नीट लागू होने से पहले अखिल भारतीय स्तर पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा परीक्षा आयोजित की जाती थी..!
राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा (नीट) में प्रश्न पत्र लीक होने के बाद कुछ वर्गों से ऐसी आवाज उठने लगी है कि नीट की परीक्षा होनी ही नहीं चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि यह मांग परीक्षार्थियों की ओर से नहीं, बल्कि कुछ राजनेताओं की ओर से उठ रही है। अब सवाल यह है कि यदि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की व्यवस्था को भंग कर दिया जाता है तो उसके स्थान पर कौनसी व्यवस्था लागू होगी ? इसमें यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि नीट की व्यवस्था लागू होने से पहले मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं कैसे होती थी, और उसके क्या गुण-दोष थे ? नीट की परीक्षा लागू करने की जरूरत ही क्यों पड़ी ? यदि नीट के स्थान पर पुन: पुरानी व्यवस्था लागू होती है तो उसका मेडिकल कॉलेजों में उम्मीदवारों के भविष्य पर क्या असर हो सकता है। केवल मेडिकल प्रवेश परीक्षा ही नहीं, शेष राष्ट्रीय परीक्षाओं, जैसे यूपीएससी परीक्षाओं के भी प्रश्न पत्र लीक होने की घटनाएं हो रही हैं। यही नहीं, प्रवेश परीक्षाओं के प्रारंभ से ही पेपर लीक होने की छुटपुट घटनाएं पहले भी होती ही रही हैं। ऐसे में नीट परीक्षा में पेपर लीक होने की घटना को आधार बनाकर नीट व्यवस्था को ही भंग करना कितना उचित होगा, ज्वलंत प्रश्न है।
नीट लागू होने से पहले अखिल भारतीय स्तर पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा परीक्षा आयोजित की जाती थी, जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और अन्य सरकारी प्राधिकरणों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न मेडिकल एवं डेंटल कॉलेजों के एमबीबीएस एवं बीडीएस डिग्री कोर्सों में प्रवेश हेतु कम से कम 15 प्रतिशत सीटें इस परीक्षा में पास होने वाले विद्यार्थियों के लिए आरक्षित की जाती थी। यह सही है कि कुछ बेईमान तत्वों के कारण नीट और यूपीएससी परीक्षाओं में कुछ स्थानों पर पेपर लीक होने के कारण, विद्यार्थियों को धक्का लगा है। इस बात का संज्ञान लेते हुए सरकार और व्यवस्था ने लीक के संभावित स्थानों पर परीक्षा परिणाम स्थगित कर पुर्नपरीक्षा करवाने की कार्यवाही भी की है।
सही उम्मीदवारों के चयन की दो विधियां या उनका मिला-जुला रूप होता है। एक है प्रवेश परीक्षा और दूसरा साक्षात्कार। शैक्षिक संस्थानों में चयन के लिए चयन लिखित परीक्षा को ही सही माना जाता रहा है और लंबे समय से देश में सरकारी संस्थानों में तो यही पद्धति अपनायी जाती रही है, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा हो अथवा प्रांतीय स्तर की। निजी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया हमेशा ही विवाद का विषय रही है।
नीट व्यवस्था से पूर्व प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलेज स्वयं अथवा अपनी एसोसिएशन के माध्यम से एमबीबीएस, बीडीएस और पोस्ट ग्रेजुएट प्रवेश परीक्षा आयोजित तो करते थे, लेकिन उन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना या न होना सामान्यत: परीक्षार्थी के ज्ञान के आधार पर नहीं, बल्कि कॉलेजों को दी जाने वाली राशि के आधार पर होता था। अनेकानेक एजेंट इस काम में संलग्न रहते थे और एक बड़ी रकम देकर ही कोई विद्यार्थी एमबीबीएस/बीडीएस