वक्त बदला, सियासत बदली, देश बदला लेकिन कांग्रेस राममंदिर को लेकर दुविधा और दोगलेपन पर जैसे ठहर सी गई है. शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए मुसलमानों के दबाव और हिंदुओं के विरोध पर दुविधा में फंसे राजीव गांधी ने शाहबानो का फैसला कानून बनाकर बदल दिया, जब इसके विरोध में हिंदुओं का दबाव बढ़ा तो हिंदुओं को खुश करने के लिए राम मंदिर का ताला खुलवाकर शिलान्यास करा दिया..!!
कांग्रेस अब लगभग 40 साल बाद फिर ऐसी ही दुविधा में फंसकर राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकारते हुए अपना शाहबानो-2 अवतार फिर देश के सामने पेश कर रही है. यही दोगलापन और दुविधा कांग्रेस को हिंदुओं से तो दूर ले ही गई लेकिन अब मुसलमान भी धीरे-धीरे कांग्रेस से छिटकते जा रहे हैं. पूरा देश आज राम भक्ति में डूबा हुआ है, दिव्य और भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के अलौकिक अवसर पर पूरा भारत राममय हो रहा है. तब कांग्रेस बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी को भी पीछे छोड़ने की जो महागलती कर रही है, उसकी प्रेरणा किसी दिव्य शक्ति ने ही कांग्रेस को दी होगी ताकि विकसित और भव्य नए भारत के निर्माण के रास्ते में आने वाली बाधाएँ अपने आप दूर हो जाएं.
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण को अस्वीकार करने की दलील कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकती है. इकबाल अंसारी और अयोध्या के मुस्लिम राम मंदिर की आस्था से जुड़े इस आयोजन से जहां आनंदित और उल्लासित हैं वहीं कांग्रेस उनके समर्थन की भूख में रामद्रोह कर रही है.
भारत के वायुमंडल में राम हैं, भारत की मिट्टी की खुशबू में राम हैं, भारत के जल की शीतलता और तृप्ति में राम हैं. भारत के कण-कण में राम हैं. सनातन धर्म नहीं मानने वाले भी भारत में प्रभु राम के आभामंडल से अपने को अलग नहीं कर सकते. प्रभु श्रीराम और रावण का द्वन्द रामकथा का आधार है. राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर भी रावणी प्रवृत्तियां और शक्तियां अगर अपना चरित्र और स्वरूप नहीं दिखाएंगे तो आधुनिक भारत में राम की प्राण-प्रतिष्ठा के दीपोत्सव का उल्लास शायद कम ही रह जाएगा.
भारतीय संस्कृति और सभ्यता मंदिर जाने के पीछे ऐसा भाव रखती है कि प्रभु ने बुलाया है. दूसरी तरफ कांग्रेस राम मंदिर के निमंत्रण को ही अस्वीकार कर रही है. यह भारतीयता और भारतीय संस्कृति का ना केवल निरादर है बल्कि ऐसा करने वालों की भारत के प्रति आस्था भी संदिग्ध ही कही जाएगी. कांग्रेस वैसे भी अंग्रेजी मानसिकता के प्रतीक इंडिया का प्रतिनिधित्व करती है. भारत और भारतीयता तो जैसे उसके लिए घृणा और घाव का प्रतिरूप है. चुनाव और राजनीतिक यात्राओं के बीच कांग्रेस के लोग मंदिरों में भगवामय होने का दिखावा भले ही करते हो लेकिन सनातन धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा का उनका राजनीतिक रंग अब उजागर हो चुका है.
कांग्रेस जिन महात्मा गांधी की विरासत पर अपना दावा करती है वे भी कांग्रेस को भारतीयता की प्रेरणा नहीं दे सके. ईश्वर अल्लाह में भेद करके कांग्रेस तुष्टिकरण की वोटो की राजनीति की खातिर भारतीय चिंतन-मनन और सभ्यता को प्रदूषित करने का महापाप कर रही है. कांग्रेस वास्तविकताओं के विपरीत मुसलमानों को बरगलाने की कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन दुनिया के मुस्लिम देश भारत के प्रधानमंत्री का भारतीयता और मानवता के प्रति समर्पण देखकर अगर नागरिक अभिनंदन करते हैं तो वह भी कांग्रेस की आंख खोलने में सफल नहीं हो रहा है.
