राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े अनेक विभूतियों ने समय-समय पर इस बिन्दु पर अपनी चिंता भी व्यक्त की है, कुछ विश्वविद्यालय तो निम्न स्तर की गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा के चलते उन छात्रों की डिग्री दे रहे हैं जो न तो रोजगार और न ही स्वरोजगार प्राप्त कर पा रहे हैं..!!
सिर्फ़ पैसे इकट्ठे करने के लिए और छात्रों की संख्या में वृद्धि करने में तत्पर देश के अनेक विश्वविद्यालय इस वक्त अपनी अकादमिक क्वालिटी से समझौता कर रहे हैं और कोई ध्यान नहीं दे रहा है ।देश में माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के प्रसार के कारण विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है और प्रश्न यह है कि क्या शासकीय और निजी विश्वविद्यालय उन सभी विद्यार्थियों को स्थान दें, जो आगे पढऩा चाहते हैं, अथवा केवल उन्हीं को चुनकर लें जो उच्च शिक्षा से लाभ उठाने में समर्थ हों? साथ ही शिक्षा का माध्यम क्या हो, यह भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। कुछ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता भी एक समस्या है। योग्य अध्यापकों को विश्वविद्यालय में आकर्षित करना तथा उन्हें बनाए रखना कम महत्वपूर्ण नहीं है ।
राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े अनेक विभूतियों ने समय-समय पर इस बिन्दु पर अपनी चिंता भी व्यक्त की है। कुछ विश्वविद्यालय तो निम्न स्तर की गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा के चलते उन छात्रों की डिग्री दे रहे हैं जो न तो रोजगार और न ही स्वरोजगार प्राप्त कर पा रहे हैं। यह उन छात्रों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि भारत में उच्च शिक्षा के कई संस्थान हैं, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में मांग और आपूर्ति के बीच में गहरी खाई होने के कारण प्रवेश मिलना कठिन हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक अगर भारत कुछ सालों में अपने ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो (जीईआर) के 30 प्रतिशत को प्राप्त करता है तब भी 1.4 करोड़ छात्रों को किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला नहीं मिलेगा। इन अतिरिक्त छात्रों के लिए भारत को एक हजार नई यूनिवर्सिटी, 40 हजार पॉलिटेक्निक और 10 लाख नए फैकल्टी मेंबर की जरूरत होगी, जो एक बड़ी चुनौती है। जब तक इसका निदान नहीं निकलता है तब तक भारत से छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख करते रहेंगे।
हमारे विश्वविद्यालय संचालन पद्धति में कई कमियां हैं। अनेक शिक्षकों पर पढ़ाने का अत्यधिक दबाव होता है जिससे वे कई चीजों की ट्रेनिंग भी नहीं कर पाते हैं। प्रयोगशालाओं में नए अत्याधुनिक उपकरणों की कीमतों के कारण इनकी खरीद नहीं हो पाती है। अनुसंधान अनेक उच्च शिक्षा संस्थानों का हिस्सा नहीं है। इसके विपरीत विदेशी विश्वविधायलय इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि वे शिक्षण और अनुसंधान के दम पर खडे रहें। इनमें बहु-सांस्कृतिक माहौल छात्रों को ज्यादा से ज्यादा सीखने के लिए प्रेरित करता है। इससे छात्र का बर्ताव, मानसिक परिपक्वता और उसके सोचने के नजरिए का दायरा भी बढ़ जाता है।
हमारे अनेक पाठ्यक्रम ऐसे नहीं हैं कि हम रोजगार देने वालों से और स्वरोजगार की ट्रेनिंग देने वालों से जुड़े रहें, जबकि विदेशी विश्वविध्यालय लगातार सरकार और इंडस्ट्री से जुड़े रहते हैं और उन्हें भविष्य की जरूरतों के बारे में बताती रहती हैं। इस बिन्दु पर हमारे विश्वविद्यालयों की भूमिका को दोबारा परिभाषित किए जाने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी नई शिक्षा नीति लागू करने में मुख्य चुनौती है, क्योंकि इससे शोध कार्यों में कमी आएगी और विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाएगी। देश के चार करोड़ विद्यार्थियों में से केवल चार प्रतिशत केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं और बाकी के 96 प्रतिशत राज्य के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। कई राज्य विश्वविद्यालयों में 80 प्रतिशत तक सीटें खाली हैं।
आज तो यह पता नहीं होता कि उच्च शिक्षा कोर्स खत्म करने के चार साल बाद किसी छात्र को कौनसी नौकरी मिलेगी, अनेक वांछित नौकरियां तो अभी पैदा की जानी हैं। ऐप, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स, क्वांटिम कम्यूटिंग आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जो हमें हाल ही में सुनने को मिल रहे हैं। ये केवल शब्द नहीं, बल्कि ये देश के लिए आ रही नई वर्क फोर्स कीका प्रवेश द्वार भी हैं। इन शब्दों से सीधे तौर पर देश के युवाओं का भविष्य भी जुड़ा है। सुझाव है कि उपकुलपति अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग विश्वविद्यालय की गुणवत्ता और संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग में लगाएं। विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रबंधकीय व्यवस्थाओं को उत्कृष्ट बनाने के लिए सबका सहयोग और सुझाव प्राप्त करें। विश्वविद्यालय की बेहतरी के लिए नवाचार और कड़े निर्णय लेने में संकोच नहीं करें। विश्वविद्यालय देश की भावी पीढ़ी के भविष्य निर्माण का केंद्र होते हैं। वे राष्ट्र निर्माण की नींव हैं। यदि नींव मजबूत होगी, तभी भवन मजबूत और विशाल बन सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम, शिक्षण व्यवस्थाएं और वित्तीय प्रबंधन छात्रों के हित में हों।