• India
  • Mon , Sep , 16 , 2024
  • Last Update 05:24:PM
  • 29℃ Bhopal, India

पश्चिम बंगाल: ऐसा क्यों होता है?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 16 Sep

सार

नाटक को विश्वसनीय बनाने के लिए इक्का दुक्का पुलिस के सिपाहियों पर भी हमला कर दिया गया ताकि नाटक में यह भाव आए कि पुलिस उपद्रवियों की भीड़ को रोकती रही, लेकिन स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर हो गई, इस तथाकथित नियंत्रण से बाहर हुई भीड़ ने उस सेमिनार हाल पर हमला कर दिया जहां उस अभागी डाक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी..!!

janmat

विस्तार

कोलकाता के आरजी कर राजकीय अस्पताल में एक डाक्टर के साथ बलात्कार के बाद उसकी अमानुषिक ढंग से हत्या कर दी गई और ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल सरकार हर हालत में अपराधियों के साथ और उनको किसी भी तरह बचाने का प्रयास कर रही है। सरकार का काम अपराधियों को दंड देना और नागरिकों के जान और माल की रक्षा करना है। इसके विपरीत पश्चिम बंगाल में सरकार अपराधियों के जान-माल की सुरक्षा के लिए तत्पर और महिला डाक्टर की जघन्य हत्या को आत्महत्या कह कर कूड़ेदान में डाल देने की कोशिश कर रही है। इतना ही नहीं, आनन फानन में लगभग सात हजार लोगों की भीड़ एकत्रित की गई जिसने अस्पताल पर धावा बोल दिया। पुलिस मूकदर्शक बन कर तमाशा देखती रही।इसे क्या कहा जाए?

नाटक को विश्वसनीय बनाने के लिए इक्का दुक्का पुलिस के सिपाहियों पर भी हमला कर दिया गया ताकि नाटक में यह भाव आए कि पुलिस उपद्रवियों की भीड़ को रोकती रही, लेकिन स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर हो गई। इस तथाकथित नियंत्रण से बाहर हुई भीड़ ने उस सेमिनार हाल पर हमला कर दिया जहां उस अभागी डाक्टर की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। मेडिकल संस्थान ने तो उससे भी ज्यादा फुर्ती दिखाई। उसने उस सेमिनार हाल के कुछ हिस्से को गिरवाकर, उस हाल का नवनिर्माण अभियान चला दिया। तब तक संस्थान के डाक्टर अपनी एक सहयोगी डाक्टर की इस अमानवीय हत्या के खिलाफ सडक़ों पर निकल चुके थे। अब तक कालेज के निदेशक डा. संदीप घोष पर चारों ओर से शक की सूईयां घूमने लगी थीं। भ्रष्टाचार से लेकर अस्पताल में लावारिस लाशों की बिक्री तक के चर्चे मीडिया में आने शुरू हो गए। यह सबको पहले से ही पता था कि घोष बाबू तृणमूल कांग्रेस में भी सक्रिय रहते ही हैं,वही घोष बाबू अब तृणमूल कांग्रेस की सक्रियता के साथ साथ घटनास्थल सेमिनार हाल के कुछ हिस्से को तोडऩे के काम में भी सक्रिय थे। तृणमूल और घोष बाबू दोनों समझ गए थे कि हालात जिस मोड़ पर पहुंच गए हैं, वहां उनका इस अस्पताल में रहना मुमकिन नहीं रहा। 

ममता की ममता की दाद देनी होगी कि उन्होंने उसे तुरंत दूसरे मेडिकल कालेज का प्रिंसिपल बना दिया। एक रहस्य अभी तक नहीं सुलझ पाया कि आनन फानन में बलात्कार स्थल पर हजारों लोगों की भीड़ किसने और कैसे इकट्ठी की। इतना तो निश्चित है कि बलात्कार और हत्या का दोषी संजय राय अपने बलबूते इतने कम समय इतनी आक्रामक भीड़ इकट्ठी नहीं कर सकता था। यकीनन इस भीड़ को बुलाने वाला गैंग कोई और था। यह गैंग अपराध के सभी सबूत खतरा लेकर भी क्यों मिटाना चाहता था? इस गैंग का संजय राय से क्या संबंध है? पुलिस ने किसके आदेश पर गैंग को बेखौफ होकर काम करने दिया?

यहां तक कि पुलिस पिटती रही लेकिन उसने प्रतिकार नहीं किया। पुलिस को यह आदेश प्रिंसिपल संदीप घोष तो नहीं दे सकता था। इतनी बड़ी उसकी औकात नहीं थी। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि भीड़ इकट्ठी करने वाला गैंग और प्रिंसिपल घोष बाबू दोनों ही किन्हीं कारणों से अपराधी संजय राय को बचाने का प्रयास कर रहे थे। किन्हीं बड़े कारणों या स्वार्थों के कारण ही ऐसा सम्भव है। इसलिए प्रश्न उठता है कि ऐसे कौन लोग हैं जिनके स्वार्थ संजय राय को बचाने में हो सकते हैं? संजय राय की गतिविधियां इस मेडिकल कालेज तक ही सीमित थीं। इसलिए जाहिर है कि वे स्वार्थ अस्पताल के अंदर ही हो सकते हैं। इस मोड़ पर प्रिंसिपल संदीप घोष शक के घेरे में आता है। 

यहीं मामला समाप्त नहीं होता। ममता बनर्जी संदीप घोष को बचाने की कोशिश करती दिखाई दे रही हैं। वे उसे विवादग्रस्त अस्पताल से पदमुक्त होने पर तुरंत दूसरे विख्यात अस्पताल में नियुक्त कर देती हैं। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी बाकायदा सडक़ पर जुलूस निकालती हैं। यह जुलूस परोक्ष रूप से उनके खिलाफ था जो प्रिंसिपल को सजा देने और उसके घपलों और आचरण की जांच की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि महिला डाक्टर को जो बलात्कार और हत्या के रूप में सजा दी गई, उसके तार कहीं न कहीं अस्पताल के घोटालों से जुड़े हैं। यह प्रश्न सचमुच आश्चर्यचकित करता है कि बंगाल में जब भी कहीं महिलाओं से बलात्कार का मामला सामने आता है तो ममता बनर्जी की सरकार अपराधी के साथ खड़ी दिखाई देती है।