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देश के सैनिक क्यों खुश नहीं है?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 16 Oct

सार

16 मार्च 2022 को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) नीति को बरकरार रखा था और पांच वर्षों के लंबे अंतराल के इंतजार के बाद उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भूतपूर्व सैनिकों को 2019 से लंबित ओआरओपी-2 के देय लाभ मिले थे..!!

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विस्तार

छन छन करके आ रही ये खबरें अत्यधिक गम्भीर है, भारतीय सशस्त्र सेनाओं के भूतपूर्व सैनिकों में अपनी पेंशन विसंगतियों को लेकर भारी रोष है। 16 मार्च 2022 को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) नीति को बरकरार रखा था और पांच वर्षों के लंबे अंतराल के इंतजार के बाद उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भूतपूर्व सैनिकों को 2019 से लंबित ओआरओपी-2 के देय लाभ मिले थे। हालांकि इस बार केंद्र सरकार द्वारा 01 जुलाई 2024 से देय ओआरओपी-3 के लाभों और टेबल को अनापेक्षित रूप से जारी करके दो महीनों का एरियर्स जारी भी कर दिया गया है, लेकिन फिर भी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफ़र्मस पर भूतपूर्व सैनिकों की नाराजगी देखने-पढऩे को मिल रही है जिसमें कुछ श्रेणियों के जवानों और जेसीओज को मामूली पेंशन वृद्धि का लाभ मिला है तो कईयों की पेंशन में बिल्कुल भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। 

देश में लगभग 2.6 मिलियन भूतपूर्व सैनिक तथा 698252 वीर नारियां हैं। भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण और पुनर्वास पर विशेष ध्यान देने के लिए 22 सितम्बर 2004 को रक्षा मंत्रालय में भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग की स्थापना की गई थी और यह विभाग पूर्व सैनिकों की पेंशन, पुनर्वास और स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी संभालता है। विभाग द्वारा पूर्व सैनिकों की शिकायतों को सीधे ऑनलाइन के माध्यम से केन्द्रीकृत शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल पर ईमेल के माध्यम से, डाक, टेलिफोन पर और संचार के अन्य साधनों के माध्यम से प्राप्त किए जाने की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में भी सैनिकों, पूर्व सैनिकों से जुड़े मामलों पर सुनवाई होती है।

भूतपूर्व सैनिकों की पेंशन चिंताओं को लेकर लेफ्टिनेंट कर्नल गुर प्रकाश सिंह विर्क (सेवानिवृत्त) अपने फेसबुक अकॉउंट पर लिखते भी हैं कि केंद्र सरकार द्वारा अग्निवीरों को पेंशन लाभों से बाहर रखा जाना पेंशन देनदारियों को कम करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। उनके अनुसार, ऐसा लगता है कि सरकार की वित्तीय प्राथमिकताएं ‘सोल्जरिंग’ के मूल्यों के ऊपर आ रही हैं और कई लोग सोच रहे हैं कि क्या ‘बनियागिरी’ सैन्य सेवा की मुख्य धारणाओं पर हावी हो रही है। पेंशन से जुड़े मुद्दे और अग्निवीर भर्ती योजना को लेकर मेजर गुरदीप सिंह का विश्लेषण भी गौर फरमाने योग्य है कि, वर्ष 2020, 2021, 2022 में कोई भर्ती नहीं की गई। 

इसका मतलब सरकार ने सीधे-सीधे 2 लाख सैनिकों की फौज में कटौती कर दी थी जिसे अभी तक भरा नहीं गया है और उसके बाद अग्निवीर भर्ती योजना ले आए। यानी सारी जद्दोजहद पेंशन खर्च को नियंत्रित करने की है। यही बात सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग भी कहते हैं कि वर्ष 2020 से नियमित सैनिकों की कोई भर्ती नहीं की गई है, जबकि हर साल 50 से 60 हजार के बीच सैन्यकर्मी रिटायर होते हैं। 2020 से 2023 के बीच दो लाख से लेकर 2.4 लाख के बीच सैनिक रिटायर हुए हैं जबकि अब तक केवल 72340 अग्निवीर ही ट्रेनिंग के बाद यूनिटों में शामिल किए गए हैं। 

इस तरह 127660 से लेकर 168660 कर्मियों की कमी हो गई है। इस कमी के कारण सेनाओं की ऑपरेशनल कुशलता पर बुरा असर पड़ा है। पेंशन बिल में कमी आने में 15-20 साल लगेंगे, जब सेवारत अग्निवीरों का प्रतिशत बढ़ेगा और उसी अनुपात में रिटायर होने वाले नियमित सैनिकों की संख्या कम होगी।यहां यह बताना भी उपयुक्त रहेगा कि तब तक, अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी और तब जीडीपी के 2-3 प्रतिशत के बराबर के रक्षा बजट का आकार करीब 400/600 अरब डॉलर के बराबर हो जाएगा। इतना रक्षा बजट वेतन एवं पेंशन बिल में वृद्धि के अलावा सेनाओं के गोला बारूद, उपकरणों, हथियारों, लड़ाकू जहाजों और मिसाइलों आदि की खरीद के लिए पर्याप्त होगा। 

वहीं अग्निवीर भर्ती योजना की खामियों को लेकर एडमिरल अरुण प्रकाश ने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में बताया कि अग्निवीर अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं हैं और केवल संतरी कर्तव्यों के लिए ही उपयुक्त हैं। उनके अनुसार, ‘किसी नए व्यक्ति को घातक हथियार प्रणालियों, जटिल मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स के संचालन या रखरखाव का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के लिए कम से कम पांच से छह वर्ष की आवश्यकता होती है।’ उन्होंने कहा कि सेना में पहले से ही जनशक्ति की कमी है और इस तरह की योजना के लिए यह सही समय नहीं है। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने भी कुछ समय पहले इस योजना की आलोचना करते हुए कहा था, ‘अग्निपथ के पीछे एकमात्र उद्देश्य पेंशन बिल को कम करना है।’

सवाल उठता है कि पेंशन के मुद्दे को लेकर भूतपूर्व सैनिक अभी भी संतुष्ट नहीं हैं तो क्या वर्तमान केंद्र सरकार का दायित्व नहीं बनता कि वह भूतपूर्व सैनिकों की पेंशन संबंधी चिंताओं का समयबद्ध तरीके से निवारण करे। यदि केंद्र सरकार भूतपूर्व सैनिकों और बेरोजगारों की वास्तव में ही हितैषी है तो अग्निवीर की जगह नियमित सैनिकों की भर्ती करे। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ‘मशीन के पीछे खड़ा आदमी ही महत्वपूर्ण है’, लिहाजा हमारी तैयारियां हथियारों को स्तरोन्नत करने के साथ-साथ उन आधुनिक मशीनों और हथियारों को चलाने वाले सैनिकों को भी उच्च प्रशिक्षित कर उन्हें हुनरमंद, सक्षम, कुशल तथा योग्य बनाने की होनी चाहिए, जिसे हम अग्निवीर जैसी योजना के दम पर हासिल नहीं कर सकते हैं और इसके लिए नियमित सैनिकों की ही जरूरत रहेगी। ओआरओपी जैसे नीतिगत कदमों का लक्ष्य पेंशन संबंधी विसंगतियों को दूर कर एक समान पेंशन की व्यवस्था करना था, लिहाजा यह आवश्यक है कि भूतपूर्व सैनिकों की पेंशन संबंधी विसंगतियों का त्वरित समाधान होना चाहिए।