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जब चलता न्याय का डंडा, तब टूटता माफिया का हथकंडा

सार

कोई राजनेता भी हो और अपराधी भी हो तो उसके माफिया होने की राह को रोकना बहुत मुश्किल होता है. प्रयागराज के बाहुबली राजनेता और माफिया दशकों तक राजनीतिक संरक्षण में अपराध की बुलंदियों पर पहुंचने वाला अतीक अहमद आज अपने अंत को पहुंच गया है. अदालत ने उसे उमेश पाल के अपहरण और वसूली के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है.

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विस्तार

अतीक अहमद  ने इसी मामले में कानूनी लड़ाई से पीछे हटने के लिए दबाव बनाने में असफल रहने पर पिछले महीने ही उमेश पाल की खुलेआम प्रयागराज में हत्या कराई. इस हत्या के मामले में अतीक अहमद नामजद आरोपी है. उसकी पत्नी और बेटों पर भी इस हत्याकांड में शामिल होने के आरोपों की जांच चल रही है. उमेश पाल न्याय के लिए नहीं लड़ते तो शायद उनकी जान नहीं जाती लेकिन अन्याय और अपराध से लड़ने वाला मनुष्य भी ईश्वर ही बनाता है.

अदालत में अतीक अहमद रोया. ऐसी खबरें सुनकर उसके प्रति दया भाव नहीं आना चाहिए क्योंकि उसने न मालूम कितने बेगुनाहों को दंडित और प्रताड़ित किया है. चार दशक से ज्यादा समय से अपराधों में लिप्त अतीक अहमद कानून से आंख मिचोली करता रहा. अगर उत्तर प्रदेश में सिस्टम अपराधियों की कमर तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध नहीं होता तो शायद इस माफिया के अंत के लिए अभी और इंतजार करना पड़ता.

उत्तरप्रदेश में राजनीति और अपराध का पुराना गठजोड़ रहा है. जब से राज्य में क्षेत्रीय दलों की राजनीति प्रभावी हुई तब से अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करना आसान होता गया. पूरे राज्य में माफियाओं का बोलबाला कायम हो गया. राजनीतिक दल माफियाओं को संरक्षण शायद इसलिए देते हैं कि वह केवल अपनी सीट पर विजय प्राप्त नहीं करते बल्कि आसपास की सीटों पर भी दल को लाभ पहुंचाने की क्षमता रखते हैं.

जिस केस में अतीक अहमद को उम्र कैद की सजा मिली है वह घटना 2006 की है लेकिन उस समय जो भी राजनीतिक सत्ता राज्य में थी उसमें अतीक का इतना दबदबा था उसके खिलाफ एफआईआर तक नहीं लिखी गई. साल 2007 में जब उस राजनीतिक दल की सत्ता अपदस्थ हुई और दूसरे क्षेत्रीय दल की सरकार स्थापित हुई तब यह एफआईआर लिखी जा सकी.

जांच और न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता सर्वविदित है. गवाह, सबूतों, पेशियों के जंजाल में इतने समय बाद यह वक्त आया जब इस माफिया को उसके अट्टहास के इलाके में ही आंसू बहाना पड़ा. एक समय था जब उसके खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार नहीं था. अदालत में मुकदमे लड़ने के लिए वकील मिलना भी कठिन होता था. इसी आंख मिचोली में इतने लंबे समय तक यह अपराधी बचा रहा.

उत्तरप्रदेश में वर्तमान सिस्टम को जनता का भरपूर समर्थन मिलने के पीछे कानून का राज स्थापित करने में उसकी भूमिका को माना जाता है. जब माफिया यह कहने लगे कि उनको दूसरे राज्य की जेलों में ही रखा जाए क्योंकि उत्तरप्रदेश में पुलिस प्रशासन उन्हें मरवा सकता है. पुलिस वाहन में अपराधी विकास दुबे की शिफ्टिंग के दौरान गाड़ी पलटने से हुई मृत्यु के बाद तो उत्तर प्रदेश के अपराधियों में एक खौफ जैसा बन गया है कि कहीं गाड़ी पलट न जाए.

अपराध और माफिया की जब बात आती है तो लोग सामान्य रूप से यह सुनाने में परहेज नहीं करते कि यूपी में गाड़ी कहीं भी और कभी भी पलट सकती है. अतीक अहमद को जब साबरमती जेल से इस मुकदमे के फैसले के लिए प्रयागराज की अदालत ले जाया जा रहा था तब भी उसके परिवार की ओर से ऐसा कहा जा रहा था कि उसकी रास्ते में हत्या हो सकती है. उसके परिवार के लोग पूरे रास्ते में साथ-साथ इसलिए चलते रहे कि उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि उनके साथ कोई दुर्घटना न हो जाए. जो माफिया डर का ही धंधा करते हैं, डर के भरोसे ही अपना साम्राज्य बढ़ाते हैं, उन्हें आज यूपी में डर लगने लगा है यह सिस्टम की बड़ी सफलता मानी जाएगी.

उमेश पाल की हत्या हुए डेढ़ माह के लगभग हुए हैं. 2007 से जो मुकदमा चल रहा था अगर उसमें समय से कार्रवाई सुनिश्चित हुई होती तो शायद उनके जीवित रहते यह फैसला आ जाता. न्याय में देरी न्यायिक व्यवस्था की बड़ी कमजोरी मानी जाती है. सहज सुलभ और त्वरित न्याय के लिए व्यवस्थाओं में सुधार आज समय की आवश्यकता है. इस दिशा में सामूहिक प्रयास किए जाएंगे तो निश्चित ही सार्थक और कारगर परिणाम सामने आ सकते हैं.

राजनेता और अपराधी एक दूसरे का संरक्षण करते हैं, यह कोई छिपी हुई बात नहीं होती है लेकिन ऐसा राजनेता जो स्वयं अपराध में शामिल हो वह जनता का शोषण करने में आगे दिखाई पड़ता है. अतीक का अतीत आज उसे अंत के करीब ले आया है. उसने अपने जीवन में जो चुना था उसकी नियति आज वहीं पहुंच गई है.

अभी तो यह पहली सजा है. अब तो मुकदमों और सजाओं का सिलसिला बढ़ता ही जाएगा. अभी तो उमेश पाल के अपहरण में उम्र कैद मिली है अब उसकी हत्या का मामला जब सजा के लिए आएगा तो फिर क्या अतीक इस दुनिया में बच पाएगा? जैसी करनी वैसी भरनी.  किसी भी संरक्षण में थोड़े समय तो बचा जा सकता है लेकिन हर समय बचे रहना इस जगत में नामुमकिन है.