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कमलनाथ संग कदमताल, किसका कमाल?

सार

     राहुल गांधी अक्सर चौंकाने वाले एक्शन ही करते हैं. मध्य प्रदेश में चुनाव हारने के बाद कमलनाथ को दुत्कार कर भी राहुल गांधी ने चौंकाया था. अब उनके घर जाकर दो घंटे तक ,गुफ्तगू करके फिर चौंका दिया है..!!

janmat

विस्तार

   विधानसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी और कमलनाथ के बीच हिमालय की बर्फ जम गई थी. इतने बड़े नेता को बिना बताए पीसीसी प्रेसिडेंट पद से हटा दिया गया. नए अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी गई. मीडिया रिपोर्ट्स पर भरोसा किया जाए तो कमलनाथ को मिलने का मौका तक नहीं दिया गया.

    अचानक ऐसा क्या हो गया? अंकल, कमलनाथ से राहुल गांधी का स्नेह उमड़ आया. जो सामान्य राजनीतिक चर्चाएं चल रही हैं, उसमें यही कहा जा रहा है, कि महाराष्ट्र में चुनाव है. पहले भी कमलनाथ महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़े हुए थे. शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल जैसे नेताओं के साथ उनकी दोस्ती सर्व विदित है. कमलनाथ स्वयं धनपति हैं.

    कांग्रेस के सामने फंड मैनेजर का संकट है. अहमद पटेल के निधन के बाद कोई उपयुक्त व्यक्तित्त्व गांधी परिवार को मिला नहीं है. हरियाणा की हार के बाद महाराष्ट्र, झारखंड में चुनावी बेला में कमलनाथ के साथ पींगे बढ़ाना मजबूरी लगती है. इन दोनों चुनावी राज्यों में अगर कांग्रेस को झटका लगता है, तो फिर ऐसे और कई नेताओं के भाग्य खुल सकते हैं, जो किनारे लगा दिए गए हैं. 

    मुख्यमंत्री रहते हुए भी राहुल गांधी और कमलनाथ के खट्टे-मीठे रिश्ते सुर्खियों में आते रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा में भी कमलनाथ की भूमिका औपचारिक ही बनी रही थी. बीच में तो ऐसी भी सुर्खियां सामने आई थी,कि  कमलनाथ कमल का साथ पकड़ने वाले हैं. सोशल मीडिया की डीपी तक बदल दी गई थी. मीडिया में ख़बरें चल पड़ी थी, कि कांग्रेस में दुर्व्यवहार के कारण कमलनाथ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. पहले तो इसका खंडन नहीं किया गया लेकिन बाद में इसका खंडन किया गया.

   कमलनाथ के लेवल के वरिष्ठ नेता कांग्रेस में बचे नहीं हैं. गांधी परिवार के साथ भी उनके उनके रिश्ते सौहाद्रपूर्ण रहें हैं .संजय गांधी के तो वह मित्र माने जाते थे. वह अकेले ऐसा नेता है, जो इंदिरा गांधी के बाद कांग्रेस की सभी सरकारों में मंत्री के रूप में अपनी भूमिका निभा चुके हैं. कांग्रेस की कार्यशैली ऐसे क्षत्रपों  को ही राज्यों में सर्वाधिकार देने की है, जो धनपति होते हैं. हरियाणा में भी हुड्डा परिवार को इसीलिए सर्वाधिकार दिया गया.

   मध्य प्रदेश में भी कमलनाथ को कांग्रेस की फ्रेंचाइजी जब दी गई थी तब भी धन ही मन बनाने का बड़ा कारण था. मध्य मध्य प्रदेश में 15 महीने की कांग्रेस सरकार कमलनाथ की अब तक की सबसे बड़ी राजनीति असफलता साबित हो चुकी है. कांग्रेस को एमपी में जो नुकसान उठाना पड़ा उसकी भरपाई निकट भविष्य में  संभव नहीं लगती है. कांग्रेस की कार्यप्रणाली कुछ इस तरह की है, कि जीतू पटवारी को नया अध्यक्ष तो बनाया गया लेकिन 10 महीने बाद भी उनकी कार्यकारिणी नहीं बन सकी है.

   गांधी परिवार हमेशा इसी शैली पर काम करता है. राजस्थान में अशोक गहलोत ने गांधी परिवार के फैसले का खुला विरोध किया था. कांग्रेस के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जयपुर में होटल में विधायक दल की बैठक का इंतजार करते रहे और अशोक गहलोत की राजनीतिक चलों के कारण बैठक नहीं हो पाई. हरियाणा में भी अशोक गहलोत कांग्रेस के पर्यवेक्षक थे और अब महाराष्ट्र में भी भूमिका दी गई है. यह सब धन प्रबंधन का कमाल दिखाई पड़ता है. 

