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अदालतों पर “सवाल” क्या नहीं है “ज्ञान” का अकाल? भारतीय संस्कृति अब नहीं होगी “हलाल”- सरयूसुत मिश्र

सार

काशी विश्वनाथ धाम| ज्ञान व्यापी परिसर में प्रकट हुआ शिवलिंग| अदालतों ने शिवलिंग की सुरक्षा के लिए दिए आदेश| अदालतों में कार्यवाई लटकाने, अटकाने और भटकाने की तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया है| सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जिला अदालत को सुनवाई का मौका देकर सच्चाई को सामने लाने के रास्ते की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया गया है| जब तक हमारा लाभ तब तक अदालत में होता है इंसाफ| जब फैसले हमारे खिलाफ तब अदालतों के खिलाफ आवाज़| यह मुस्लिम समाज के ठेकेदारों का रिवाज़ बन गया है..!

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विस्तार

मुस्लिमों के जिन्ना ओवैसी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड चीख चीख कर कह रहे हैं कि अदालत भी न्याय नहीं कर रही है| हालाकि आम मुस्लिम अदालतों के फैसलों सर आंखों पर लेता है। अदालतों पर सवाल उठाना क्या भारतीय संविधान में अनास्था नहीं है? सर्वोच्च न्यायालय ने वाराणसी जिला अदालत को सुनवाई का अवसर देकर एक प्रकार से पूजा-स्थल कानून 1991 को आधार बनाने के प्रयास को भी नामंजूर कर दिया है|

मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा जा रहा है कि अदालत का फैसला गलत है| अदालत के फैसले पर सवाल उठाकर यह लोग यह साबित कर रहे हैं कि भारत के संविधान के प्रति उनकी कितनी आस्था है? भारतीय संविधान में आस्था नहीं, अदालत में आस्था नहीं, तो फिर क्या इस्लाम की आस्था से देश चलेगा? धार्मिक आस्था का देश तो पाकिस्तान है| भारत में भारतीय संस्कृति को हलाल करने के इरादे कभी पूरे नहीं हो सके|  

इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है, यह देख-सुन-समझ कर भी अगर मुस्लिम समाज भारत की अदालतों, देश के संविधान का सजदा नहीं करते तो फिर उनको खुदा भी जन्नत नहीं दे सकता| ताजा विवाद ज्ञानवापी  परिसर में सर्वे के आदेश के साथ चालू हुआ है| जिला अदालत ने सर्वे कराया| सर्वे में मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत सामने आए हैं|

इसे रोकने के लिए मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गया| अंततः सुप्रीम कोर्ट ने जिला अदालत  द्वारा सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया, सच्चाई से भागने के लिये अदालतों को निशाने पर लेना कहाँ तक जायज़ है?  भारत में रहने वाला हर व्यक्ति भारतीय है| भले ही कोई भी धर्म मानता हो| मजहब राष्ट्र से ऊपर नहीं है| अदालत पर सवाल उठाकर यह लोग क्या साबित करना चाहते हैं?

मुस्लिम आक्रांताओं ने केवल मंदिर ही नहीं तोड़े हिंदुओं की आस्था को भी थोड़ा और धर्म परिवर्तन कराकर ज़बरदस्ती इस्लाम कबूल कराया। सदियों बाद जब सनातन संस्कृति अपना गौरव वापस स्थापित कर रही है तब उसी के भाई बंधु विरोध में खड़े हो गए हैं।

जब ओवैसी के बेटे को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में अदालत द्वारा बरी कर दिया गया था तब हिंदुओं ने तो अदालत पर सवाल नहीं उठाया| जबकि भाषण के जो वीडियो सामने थे वह साफ-साफ भड़काऊ थे| लेकिन अदालत ने सबूतों के आधार पर फैसला दिया|

भारत की बहुसंख्यक जनता ने स्वीकार किया| तब ओवैसी और उनके बेटे अदालत को अल्लाह की अदालत मान रहे थे| आज जब फैसला खिलाफ होता नज़र आ रहा है तो अदालतों पर यह कहकर आरोप लगा रहे हैं कि अदालतें भी अन्याय कर रही हैं| यह कैसा  दोगलापन है!

