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देश में परीक्षाएँ कब पवित्र होंगी?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Mon , 06 Jul

सार

सर्वोच्च अदालत में भी एनटीए, नीट परीक्षा के मामले विचाराधीन हैं, जिनकी सुनवाई 8 जुलाई को है। सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज कर पेपरलीक और उनके पीछे के नेटवर्क की जांच शुरू कर दी है..!!

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विस्तार

राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) और नीट के तहत परीक्षाओं को लेकर पूरे देश में बहस जारी है। वास्तव में परीक्षा की जो पवित्रता भंग की गई है, लाखों युवाओं के करियर और भविष्य अधर में लटक गए  हैं, ये बात यहीं तक सीमित नहीं हैं। एनटीए एक भ्रष्टाचारी और कदाचारी नेटवर्क की सांठगांठ का ‘महाघोटाला’ है। पृष्ठभूमि में परीक्षा-माफिया सक्रिय है। सिर्फ पेपरलीक और सॉल्वर गैंग की ही साजिशें नहीं हैं, बल्कि ‘बड़ी मछलियां’ भी हैं, जिनके बच्चों के लिए नीट परीक्षा से कुछ दिन पहले भी एनटीए की ऑनलाइन खिडक़ी खोली गई थी, ताकि वे परीक्षा के लिए अपने पंजीकरण करा सकें।

उस दौर में 24,000 से अधिक पंजीकरण कराए गए। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि फरवरी और मार्च में एनटीए की खिडक़ी खोली गई थी, तब इन लोगों ने पंजीकरण क्यों नहीं कराया? नीट की डॉक्टरी प्रवेश परीक्षा की धांधलियां सामने आ रही हैं। सवाल है कि जो माता-पिता अपने बच्चे की परीक्षा पास कराने के लिए 40 लाख रुपए प्रश्न-पत्र के लिए खर्च कर सकते हैं, क्या वे देश में ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ पैदा करना चाहते हैं? 

नीट प्रकरण के अलावा, यूजीसी नेट, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और नीट-पीजी परीक्षाएं भी रद्द या स्थगित की गई हैं। इस तरह 37 लाख से अधिक युवाओं के भविष्य घोर अनिश्चित हो गए हैं। यह कोई सामान्य बात नहीं है। आखिर वे युवा कब तक परीक्षाएं देते रहेंगे? उम्र भी फिसल रही है, लिहाजा नौकरी की भी अनिवार्यता है। इन बर्बादियों का सवाल और आरोप एनटीए पर ही क्यों है? यह केंद्र सरकार को भी सोचना चाहिए और एनटीए को खंगालना चाहिए।

एनटीए की प्रक्रिया, परीक्षा-प्रणाली, आउटसोर्स की मजबूरी, विशेषज्ञता के अभाव और मूल में भ्रष्टाचार आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं कि इस संस्थान को ही समाप्त करने की मांगें की जा रही हैं। युवाओं के विरोध-प्रदर्शन इतने उग्र और व्यापक हो गए हैं कि एनटीए के महानिदेशक सुबोध कुमार सिंह को हटा कर एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी प्रदीप सिंह खरोला को इस पद का दायित्व सौंपना पड़ा है।

परीक्षा-प्रणाली और उसके ईमानदार, पेशेवर तंत्र को आईएएस लॉबी के हवाले करना कोई सार्थक समाधान नहीं है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक विशेष समिति का गठन किया है। बेशक उसमें महाविशेषज्ञ किस्म के महाबौद्धिक चेहरे शामिल हैं, लेकिन वे एनटीए की तकनीक, परीक्षा-प्रविधि और अंतर्विरोधों के समाधान नहीं दे सकते। यह उनकी विशेषज्ञता से बिल्कुल अलग क्षेत्र है। समिति को दो माह का समय दिया गया है। सर्वोच्च अदालत में भी एनटीए, नीट परीक्षा के मामले विचाराधीन हैं, जिनकी सुनवाई 8 जुलाई को है। सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज कर पेपरलीक और उनके पीछे के नेटवर्क की जांच शुरू कर दी है।

कुछ गिरफ्तारियां भी की गई हैं। सीबीआई जांच का निष्कर्ष क्या होगा और कब आएगा, वह भी अनिश्चित है। केंद्र सरकार ने एक कानून भी लागू किया है। बेहद गंभीर सवाल है कि अनिश्चितताओं के इस दौर में युवा छात्रों का क्या होगा? नीट के अभ्यर्थी भी विभाजित हैं। क्या सफल युवाओं को उनके मेडिकल कॉलेज आवंटित किए जाएंगे या नीट परीक्षा का परिणाम ही रद्द कर दिया जाएगा और परीक्षा दोबारा होगी? यदि समिति और अदालत के अलग-अलग निर्णय सामने आते हैं, तो फिर युवा अभ्यर्थी क्या करेंगे?

जो परीक्षा में सफल रहे हैं, क्या वे डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू नहीं कर सकेंगे, यह बहुत अहम सवाल है। एनटीए के अस्तित्व और आंतरिक सुधारों के अलावा, कई और सवाल पैदा हो गए हैं। निश्चित तौर पर यह मोदी सरकार के लिए गंभीर चुनौती है। यह राजनीतिक विवाद भी बन गया है और प्रतिपक्षी नेता शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का इस्तीफा मांग रहे हैं। बहरहाल विशेष समिति का काम नौकरशाही किस्म का नहीं होना चाहिए, क्योंकि उससे व्यवस्था को छिद्रों से मुक्त नहीं किया जा सकेगा।

अमरीका की तरह परीक्षाएं साल में दो बार या अधिक बार आयोजित की जा सकती हैं, क्योंकि हमारे सामने आबादी की भी समस्या है। परीक्षाओं के विकेंद्रीकरण से भी सरकार को शर्माना नहीं चाहिए। इस पर समिति विचार कर सकती है और अन्य विशेषज्ञों की भी सलाह ले सकती है। व्यापक स्तर पर सुधार और साफ-सफाई करनी पड़ेगी, क्योंकि लाखों युवा भारतीयों का भविष्य दांव पर है। बहरहाल, यह मामला सीबीआई के पास है।