   कमलनाथ के मामले में धन प्रबंधन ही कारण दिखाई पड़ रहा है. धन प्रबंधन पार्टी के लिए भी होता है और हर व्यक्ति को गुज़ारे के लिए भी धन की जरूरत होती है. वह चाहे सामान्य आदमी हो, चाहे राजनीति का कोई बड़ा व्यक्तित्व. 

   स्थिर मस्तिष्क का राजनीतिक व्यक्तित्व किसी हार जीत पर अपनी सोच और द्रष्टिकोण नहीं बदलता. मध्यप्रदेश में चुनावी हार के बाद कमलनाथ अनुपयोगी साबित हो गए थे. महाराष्ट्र में चुनाव आ गए. देश की फाइनेंशियल कैपिटल मुंबई में उद्योगपतियों का दखल होता है. राहुल गांधी और उद्योगपतियों का तो जैसे सांप नेवले का संबंध है. राहुल गांधी का कोई भी भाषण अदानी और अंबानी को गाली दिए बिना पूरा नहीं होता. कमलनाथ उद्योगपति राजनेता हैं. ऐसा कहा जाता है कि उनके देश के सभी बड़े उद्योगपतियों से अच्छे ताल्लुकात हैं. 

    मुंबई में अंबानी के बेटे की शादी में नहीं जाने को राहुल गांधी अपनी राजनीतिक ईमानदारी के रूप में हरियाणा चुनाव में भाषण देते देखे गए. कमलनाथ उस शादी में देखे गए थे. जिस नेता को अदानी और अंबानी से हेट है, उस नेता को ऐसे उद्योगपति राजनेता का सहारा लेना पड़े, जो इन उद्योगपतियों के करीब है. यह राजनीतिक पाखंड के अलावा और क्या कहा जा सकता है? उद्योगपतियों से सभी तरह का सहयोग चाहिए लेकिन सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा ऐसा प्रस्तुत करना है, जैसे उद्योगपति कोई घोटाला कर रहे हैं, और हम पाक-साफ हैं. 

    राहुल गांधी अपनी पॉलिटिकल इमेज ईमानदार बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन चौंकाने वाले उनके बयान और आचरण पाखंड को उजागर कर देते हैं. लोकसभा चुनाव के समय अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रौदा ने जब ऐसे बयान दिए थे, जिनसे  चुनाव में नुकसान हो सकता था, तो तत्काल कांग्रेस द्वारा उनसे किनारा कर लिया गया था. यहां तक कि उन्हें पद से हटाने का भी एलान कर दिया गया था. चुनाव के बाद जब हाल ही में राहुल गाँधी अमेरिका गए थे, तो पित्रौदा उनके साथ दिखाई पड़े.

   कमलनाथ को कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलती है, तो निश्चित रूप से यह राज्य के लिए प्रसन्नता की बात है. वैसे तो कांग्रेस में हमेशा मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं को ठेंगा ही दिखाया है. इतिहास पर नजर डाली जाएगी तो मध्य प्रदेश के कई नेता है, जिनको राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने यूज किया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया. अर्जुन सिंह आधुनिक काल के कांग्रेस के बहुत बड़े नेता थे लेकिन उनके साथ भी इसी तरीके का व्यवहार किया गया था, जैसा कमलनाथ के साथ किया जाता रहा है.

  कांग्रेस की यूज एंड थ्रो की कार्यशैली हमेशा से रही है. क्षेत्रीय क्षत्रपों के लिए मजबूरी होती है, कि राजनीति में अस्तित्व बनाए रखना है तो अपमान झेल कर भी कुछ ना कुछ हासिल किया जा सकता है. कमलनाथ का छिंदवाड़ा गढ़ रहा है, जो अब फिसल गया ऐसा लग रहा है.

    कमलनाथ चालीस साल से ज्यादा समय तक जहाँ से सांसद रहे आज वहां बीजेपी का सांसद नेतृत्व कर रहा है. उम्र का तकाजा सियासत में कमलनाथ के साथ अब नहीं लगता है. महाराष्ट्र चुनाव में उनकी भूमिका कांग्रेस को खुशी या गम देगी यह चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा?

    धन की क्षमता से व्यवहार आम बात है लेकिन सियासत में जनसेवा आधार होना चाहिए. कमलनाथ को लेकर राहुल गांधी के मन में जो बदलाव दिखाई पड़ रहा है, वह खटाखट फटाफट सीधे खातों में धन देने की सोच जैसा ही लगता है. वक्तव्य और आचरण विश्वसनीयता बनाते हैं.अस्थिर व्यवहार, पाखंडी राजनीति प्रदर्शित करते हैं.

    सभी अनुभवों से गुजर चुके कमलनाथ को राहुल गांधी संग नए कदमताल के लिए शुभकामनाओं के साथ यही आशा की जा सकती है, कि भविष्य में वह पाखंडी राजनीति का शिकार नहीं होंगे.