दुबई में भव्य स्वामीनारायण हिंदू मंदिर के लोकार्पण के लिए वहां के मुस्लिम शासकों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही बुलाया है. जबकि कांग्रेस भारत में उन्हें मुस्लिम विरोधी साबित करने की कुचेष्टा में लगी रहती है. राम मंदिर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर बन रहा है. उसके सारे विवाद न्यायालय के निर्णय पर समाप्त हो गए हैं.
देशवासियों के सहयोग और भागीदारी से राममंदिर तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन कर रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण-प्रतिष्ठा में मुख्य यजमान क्या बने, कांग्रेस इस दिव्य अवसर को ही बीजेपी और आरएसएस का इवेंट बताने लगी.
राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा आस्था का विषय है. इसे इवेंट के रूप में देखना ही इसका अनादर और इसके प्रति अनास्था ही कही जाएगी. कांग्रेस आज जिन हाथों में खेल रही है वह हाथ सनातन और हिंदू विचारधारा की विरोधी विचारधारा को पालित-पोषित कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में उनसे राम मंदिर के प्रति आस्था की अपेक्षा भारत वैसे ही नहीं कर रहा था लेकिन उनसे इतनी समझदारी की तो उम्मीद थी कि कम से कम हजारों सनातन धर्मप्रेमी कांग्रेसजनों और अपने सनातनधर्मी समर्थकों की आस्था के साथ इतनी नाइंसाफी नहीं करेगी.
कांग्रेस प्राण प्रतिष्ठा सामारोह को पॉलिटिकल प्रोजेक्ट बता रही है. कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि राजीव गांधी ने जब ताला खुलवाया था और शिलान्यास करवाया था तो क्या यह भी शाहबानो मामले को संतुलित कर हिंदुओं को खुश करने का पॉलिटिकल प्रोजेक्ट था? बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय कारसेवकों पर गोली चलाना किसका पॉलिटिकल प्रोजेक्ट था? छह दिसंबर १९९२ की घटना के बाद भाजपा शासित यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल की राज्य सरकारों को कांग्रेस की केंद्र सरकार ने क्या किसी पॉलिटिकल प्रोजेक्ट के तहत भंग किया था?
हिंदुओं पर सिविल लॉ और मुसलमान को पर्सनल लॉ, कश्मीर में धारा 370 लागू करना, क्या कांग्रेस का मुस्लिम पॉलिटिकल प्रोजेक्ट था? कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार को क्या कांग्रेस का पॉलिटिकल प्रोजेक्ट ही कहा जाएगा? जातिगत जनगणना की मांग करके सनातनधर्मियों को विभाजित करना भी क्या कांग्रेस का पॉलिटिकल प्रोजेक्ट है? बिना किसी शासकीय पद पर रहते हुए कांग्रेस के आका उनकी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में सरकारी इवेंट में मुख्य भूमिका में दिखाई पड़ते हैं तो क्या यह पॉलिटिकल प्रोजेक्ट नहीं कहा जाएगा? सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकारों के समय कितने पॉलिटिकल प्रोजेक्ट के इवेंट किए हैं? उस समय उन्हें भावनाओं के साथ खेलते हुए राजनीति करने में बिल्कुल भी संकोच नहीं होता था?
कांग्रेस अपने गठबंधन के सहयोगी और वामपंथी साथियों के दवाब में सनातन विरोधी रास्ते पर इतना आगे बढ़ गई है कि अब उसकी राजनीतिक भाग्य रेखा बदलने की तो गुंजाइश दिखाई ही नहीं पड़ रही है. आस्था के मामले में देश के लोग ‘राम और रहीम’ में अंतर नहीं करते. आस्था अलग-अलग हो सकती है लेकिन आस्था का भाव एक ही होता है.