यह कोई पहला अवसर नहीं है जब कुछ मुस्लिमों द्वारा भारतीय अदालतों पर सवाल खड़े किए गए हैं| इसके पहले भी शाहबानो मामले में जब सर्वोच्च अदालत ने तलाक के मामले में गुजारा भत्ता के संबंध में आदेश दिए थे, तब उस फैसले का विरोध किया गया था| यह विरोध कितना आक्रामक था, इसकी कल्पना इस बात से की जा सकती है कि तत्कालीन केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में कानून लाकर अदालत के फैसले को बदल दिया था|

अब देश में ऐसे हालात नहीं है कि तुष्टीकरण के लिए अदालती फैसलों को बदला जा सके| यह बात  समझना बहुत जरूरी है| शायद अदालतों पर सवाल उठाने की प्रवृत्ति इसीलिए बढ़ी क्योंकि पहले की सरकारें तुष्टीकरण के लिए अदालतों के आदेशों को भी बदलने की सीमा तक चली जाती थी|

मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का मामला भी अदालत ने सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है| मथुरा में कृष्णजन्म भूमि के दर्शन जिन्होंने भी किए होंगे, उन्होंने जन्मस्थान से लगी शाही मस्जिद को देखा होगा| यह मस्जिद साफ तौर पर कृष्ण जन्मभूमि का हिस्सा दिखाई पड़ती है|

सदियों से लोग अपने सांस्कृतिक वैभव की वापसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं| अदालतों ने कोई एक दिन में सुनवाई के लिए इन्हें मंजूरी नहीं दे दी है| वर्षों से मुकदमे चल रहे हैं| जब दस्तावेज और प्रमाणों में अदालतों ने यह देखा कि मामले में गहन परिक्षण और सर्वे करना जरूरी है, ताकि सच सामने आ सके, इसलिए सुनवाई की जा रही है|

ज्ञानवापी में भी यही हो रहा है| बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए जो भी आस्थावान व्यक्ति जाता है उसका दिल ज्ञानवापी परिसर की ओर देखकर दुख और संवेदना से भर जाता है| बहुसंख्यक हिंदू अपने देश में ही अपने सांस्कृतिक इतिहास की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहा है| जिस धार्मिक आधार पर देश को पहले बांटा गया ठीक उसी तरह का कुचक्र आज फिर रचा जा रहा है।

क्या आजादी के साथ भारत जहां से चला था फिर वहीं पहुंचाने की कोशिश की जा रही है?क्या पाकिस्तान, तालिबान और विदेशी संस्कृति के समर्थक सनातन संस्कृति को बाधित करने की कोशिश करते रहेंगे? जिस संस्कृति को बाबर, शाहजहां, औरंगजेब और अकबर नहीं मिटा सके उस संस्कृति को अब तो कोई छू भी नहीं सकता है|

ज्ञानवापी में तीनों गुंबद के नीचे मंदिर के साफ-साफ साक्ष्य सर्वे रिपोर्ट में सामने आए हैं| मस्जिद की दीवारों पर शेषनाग और कमल के निशान, स्वास्तिक चिन्ह, घंटियां और ऐसे न मालूम कितने सबूत मिले हैं जो मंदिर होने का दावा मजबूत कर रहे हैं| कुंड में मिले शिवलिंग की मूर्ति और उसी ओर नंदी विराजमान की स्थिति होने के बाद अब क्या कोई संदेह बचा है कि वहां मंदिर नहीं था?

इस पर सिर्फ कानूनी फैसला आना बाकी है। दोनों पक्षों को अदालती फैसले का इंतजार करना चाहिए। मस्जिद में सनातन संस्कृति के चिन्ह क्या मुस्लिम पक्ष को नहीं दिखाई पड़ रहे हैं? जो चिन्ह हैं वह तो सबको दिखाई पड़ रहे हैं| लेकिन अगर कोई देखना ही नहीं चाहे और ऐसे विवादों का उपयोग तुष्टीकरण के प्रतीक के रूप में करे तो फिर समस्या कैसे सुलझेगी?

भारत में न्याय व्यवस्था पंच परमेश्वर की अवधारणा पर आधारित है| अदालतों के न्याय को ईश्वर का न्याय माना जाता है| भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति अदालतों  के फैसलों पर सवाल नहीं उठाता| उस पर विश्वास नहीं करता तो उसकी एक प्रोसेस है|  

फैसले से असंतुष्ट पक्ष ऊपरी अदालतों में जा सकता है, लेकिन अंतिम फैसले को तो सब को मानना ही पड़ेगा| यह सच जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाए उतना ही समाज और देश हित में होगा| ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ पर्सनल बोर्ड और ओवैसी द्वारा अदालती फैसलों पर सवाल उठाना निंदनीय है|