देश में जीएम बीजों का नियमन दो क्रमबद्ध स्तरों पर होता है।
देश की सरकार से यह सवाल पूछना चाहिए कि किन कारणों से देश की रीढ़ कृषि में ऐसे- कैसे फैसले हो रहे हैं |एक ओर प्रधानमंत्री देश को प्राकृतिक खेती, जो आत्मनिर्भर जैविक खेती का ही दूसरा नाम है, अपनाने का आह्वान कर रहे हैं, तो दूसरी ओर उनकी ही सरकार अमेरिका जैसे चंद देशों से, जो जीएम फसलों को बढ़ावा देते हैं, जीएम खाद्य सामग्री के आयात का अब तक बंद रास्ता खोल रही है।सब जानते हैं कि भारत और अमेरिका समेत पूरी दुनिया में जैविक खेती में जीएम बीजों के प्रयोग की मनाही है, इसलिए सरकार की ये दोमुंही नीति समझ से परे है।
सबको मालूम है संशोधित जीन खाद्य सामग्री एक असामान्य खाद्य सामग्री है, इसलिए इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। इसलिए पूरी दुनिया में ही इसके नियमन की विशिष्ट व्यवस्था बनाई जाती है एवं जैविक खेती में तो इनके प्रयोग का निषेध ही है। सार्वजनिक मूल्यांकन में सुरक्षित साबित होने के बाद ही संशोधित जीन खाद्य सामग्री के प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। यह भी ज़रूरी है कि अनुमति देने के बाद भी ऐसे खाद्य पदार्थों की सतत निगरानी की जानी चाहिए। उपभोक्ता को यह भी बताना सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो खाद्य सामग्री वह प्रयोग करने जा रहा है उसमें परिवर्तित जीन से उत्पन्न सामग्री का प्रयोग किया गया है। इस दिशा में देश में कोई काम नहीं हुआ है |
प्रस्तावित विनियमों में उपरोक्त सभी बिन्दुओं की अनदेखी की गई है। प्रस्तावित विनियमों से ही यह स्पष्ट है कि वर्तमान प्रौद्योगिकी ०.०१ प्रतिशत तक जीएम सामग्री की उपस्थिति को पकड़ सकती है, परन्तु नियमों में केवल १ प्रतिशत या अधिक जीएम सामग्री के उपयोग होने पर ही इस का उल्लेख करना अनिवार्य किया गया है। इसका अर्थ है कि तकनीकी रूप से जिस स्तर तक जीएम सामग्री के प्रयोग की पहचान संभव है, उस से १०० गुना ऐसी सामग्री को नजरंदाज करने की अनुमति देना प्रस्तावित है। अमीर देशों के मुकाबले भारत में अधिकांश खाद्य सामग्री की बिक्री खुले रूप में की जाती है न कि डिब्बा बंद रूप में। इसलिए जीएम सामग्री के उपयोग का उल्लेख करना अनिवार्य होने के बावजूद अधिकांश परिस्थितियों में उपभोक्ता अंधेरे में रह कर जीएम खाद्य सामग्री का प्रयोग करने को अभिशप्त हो जायेंगे।
प्रस्तावित नियमों से प्रतीत होता है कि जीएम उत्पाद सम्मिलित खाद्य पदार्थों के सुरक्षा परीक्षण करने के अपने कोई स्वतंत्र मापदंड स्थापित नहीं किये गए हैं। इस बाबत अन्य देशों द्वारा लिए गए निर्णयों को मान लिया जाएगा। भारत में खाद्य पदार्थों की बिक्री एवं उपभोग की परिस्थितियां अमीर देशों से बिलकुल अलग हैं, इसलिए हमें अपने परीक्षण मापदंड एवं परीक्षण प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
देश में जीएम बीजों का नियमन दो क्रमबद्ध स्तरों पर होता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति से अनुमति मिलने के बाद ही भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा अनुमति दी जाती है । अब जब इन दो क्रमबद्ध स्तरों को समानान्तर व्यवस्था में बदला जा रहा है तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जीएम उत्पाद सम्मिलित खाद्य पदार्थों के नियमन की नयी व्यवस्था कम से कम जीईएसी के तहत स्थापित व्यवस्था जितनी कड़ी तो होनी ही चाहिए। बल्कि जीएम उत्पादों के प्रयोग से तैयार खाद्य पदार्थों का नियमन तो जीईएसी की प्रक्रियाओं से भी कड़ा होना चाहिए क्योंकि जीईएसी की प्रक्रियाओं में गहरी खामियां पाई गई हैं, जिसके चलते अधिकांश राज्यों ने अपने यहां नए जीएम प्रौद्योगिकी बीजों इत्यादि की अनुमति नहीं दी है।
यह भी विसंगति है एक बार अनुमति मिलने के बाद जीएम खाद्य सामग्री पर निगरानी का काम खाद्य उद्योग पर ही छोड़ दिया गया है। प्राधिकरण की ओर से अपने स्तर पर इसकी लगातार निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इसके अलावा निर्णय प्रक्रिया में हितों की टकराहट रोकने की व्यवस्था भी इसमें भी नहीं है।