भारत हृदय और भाव से चलता है. भारत की सियासत कांग्रेस के पॉलिटिकल प्रोजेक्ट से तय नहीं होती है.कांग्रेस ऐसे दोराहे पर खड़ी है जहां मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस उसके गठबंधन के सभी सहयोगी एक-दूसरे पर घात प्रतिघात कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव के पहले यह भी तय हो जाएगा कि गठबंधन कितना कांग्रेस का साथ देता है. प्रभुराम के आमंत्रण को अस्वीकार करके तो कांग्रेस ने अपने रहे-सहे सनातनधर्मियों के सपोर्ट पर भी कुठाराघात कर दिया है. बीजेपी और आरएसएस राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को जहां शालीनता और समन्वय के साथ संपन्न करना चाहते हैं वहीं कांग्रेस इसका विरोध कर भाजपा और संघ का ही एजेंडा पूरा कर रही है.
अब यह बात बिल्कुल साफ हो गई है कि राम मंदिर के निमंत्रण को अस्वीकार कर कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा का अपना एजेंडा घोषित कर दिया है. सनातन धर्म के खिलाफ सनातन विरोधियों को न्याय दिलाने की उनकी यह यात्रा साबित होने जा रही है. कांग्रेस गठबंधन के सहयोगी तो सनातन धर्म के खिलाफ गालीगलौज की सीमा तक उतर गए हैं. भारत में धर्म और संस्कृति के इतने आयाम है, इतने संप्रदाय हैं, इतने देवी-देवता हैं, इतनी पूजा पद्धति हैं फिर भी सनातन पर सब एकमत और एक साथ हैं.
प्रभु श्रीराम का मंदिर वैष्णव संप्रदाय की रामानंदीय पद्धति से प्रतिष्ठित किया जा रहा है. कांग्रेस इस पर भी भ्रम पैदा कर रही है कि हिंदुओं के शंकराचार्य इस समारोह में नहीं जा रहे हैं. सभी संप्रदायों के संत महात्मा और श्रद्धालु समारोह में उपस्थित रहेंगे. शंकराचार्य लौकिक जगत के ऊपर की विभूति हैं. वे प्राण प्रतिष्ठा में यजमान की भूमिका में नहीं हो सकते यह धार्मिक परंपरा के विपरीत होगा.
राहुल गांधी की कांग्रेस ने ‘पॉलिटिकल प्रोजेक्ट’ का एक नया शब्द देश के सामने रखा है. इससे यही आभास होता है कि कांग्रेस के अब तक के सारे काम एक प्रोजेक्ट के तहत ही होते रहे हैं. इस प्रोजेक्ट के सीईओ अक्सर भारत के बाहर के लोग होते रहे हैं. NRC और CAA का विरोध भी कांग्रेस का सोचा समझा पॉलिटिकल प्रोजेक्ट है. हिंदुओं को अपनी आस्था पर आगे बढ़ने से रोकने के लिए कांग्रेस ने तुष्टीकरण के पॉलिटिकल प्रोजेक्ट के तहत पूजास्थल अधिनियम बनाकर हिंदुओं को उनकी आस्था स्थलों से दूर करने का षड्यंत्र किया है.
कांग्रेस और मंदिर परस्पर विरोधी विचारधारा हैं. अगर मंदिर में या मंदिर से जुड़ी वेशभूषा में कांग्रेस नेतृत्व दिखाई पड़ता है तो इसका मतलब है कि कहीं ना कहीं चुनाव बिल्कुल करीब है. चुनावी सनातनी सदियों के संघर्ष के बाद राम मंदिर की अलौकिक उपलब्धि के उल्लास में भी खलल पैदा करने से पीछे नहीं हैं.
आस्था का मर्म हृदय और भाव ही समझ सकता है. यह दोनों कांग्रेस में दूर की कौड़ी हैं. कांग्रेस तो चुनावी बेड़ा पार के लिए आस्था का व्यापार करने में यकीन रखती है. आस्था से खिलवाड़ किसी की भी जीवन ऊर्जा को नष्ट कर देता है. कांग्रेस तो अपनी ऊर्जा स्वयं नष्ट करने पर आमादा है. भारत के सितारे चमक रहे हैं. भारतीयता की संस्कृति विश्वमित्र के रूप में विश्व में अभिनंदित हो रही है. श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्वतंत्र और गणतंत्र भारत अपनी सांस्कृतिक गौरव की पुनर्स्थापना के साथ आजादी की पूर्णता को प्राप्त कर रहा है. इस आजादी से कांग्रेस अपने को अलग रखना चाहती है तो यह अलगाव कांग्रेस के भटकाव का नया दौर साबित होगा.