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मध्यप्रदेश सरकार की नाक के नीचे 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 05 Oct

सार

कारख़ानों का अपशिष्ट बेतवा नदी में बहाया जाता है। सरकार चुप थी और है। अब यहीं बाल श्रमिकों की बदहाली उजागर हुई है..!!

janmat

विस्तार

मध्यप्रदेश की सरकार इस मामले में चुप है, आज से नहीं उस दिन से चुप है, जब राजधानी भोपाल की सीमा से रायसेन जिले में ये कारखाने लगे थे। कारख़ानों का अपशिष्ट बेतवा नदी में बहाया जाता है। सरकार चुप थी और है। अब यहीं बाल श्रमिकों की बदहाली उजागर हुई है जो समाज में गरीबी-मजबूरी की नंगी सच्चाई बयां करती  है। 

यह घटना एक खतरे की घंटी है कि जिन लोगों पर बच्चों के शोषण रोकने की जिम्मेदारी थी, वे निहित स्वार्थों के लिये कार्रवाई करने के बजाय मूकदर्शक बने हुए हैं। कुछ सप्ताह पूर्व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर की टीम ने रायसेन की एक शराब फैक्ट्री में भयावह स्थितियों में 19 लड़कियों समेत 58 नाबालिगों को काम करते हुए पकड़ा। इन बच्चों में से कई रासायनिक पदार्थों से प्रभावित भी हुए हैं। विडंबना देखिए कि इस छापे में बचाये गए 39 नाबालिग श्रमिक बाद में लापता हो गए। 

एनसीपीसीआर के अधिकारियों का कहना है कि यह सिर्फ बाल श्रम का ही मामला नहीं है बल्कि यह मानव तस्करी से भी जुड़ा है। कुछ बच्चे अन्य राज्यों से लाए गए हैं। इस मामले में जवाबदेही में घोर लापरवाही और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। 

इसके अलावा तमाम नियामक संस्थाएं भी सवालों के घेरे में हैं। जिन्होंने फैक्ट्री मालिकों से मिलीभगत करते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की। इस गंभीर मामले में ढिलाई कई सवालों को जन्म देती है। जिसका निष्कर्ष है कि बाल श्रम उन्मूलन राज्य सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं रहा है। यही वजह है कि कानून के तहत कार्रवाई होती नजर नहीं आई। जिसके चलते बाल श्रमिकों का शोषण लगातार जारी रहा।

नोबेल पुरस्कार विजेता और देश में बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी लंबे समय से भारत में बाल शोषण के खिलाफ मुहिम चलाते रहे हैं। उनकी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन और सहयोगी संगठनों की मदद से जोखिम वाले उद्योगों, कालीन उद्योग व ईंट-भट्टों से लाखों बच्चों को बचाया जा सका। लेकिन तंत्र की काहिली से संकट को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सका। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, विश्व भर में 16 करोड़ से अधिक बच्चे विषम परिस्थितियों में बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं। भारत में यह संख्या श्रमिकों का ग्यारह प्रतिशत बतायी जाती है। दरअसल, कोविड-19 के संकट ने बच्चों के शोषण को अप्रत्याशित रूप से बढ़ाया है। मां-बाप को काम न मिलने की स्थिति में बच्चों का स्कूल छूटा और वे कम उम्र में श्रमिक बनकर विभिन्न उद्योगों में काम कर रहे हैं। 

कोरोना संकट के बाद मानव तस्करी के मामलों में विश्वव्यापी वृद्धि देखी गई है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को इस संकट ने गरीबी की दलदल में धकेला है। घर की आय पर आए संकट ने बड़ी संख्या में बच्चों को स्कूल छोड़ने को मजबूर किया। जिसने बाल श्रम को बढ़ावा दिया। 

दरअसल, बालश्रम व मानव तस्करी एक संगठित अपराध के रूप में बच्चों पर संकट की वजह बना हुआ है। रायसेन का मामला अपराधियों पर कठोर कार्रवाई की जरूरत बताता है। हमें इस दिशा में गंभीर कोशिश करनी होगी तथा बच्चों के पुनर्वास के लिये प्रयास करने होंगे। ये समाज, फैक्ट्री मालिकों व सरकार की नैतिक जिम्मेदारी भी है।