और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश प्राप्त कर सकता था। जाहिर है कि इस प्रकार अपने बच्चों को मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश किसी सामान्य अथवा मध्यम वर्ग के अभिभावकों के बूते से बाहर होता था। अधिकांश धनाढय़ लोग ही इन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में अपने बच्चों को प्रवेश करा पाते थे। हालांकि इस व्यवस्था में भी कुछ अपवाद हुआ करते थे, जहां मेडिकल कॉलेज अथवा उनकी प्रांतीय एसोसिएशन ईमानदारी से भी प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करती थी।
इनमें कर्नाटक प्रांत का नाम शामिल किया जाता था। कुछ अपवादों को छोड़ मोटी फीस के अलावा भारी नकद रकम अलग से चुका कर प्राईवेट मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलता था, तो ऐसे में यह व्यवस्था मेडिकल की पढ़ाई में असमानता का एक बड़ा कारण हुआ करती थी। यही नहीं, मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के इच्छुक अभ्यर्थियों को विभिन्न कॉलेजों अथवा उनकी एसोसिएशन द्वारा आयोजित परीक्षा में भाग लेने के लिए भारी परीक्षा शुल्क भी जमा करना पड़ता था। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के नियमन में भी भारी धांधलियां चलती थी। ऐसे में हालांकि वर्ष 2012 में सरकार द्वारा अलग-अलग प्रांतों और कॉलेजों के आधार पर विविध प्रकार की परीक्षाओं से निजात पाने के लिए देश में एक साझी परीक्षा आयोजित करने का फैसला लिया गया, जिसके खिलाफ प्राइवेट कॉलेजों के प्रबंधन ने अदालत में आपत्ति दर्ज की। लंबे चले इस मुकदमे में न्यायालय ने अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधन के हित में फैसला देते हुए साझी परीक्षा को यह कहकर निरस्त कर दिया कि यह साझी परीक्षा प्राईवेट कॉलेजों के अधिकारों का उल्लंघन है।
इंडियन मेडिकल काउंसिल और डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 2013 के उसके निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए निवेदन किया। पांच जजों की बैंच ने 2016 के दो जजों के बैंच के निर्णय को पलटते हुए नीट परीक्षा को संवैधानिक ठहराते हुए साझी परीक्षा का रास्ता साफ किया। यह अनुभव किया गया कि नीट की साझी परीक्षा के बाद सरकारी कॉलेजों में ही नहीं, बल्कि प्राईवेट कॉलेजों में भी योग्यता के आधार पर एमबीबीएस में प्रवेश हो पा रहा है। ऐसे में कम संसाधन संपन्न विद्यार्थी को भी मेडिकल और डेंटल शिक्षा में प्रवेश मिल पा रहा है।
जबसे नीट की परीक्षा शुरू हुई है, मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार के माध्यम से कमाई का स्रोत बंद हो चुका है। कुछ समय पहले नीट की परीक्षा में पेपर लीक होने की घटना प्रकाश में आई तो कुछ राजनीतिक पार्टियों ने नीट परीक्षा समाप्त करने की मांग करनी शुरू कर दी है। पूरे देश में जितने भी निजी मेडिकल कॉलेज या डेंटल कॉलेज हैं, उनमें एक बड़ी संख्या राजनेताओं द्वारा स्थापित संस्थानों की है। ऐसे में प्राईवेट मेडिकल कॉलेजों के प्रबंधक नीट की परीक्षा समाप्त कर मेडिकल प्रवेश को उसी पुराने ढर्रे पर ले जाना चाहते हैं, जहां उन्हें मनमाने तरीके से प्रवेश परीक्षा आयोजित कर भारी रकम कमाने का मौका मिल सके। पेपर लीक की कुछ घटनाओं से प्रभावित होकर इन निहित स्वार्थ वाले लोगों के बहकावे में आकर नीट की परीक्षा को समाप्त करना हमें फिर से प्रवेश पैसे वाले लोगों का खेल बनकर रह जाएगा।