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क्या खाएँ, कैसे और कब खाएँ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sun , 22 Feb

सार

एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा विभिन्न उम्र वर्ग और अंचल के लोगों के लिए प्रमाण-आधारित और तथ्यात्मक खुराक निर्देशावली जारी करना स्वागत योग्य है। लगभग एक सदी से एनआईएन (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन) भारत में पौष्टिकता और खाद्य संबंधी अनुसंधान कार्य में लगा है और उसके पास इस विषय में ज्ञान का भंडार है..!!

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विस्तार

सरकार पता नहीं क्यों, बेसुध है, भोजन और पौष्टिकता पर कही अधिकांश बातें भ्रामक और झूठी साबित होती हैं। माजरा यह है कि एक ओर खाद्य पदार्थ उत्पादक कंपनियां और घर तक व्यंजन पहुंचाने वाले एप्प आधारित सेवा प्रदाता उपभोक्ता को यकीन दिलवा रहे हैं कि घर का खाना एक पाप है। वहीं फूड-ब्लॉगर हर ऐरे-गैरे रेहड़ी-ढाबे वाले के चीनी, नमक और वसा से भरे ऊलजलूल व्यंजनों को ‘असली स्वाद’ और ‘स्वर्गिक’ बताकर महिमामंडित कर रहे हैं। स्वयंभू पौष्टिकता विशेषज्ञ और मशहूर चेहरे अंजान उपभोक्ता को खान-पान का नया चलन बताकर उलझा रहे हैं । फैक्ट्री में बने खाद्य उत्पादों पर ‘स्वास्थ्यकर’ व ‘ताजा’ का ठप्पा लगाकर बेचा जा रहा है जबकि सेहत- ताजगी से दूर-दूर तक वास्ता नहीं है।

निस्संदेह, एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा विभिन्न उम्र वर्ग और अंचल के लोगों के लिए प्रमाण-आधारित और तथ्यात्मक खुराक निर्देशावली जारी करना स्वागत योग्य है। लगभग एक सदी से एनआईएन (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन) भारत में पौष्टिकता और खाद्य संबंधी अनुसंधान कार्य में लगा है और उसके पास इस विषय में ज्ञान का भंडार है। पौष्टिकता संबंधी लगभग सभी राष्ट्रीय कार्यक्रम जैसे कि एकीकृत बाल विकास योजना, मिड-डे मील योजना और साल्ट आयोडाइज़ेशन के अलावा पौष्टिकता की कमी के उत्पन्न रोगों का निदान करने वाली योजनाएं एनआईएन द्वारा दिए वैज्ञानिक शोध आधारित परामर्श पर आधारित है। हाल ही में जारी खुराक संबंधी नवीनतम निर्देशावली इस समृद्ध विरासत का एक हिस्सा है।

सरसरी तौर पर देखने पर 17 निर्देशों वाला यह परामर्श पुरानी बातें और साधारण सा लगता है, मसलन, विभिन्न भोज्य पदार्थों से युक्त खुराक स्वास्थ्यकर होती है, फल और सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करें और वसा का उपयोग न कम, न ज्यादा मात्रा में करें। इस निर्देशावली की असली ताकत तो प्रत्येक निर्देश भारत के संदर्भ में प्रमाण आधारित होना है। इस संहिता में प्रत्येक आयु-वर्ग के स्वास्थ्य को प्रोत्साहन और बीमारियों की पूर्व-रोकथाम पर जोर दिया गया है, इसमें जहां एक ओर विशेष ध्यान शिशुओं, स्तनपान करवाने वाली महिलाओं और बुजुर्गों पर है तो वहीं अन्य अवयवों की भूमिका जैसे कि शारीरिक गतिविधियां, सुरक्षित पेयजल, साफ-सफाई और पर्यावरणीय पहलुओं पर भी है।

यह खुराक परामर्श  भोजन वर्ग और आम भारतीय की खुराक एवं खाद्य अवयवों को आधार बनाकर तैयार किया गया है, जैसे कि, अनाज, दालें, दूध, सब्जियां और फलों का समुचित मात्रा में समावेश कर खुराक तय करना। इस दस्तावेज़ का एक अहम हिस्सा है खाद्य उत्पादों पर लगे लेबल को सही ढंग से पढ़ना और समझना सिखाना। इसमें प्रचलित भ्रामक दावों की असलियत समझाई गई है, जैसे कि पूर्ण प्राकृतिक, असली फल या रस युक्त, पूर्ण अऩाज (मिल्लेट), चीनी-मुक्त, कॉलेस्ट्रॉल रहित, स्वास्थ्य-मित्र, जैविक, कम-वसा युक्त इत्यादि अर्धसत्य शब्दों का प्रयोग करना। अतएव लोगों के मन में बैठायी गई गलत धारणा के आलोक में एनआईएन जैसे प्रमाणिक संस्थान द्वारा लेबल को सही अर्थों में समझाना बहुत महत्वपूर्ण बन जाता है।

देश के समक्ष जहां कुपोषण और अल्पपोषण रूपी समस्या है तो दूसरी ओर मोटापा और अति-मोटापा। अनुमान है कि भारत में बीमारियों के कुल बोझ के पीछे 56.5 प्रतिशत कारक गलत खुराक है। व्याधियों में अधिकतर हिस्सा मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग का है। शारीरिक गतिविधियों में बढ़ोतरी के साथ स्वास्थ्यकर भोजन लेने से हृदय संबंधी अवस्था, रक्तचाप और मधुमेह टाइप-2 जैसी बीमारी को काफी हद तक घटाया जा सकता है। एनआईएन का सर्वेक्षण बताता है कि 1-19 साल आयु-वर्ग में काफी संख्या अब उनकी है जिनमें उम्र से पहले गैर-संक्रमित रोग जैसे कि मधुमेह और उच्च-रक्तचाप देखने को मिल रहे हैं। कुपोषित एवं अल्प-पोषित और सामान्य वृद्धि वाले बच्चों की आधी संख्या में मैटाबॉलिक बायोमार्कर्स का मिलना चिंता का विषय है।

हमारी रोजमर्रा की खुराक मूलतः नाकाफी है। मसलन, भारतीयों की रोजाना की खाद्य ऊर्जा जरूरत (2000 कैलोरी) में सामान्यतः ग्राह्य भोजन में अनाज (चावल, गेहूं, मोटा अन्न) की मात्रा कायदे से 45 प्रतिशत तक होनी चाहिए, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इनका अंश 50-70 प्रतिशत तक है। एनआईएन का कहना है कि जनसंख्या के बड़े भाग में माइक्रोन्यूट्रेंट-सघन पदार्थ (अनाज, दालें, फलियां, मेवा, ताजा सब्जी, फल इत्यादि) का सेवन अनुशंसित स्तर सेे कम है। सीमित उपलब्धता और दालों एवं मांस की ऊंची कीमतें लोगों को गेहूं-चावल जैसे आम अनाज पर निर्भर रहने को मजबूर करती हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्यप्रद विकल्पों की अपेक्षा अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, बहुत अधिक वसा, नमक और चीनी युक्त खाद्य वस्तुओं का मूल्य अधिक वहन योग्य और सुलभ हो गया है। ऐसे उत्पादों का ताबड़तोड़ विज्ञापन और प्रचार की तरकीबें बच्चों- बड़ों की भोजन संबंधी प्राथमिकताओं को प्रभावित कर रहे हैं।हमें अपनी सार्वजनिक नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है ताकि खुराक संबंधी दिशा-निर्देश लोगों के लिए वास्तविक विकल्प बन सकें।