इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगले माह 22 जून को वाशिंगटन व्हाइट हाउस में डिनर में छिपा है। उनकी इस यात्रा के दौरान कुछ अमेरिकी और इस्राइली हाईटेक कंपनियां, जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के ज़रिये सर्वे कराकर जानकारी चुनावी रणनीतिकारों को जानकारी बेचती हैं, टीम मोदी से संपर्क कर सकती हैं ।
लगता है कर्नाटक की हार से भारतीय जनता पार्टी ने सबक़ लिया है, मंथन जारी है कि चार विधानसभाओं के चुनाव, और 2024 में लोकसभा चुनाव परंपरागत पैटर्न पर लड़े जाएं या नहीं ? इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगले माह 22 जून को वाशिंगटन व्हाइट हाउस में डिनर में छिपा है। उनकी इस यात्रा के दौरान कुछ अमेरिकी और इस्राइली हाईटेक कंपनियां, जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के ज़रिये सर्वे कराकर जानकारी चुनावी रणनीतिकारों को जानकारी बेचती हैं, टीम मोदी से संपर्क कर सकती हैं । वैसे अभी सत्ता के गलियारों में बैठे लोग इस सवाल पर खामोशी साधे हुए हैं, मगर इतना ज़रूर इशारा हुआ कि अगले चुनाव में रणनीति के स्तर पर भारी बदलाव सोच लिया गया है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम भी शामिल है।
वैसे अमेरिका में आम चुनाव नवंबर, 2024 में है। उससे बहुत पहले भारत में लोकसभा चुनाव हो जाना है। अमेरिकी मतदाताओं के मिज़ाज को भांपने में पिछले चुनावों में जिस तरह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल हुआ, उसे 98 से 100 प्रतिशत सटीक माना गया था। राष्ट्रपति जो बाइडेन इस बात से भी चिंतित हैं कि प्रतिपक्ष कहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कंपनियों का दुरुपयोग न करे। गत 3 मई को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दुनिया की दिग्गज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कंपनियों के टॉप सीईओ के साथ बैठक की थी, और यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि नागरिकों के निजी डाटा का दुरुपयोग नहीं किया जाएगा।जो बाइडेन के साथ इस बैठक में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रो सॉफ्ट के सत्या नडेला व ओपेन एआई के सीईओ सैम अल्टमन्न उपस्थित थे। इनसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस वाले जो प्रोडक्ट बाज़ार में उतार रहे हैं, वह सुरक्षित होंगे, लोगों की निजता और सिविल राइट्स का हनन नहीं करेंगे।
अमेरिका में वर्ष 2008 और 2012 के चुनावों को फेसबुक अकाउंट्स के ज़रिये लड़ा गया था। उन दिनों किसी मुद्दे पर फेसबुक यूजर्स की प्रतिक्रियाओं के आधार पर चुनावी सर्वे कंपनियां अपने क्लाइंट्स को डाटा उपलब्ध करा देती थीं। मगर, पिछले दो चुनावों से अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की बड़ी भूमिका दिखने लगी है। अमेरिकी सॉफ्टवेयर कंपनी ‘एक्सपर्ट डॉट एआई’ ने 2020 के चुनाव में धमाल मचा दिया था, जिसके डाटा सटीक उतरे थे। साल 2020 चुनाव से पहले ‘एक्सपर्ट डॉट एआई’ ने सोशल मीडिया की तमाम पोस्ट को खंगालने में एआई सॉफ्टवेयर की मदद ली थी। जो बाइडेन जीत रहे हैं, उसकी थाह सोशल मीडिया में चल रही हलचलों से पता चल चुकी था।बीते चार वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तकनीक ने उन तिजोरियों की थाह भी लेनी शुरू की है, जिनसे चुनावों में आर्थिक मदद मिलने की संभावना है। पिछले चुनाव में इसकी भविष्यवाणी 93 प्रतिशत सही उतरी थी।
एक ख़तरा - आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सटीक जानकारी के साथ-साथ सूचनाओं को गुमराह भी कर सकता है, इसकी आशंका इस्राइली एक्सपर्ट व्यक्त करते हैं। हिब्रू भाषा के अखबार ‘इज़राइल हेयोम’ ने 14 मई, 2023 की एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि आम लोगों को गुमराह करने के वास्ते आवाज़ समेत व्यक्ति विशेष का क्लोन एआई के ज़रिये तैयार कर चुनावी दुष्प्रचार का ब्रह्मास्त्र बना लिया गया है। आप पुष्टि करते रहिये कि बयान फेक है, या सही, तब तक लाखों-करोड़ों लोग इसके दुष्प्रभाव की चपेट में आ चुके होते हैं। भारत में इसके ख़तरे ज़्यादा हैं। वैसे एआई आने वाले चुनावों का साइबर शैतान है, जिसकी मायावी चालों का शिकार आम मतदाता हो सकता है। अभी सवाल यह है क्या भारत में जो आगामी चुनाव होंगे, उसमें एआई जैसे मायावी दानव का इस्तेमाल होगा?
यूरोपीय संसद में एआई के सुरक्षित इस्तेमाल पर गत 11 मई को एक क़ानून बना है। यूरोपीय देश इस क़ानून के बाद कैसे एआई का चुनावी इस्तेमाल करते हैं, इसे देखने के लिए थोड़े दिन इंतज़ार करना होगा। कहने को भारत में साढ़े छह अरब डॉलर का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मार्केट है। जब चुनाव के वास्ते इसका इस्तेमाल होने लगेगा, अन्दाज़ लगा ले क्या नहीं होगा।