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स्पीकर का चुनाव फ़ैसला करेगा ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 05 Oct

सार

सौदेबाजी के मद्देनजर कथित ‘इंडिया’ ने डिप्टी स्पीकर के पद की मांग शुरू की है।

janmat

विस्तार

नरेंद्र दामोदर दास मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बने दिन बीत चुके हैं। उनकी कैबिनेट सक्रिय हो चुकी है, परंतु प्रतिपक्ष अब भी मुगालते में है कि मोदी सरकार ‘अल्पसंख्यक’ है और बहुत जल्दी इसका पतन होगा। यदि प्रतिपक्ष की इस भविष्यवाणी को मान भी लिया जाए, तो सहज सवाल है कि उसके बाद क्या होगा? वैकल्पिक सरकार किसकी होगी? अथवा कुछ ही महीनों के बाद देश पर मध्यावधि चुनाव का बोझ लाद दिया जाएगा? 

सरकारें और सदन बहुमत के आंकड़ों के आधार पर तय होते हैं। यदि एनडीए के बजाय अकेली भाजपा के आंकड़े भी गिनें, तो वह 240 सांसदों के साथ लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है। भाजपा के बाद कांग्रेस के 99 सांसद हैं, लिहाजा वह दूसरे स्थान की पार्टी है। दोनों के बीच में कोई अन्य दल नहीं है।

सदन में बहुमत का जादुई आंकड़ा 272 सांसदों का है। उस लक्ष्य के ज्यादा करीब भाजपा है अथवा कांग्रेस! इतिहास को खंगालें, तो 1991 में कांग्रेस 232 सांसदों वाली सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन ‘अल्पमत’ में थी। तब गठबंधन के सहयोगी दलों के समर्थन के बूते पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बन पाए थे।

उसके बाद सरकार को बचाए रखने के लिए कांग्रेस को सांसदों की खरीद-फरोख्त करनी पड़ी थी। देश के प्रधानमंत्री को ‘अभियुक्त’ बना दिया गया था और केस चलाने के लिए विशेष अदालत बनाई गई थी। 2004 में लोकसभा में कांग्रेस के 145 सांसद जीत कर आए और तत्कालीन सत्तारूढ़ भाजपा 138 सांसदों के साथ ‘पराजित पार्टी’ थी।

बहुमत के आंकड़े से दोनों ही पक्ष बहुत दूर थे। गठबंधन का एक तम्बू तैयार किया गया और उसके नीचे समधर्मा राजनीतिक दल लामबंद हुए। तब प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बन सकी। खूब विरोधाभास थे, सरकार ने लगातार हिचकोले खाए, परमाणु करार पर वाममोर्चे के सांसदों ने समर्थन वापस तक ले लिया। मनमोहन सरकार अल्पमत में आकर लडख़ड़ाई। तब मुलायम सिंह की सपा के 39 सांसदों और अन्य का जुगाड़ करना पड़ा। मनमोहन सरकार गिरते-गिरते बची। 

2009 में भी कांग्रेस 206 सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी। परंपरानुसार राष्ट्रपति सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को ही सरकार बनाने का पहला न्योता देते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भाजपा 161, 182, 182 सांसदों वाली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वाजपेयी ने ही विभिन्न समधर्मी दलों को साथ मिला कर एनडीए का गठन किया था। बेशक आज एनडीए की संरचना बदल चुकी है, लेकिन मूल गठबंधन वही है।

तेलुगूदेशम पार्टी, जद-यू, शिवसेना सरीखे दल तब भी साथ थे और अंतत: आज भी गठबंधन के घटक दल हैं। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 1998-2004तक सुखद, सौहार्द, समन्वय के साथ सफल गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया। कांग्रेस और भाजपा के इन तमाम संदर्भों में बहुमत का जनादेश किसी के भी पक्ष में नहीं था, लिहाजा गठबंधन सरकारें बनीं और पूरे स्थायित्व के साथ अपने-अपने कार्यकाल सम्पन्न किए। 

अब सवाल है कि आज मोदी सरकार, विपक्ष के नजरिए से, अल्पमत की और अस्थिर सरकार क्यों है? संसद का सत्र जल्द ही शुरू हो रहा है। इसी 26 जून को स्पीकर का चुनाव होना है। चूंकि प्रतिपक्ष के पास अपेक्षाकृत आंकड़े काफी हैं, लिहाजा वह स्पीकर का उम्मीदवार उतारने के बयान दे रहा है।

पूरा विपक्ष एक तरफ हो जाए और दूसरी ओर अकेली भाजपा को रखा जाए, तब भी विपक्ष पराजित हो जाएगा। सौदेबाजी के मद्देनजर कथित ‘इंडिया’ ने डिप्टी स्पीकर के पद की मांग शुरू की है। यह निर्णय सरकार को लेना है। 

जद-यू और टीडीपी ने स्पष्ट कर दिया है कि स्पीकर भाजपा तय करेगी, क्योंकि वह सदन में सबसे बड़ी पार्टी है। स्पीकर का चुनाव ही तय कर देगा कि मोदी सरकार अल्पमत में है या उसका स्पष्ट बहुमत है। यकीनन सरकार के सामने खूब चुनौतियां होती हैं।

प्रधानमंत्री मोदी को अपना एकाधिकारवादी रुख भी बदलना पड़ सकता है। कैबिनेट से तो उन्होंने साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार पर सवाल नहीं किया जा सकता। फिलहाल मोदी सरकार ‘अल्पमत की सरकार’ नहीं है।