देश की रक्षा करते हुए भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान दिया था, यह ठीक है कि सरदार पटेल ने बहुत पहले ही प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को बाकायदा एक पत्र लिखकर आगाह किया था कि चीन भारत पर हमला कर सकता है..!!
इस बात से हर भारतीय परिचित है कि भारत पर चीन ने 1962 में हमला किया था और लद्दाख व अरुणाचल प्रदेश में भारत की बहुत सी जमीन पर कब्जा कर लिया था। देश की रक्षा करते हुए भारतीय सैनिकों ने अपना बलिदान दिया था । यह ठीक है कि सरदार पटेल ने बहुत पहले ही प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को बाकायदा एक पत्र लिखकर आगाह किया था कि चीन भारत पर हमला कर सकता है। तिब्बत के उस समय के शासक दलाई लामा भी जब महात्मा बुद्ध की पच्चीस सौंवी जयंती के अवसर पर भारत आए थे, तो चीन को लेकर परोक्ष रूप से सावधान कर गए थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वतीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने भी चीन की नीयत पर शंका जाहिर की थी, लेकिन नेहरु, जो स्वयं को उन दिनों अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मानते थे, इन सब चेतावनियों को नकारते हुए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा लगाते रहे और चीन के नेताओं को बुलाकर स्कूलों के बच्चों के हाथ में चीन का झंडा थमा कर उनका स्वागत करते रहे। इस सबका परिणाम यह हुआ कि चीन ने 1962 में भारत पर हमला कर दिया और भारत को शिकस्त दी। सरकार ने बहुत ही होशियारी से शिकस्त की जिम्मेदारी भारतीय सेना के गले में बांधनी चाही तो जनता ने इसका विरोध किया। लोगों का कहना था कि भारत की सेना के शौर्य का प्रदर्शन तो द्वितीय विश्व युद्ध में दुनिया ने देखा था। यह सरकार की नीतियों की पराजय थी। उस समय भी चीन के इस हमले को लेकर भारत में विवाद शुरू हो गया था। उधर सीमा पर भारतीय सेना और चीनी सेना युद्धरत थी, इधर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया में तो बाकायदा युद्ध ही छिड़ा हुआ था। कम्युनिस्ट पार्टी में यह युद्ध इस बात को लेकर हो रहा था कि हमला किसने किया? एक ग्रुप का कहना था कि चीन ने भारत पर हमला किया, लेकिन दूसरे ग्रुप का कहना था कि हमला भारत ने चीन पर किया।
‘भारत ने चीन पर हमला किया’ कहने वालों में ज्योति बसु नम्बूदरीपाद और पंजाब के हरकिशन सिंह सुरजीत शामिल थे। इस ग्रुप ने सीपीएम के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली थी। उधर चीन के हाथों मिली पराजय के बाद भी नेहरु ने चीन की तरफदारी करनी नहीं छोड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की शमूलियत और उसे वीटो पावर दिए जाने की वे अंत तक वकालत करते रहे। उन दिनों विश्व की जिस प्रकार की दो ध्रुवीय राजनीति चल रही थी, उसमें भारत को प्रस्ताव दिया गया था कि यदि वह चीन की पूंछ छोड़ दे, तो उसे सुरक्षा परिषद में स्थान दिया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस की चीन के साथ उस समय भी क्या सांझेदारी थी, इसे आज तक कोई नहीं समझ सका। इसे काल की न्यारी गति ही कहना चाहिए उस समय के बड़े कांग्रेस नेता और केन्द्रीय मंत्री नटवर सिंह, जिन्हें इस बात का बहुत अभिमान था कि वे चीनी भाषा चीनियों से भी बेहतर जानते हैं, पंचशील को जिंदा करने के लिए बीजिंग के चक्कर लगाने लगे। खैर भारत के लोग सब जानते हैं और यह भी जानते हैं कि चीन के सत्ताधारी किस प्रकार के हैं।
अब कांग्रेस ने एक बार फिर चीन का मामला उठाना शुरू किया है। सब जानते हैं कि भारत के विरोध में इस समय चीन और पाकिस्तान घी-शक्कर हैं, लेकिन जब भी कहीं भारत-पाकिस्तान या फिर भारत-चीन की भिड़ंत होती है तो कांग्रेस एकदम अपने बनावटी खोल से निकल कर अपने असली रंग में दिखाई देने लगती है। आतंकवादियों के अड्डों को खत्म करने के लिए जब भारतीय सेना ने बालाकोट पर सर्जिकल स्ट्राइक की तो कांग्रेस ने एकदम से उसे गप्प करार दिया। उसने कहा, ऐसा हुआ ही नहीं, सेना सबूत दिखा दे। सेना की मुसीबत यह है कि उसे दुश्मन पर हमला कर भारत को सुरक्षित भी रखना होता है और उसके लिए कांग्रेस को सबूत भी दिखाना होता है।
पता चला मामला कहीं और ज़्यादा गहरा है। सोनिया गांधी परिवार के एक ट्रस्ट राजीव गांधी फाऊंडेशन को चीन से पैसा भी मिलता रहा है। जैसे-जैसे चुनाव में कांग्रेस के लिए करो या मरो जैसी हालत बन रही है, वैसे-वैसे कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए अपने तरकश का अंतिम हथियार भी इस्तेमाल कर लेना चाहती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने 1962 में भारत पर चीन द्वारा किए गए हमले को ‘अलेज्ड अटैक’ करार दिया है। इसका अर्थ है कि सचमुच हमला नहीं हुआ था, बल्कि लोक मानस में ऐसा कहा जा रहा है।