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कहाँ है देश की समावेशी संस्कृति ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 27 Dec

सार

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद अब हमें हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने से बाज आना चाहिए..!!

janmat

विस्तार

यूँ तो सर्वोच्च अदालत ने सभी तरह की खुदाई, जांच और पुरातात्विक दावों पर रोक लगा रखी है, क्योंकि वह ‘उपासना स्थल कानून, 1991’ संबंधी याचिकाओं पर विचार कर रही है। दूसरी ओर सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद अब हमें हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने से बाज आना चाहिए। 

अब उप्र के संभल या राजस्थान के अजमेर में जो हिंदूवादी, मंदिरवादी दावे किए जा रहे हैं, उनसे स्पष्ट है कि वह तबका न तो शीर्ष अदालत की परवाह कर रहा है और न ही सरसंघचालक की नसीहत सुनने, मानने को तैयार है। बल्कि साधु-संतों का एक वर्ग सरसंघचालक के कथन का विरोध करने लगा है। रामभद्राचार्य सरीखे संत की टिप्पणी है कि मोहन भागवत उप्र, अजमेर या सनातन धर्म के प्रशासक नहीं हैं। दक्षिणपंथी खेमा ही संघ प्रमुख का विरोध कर रहा है, यह अत्यंत आश्चर्यजनक है। 

संभल (उप्र) में अब भी खुदाई जारी है। वहां 1978 के सांप्रदायिक दंगों की आड़ लेकर खुदाई की जा रही है। उन दंगों में 184 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। अधिकांश लोग हिंदू थे। उन दंगों के बाद हिंदुओं ने व्यापक स्तर पर पलायन किया था, लिहाजा आजादी के वक्त हिंदुओं की जो आबादी 45 प्रतिशत थी, अव वे घट कर मात्र 20 प्रतिशत रह गए हैं। मुस्लिम आबादी 55 प्रतिशत से बढ़ कर 80 प्रतिशत हो गई है। कुछ दिन पहले 46 साल के बाद एक मंदिर खुला था, जहां अब पूजा-सेवा की जा रही हैं। 

यदि 1978 का दौर याद किया जाए, तो केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। मोरार जी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे। पश्चिमी उप्र के एकछत्र नेता चौधरी चरण सिंह गृहमंत्री थे। जनता पार्टी में ही विलीन ‘जनसंघ’ के तत्कालीन शीर्षस्थ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी जनता पार्टी सरकार में मंत्री थे। 

उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामनरेश यादव भी जनता पार्टी के थे। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए। सवाल यह है कि 1978 के दंगों की जवाबदेही इन नेताओं की थी अथवा नहीं? इतने पुराने दंगों का संदर्भ अब क्यों उठाया जा रहा है? क्या प्रासंगिकता है? एक पुराना नक्शा जांच के दौरान सामने आया है, जिसके मुताबिक 68 हिंदू तीर्थों और 19 कूपों (कुओं) की खोज की जानी है।

अब यह नक्शा संभल जिलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया के पास है, जिस नक्शे को ‘शंभल महात्म्य’ कहा जाता है। क्या इन तीर्थों के लिए भी खुदाई और जांच कराई जाएगी? बीते दिनों एक कूप से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली थीं। कुछ खंडित प्रतिमाएं भी मिली थीं। अब संभल में एक प्राचीन बावड़ी सामने आई है। इस समय यह 210 वर्गमीटर में बनी है। बावड़ी को राजा सहसपुर के राजघराने के कुंवर जगदीश सिंह के नाना ने बनवाया था। इसमें कोई सुरंग नहीं है, बल्कि बावड़ी गोलाई में बनी है। बावड़ी में तीन मंजिलें पाई गई हैं। बावड़ी भी खुदाई में सामने आई है। खुदाई करते-करते एक नए भारत, नए उप्र की खोज जारी है। उससे हिंदूवादी सोच प्रगाढ़ होती है, बल्कि उन्माद, सांप्रदायिक विभाजन की संभावनाएं घनीभूत होती हैं। भागवत का मानना है कि प्राचीन विचारधारा और समावेशी संस्कृति के कारण भारत एक राष्ट्र बना। 

एकता का अर्थ इसकी विविधता को नष्ट करना या एकरूपता कायम करना नहीं है। अब हमें शत्रुता पैदा करने वाले या पुराने संदेहों को जगाने वाले मसलों से परहेज करना चाहिए। यह दुनिया को दिखाएगा कि हम सब शांतिपूर्वक एकसाथ रह सकते हैं। अब सवाल यह है कि क्या भाजपा नेतृत्व और खासकर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन खुदाइयों के जरिए 2027 के चुनाव की जमीन तैयार कर रहे हैं? खुदाइयां प्रशासनिक अधिकारियों के संरक्षण में की जा रही हैं। क्या भाजपा अब सरसंघचालक मोहन भागवत के विचार का भी विरोध कर सकती है? क्या आने वाली पीढिय़ां सिंधु घाटी की सभ्यता के स्थान पर ‘संभल खुदाई सभ्यता’ का अध्ययन करेंगी?