. कुकड़ेश्वर, राघोगढ़, चुरहट, जैत के कर्मक्षेत्र से निर्वाचित प्रतिनिधियों ने मध्यप्रदेश का नेतृत्व किया है. उन क्षेत्रों में हासिल विकास की उपलब्धियों पर नजर तो डालना चाहिए. इन क्षेत्रों की पहचान तो राजनेताओं के कारण ही बनी है. लेकिन उज्जैन पहले से ही विश्व प्रसिद्ध है. अब राजनीति के मोहन, विकास की अपनी दृष्टि से इसे कैसा स्वरूप देने में सफल होंगे इसका आकलन तो वक्त के साथ ही किया जा सकेगा.