साल 2022 के बाद म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया आदि से छह सौ से अधिक भारतीयों को अपराधियों के चंगुल से बचाया जा चुका है, आशंका है कि कई हजार भारतीय युवा म्यांमार समेत विभिन्न देशों में साइबर अपराधियों के अड्डों में जबरन रोके गए हैं, दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय युवा प्रतिभाएं दलालों की साजिश से संगठित साइबर अपराध करने वाले अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के चंगुल में फंस जाती हैं..!!
यह जानकर आप परेशान हो सकते है कि म्यांमार और पूर्वी एशिया के कई देशों से जो संगठित साइबर अपराध संचालित हो रहे हैं, उनके चंगुल में बड़ी संख्या में भारतीय युवा भी हैं। हाल ही में म्यांमार के दुर्गम इलाकों में बनाये गए साइबर अपराधियों के अड्डों से सत्तर भारतीय युवाओं को छुड़ाया गया है। जिनको डरा-धमकाकर भारत में साइबर अपराधों को अंजाम देने के लिये इस्तेमाल किया जाता था।
बताया जाता है साल 2022 के बाद म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया आदि से छह सौ से अधिक भारतीयों को अपराधियों के चंगुल से बचाया जा चुका है। आशंका है कि कई हजार भारतीय युवा म्यांमार समेत विभिन्न देशों में साइबर अपराधियों के अड्डों में जबरन रोके गए हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय युवा प्रतिभाएं दलालों की साजिश से संगठित साइबर अपराध करने वाले अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों के चंगुल में फंस जाती हैं। विडंबना ही है कि हम अपने युवाओं को न तो रोजगार दे पा रहे हैं और न ही विदेशों में अपना भविष्य संवारने की आकांक्षा रखने वाले युवाओं को फर्जी एजेंटों के चंगुल से बचा पा रहे हैं। आखिर हमारी एजेंसियां ऐसी धोखाधड़ी करने वाले एजेंटों पर नकेल क्यों नहीं कस पा रही हैं।
हाल के दिनों में कई ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं कि युवा अपनी जमीन बेचकर व कर्ज उठाकर विदेश जाते हैं, लेकिन एजेंटों की धोखाधड़ी से वे साइबर अपराधियों के शिकंजे में फंस जाते हैं। दरअसल, साइबर अपराधियों का मकड़जाल इतना मजबूत हो चुका है कि बिना अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के उन पर नियंत्रण कर पाना संभव न होगा। ऐसे वक्त में जब साइबर अपराधियों का नेटवर्क दुनिया की आर्थिकी को चूना लगा रहा है, मिल-जुलकर इनके खिलाफ अभियान चलाना वक्त की जरूरत है। निश्चित रूप से यह एक विकट संकट है, जिसे दुनिया के देशों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। यह जानते हुए कि साइबर अपराधियों का संगठन लगातार ताकतवर होता जा रहा है और वे समानांतर काली अर्थव्यवस्था चला रहे हैं।
दरअसल, हो यह रहा है कि देश-दुनिया में ऑनलाइन फ्रॉड लगातार बढ़ते जा रहे हैं। वे सुनहरे सपने दिखाकर बेरोजगार युवाओं को फंसाते हैं। उन्हें जगह कोई और बतायी जाती है और अंतत: साइबर अपराधियों के अड्डों पर पहुंचा दिया जाता है। युवाओं के पासपोर्ट छीन लिए जाते हैं। ये अड्डे ऐसी जगहों पर होते हैं कि उस देश की पुलिस की पकड़ में वे आसानी से नहीं आते। हाल के वर्षों में साइबर अपराधी इतने चतुर-चालाक हो गए हैं कि निगरानी करने वाली एजेंसियों की पकड़ से आसानी से बच जाते हैं। हाल ही में जिन सत्तर भारतीयों को म्यांमार में साइबर अपराधियों के चंगुल से मुक्त कराया गया, उसमें म्यांमार के सीमा सुरक्षा बल की बड़ी भूमिका रही है। इन मुक्त कराए गए भारतीयों में पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,यूपी व राजस्थान आदि राज्यों के लोग थे। इसी तरह म्यांमार व अन्य पूर्वी एशिया के देशों में साइबर अपराधियों के चंगुल में फंसे हुए भारतीयों को मुक्त कराने के लिए इन देशों की सरकारों से सहयोग मांगा जाना चाहिए।
निश्चित तौर पर साइबर अपराधियों द्वारा संचालित अपराधों की लगातार मजबूत होती काली अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया की आर्थिक व कानूनी सुरक्षा के लिये चुनौती है। इस काले धन से नशे के कारोबार, आतंकवाद और मानवीय तस्करी जैसे अपराधों को अंजाम दिया जाता है। इस संगठित आपराधिक नेटवर्क पर अविलंब अंकुश लगाने की जरूरत है। जिससे न केवल एक तरह से बंधक बनाये गए युवाओं को मुक्त कराया जा सकेगा बल्कि तेजी से बढ़ती ऑनलाइन ठगी पर अंकुश लग सकेगा। दरअसल, इन साइबर अपराधियों की ऑनलाइन धोखाधड़ी के कारण हर साल कई ट्रिलियन डॉलर का नुकसान विभिन्न देशों की सरकारों को हो रहा है। जो दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी के बराबर है।