कांग्रेस केवल तेलंगाना में जीत हासिल कर सकी और हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में उसे हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा चुनावों के नतीजों से एक बड़ा संकेत निकला है कि “कांग्रेस के राज्य-स्तरीय नेतृत्वों ने मनमानी करते हुए गठबंधन के अन्य दलों की उपेक्षा की है । इससे दूसरी पार्टियां काफी नाराज हो गईं और गठबंधन के और मज़बूत होने की राह बाधित हो गयी। कांग्रेस केवल तेलंगाना में जीत हासिल कर सकी और हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में उसे हार का सामना करना पड़ा। ये नतीजे चौंकाने वाले हैं क्योंकि अधिकांश एग्जिट पोल्स ने भविष्यवाणी की थी कि इन राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन कहीं बेहतर रहेगा। अब कांग्रेस की हार एक पहेली बन गयी है, जिसे कोई सुलझा नहीं पा रहा है।
वास्तव में अगर कांग्रेस का अन्य राष्ट्रीय और छोटे दलों के साथ गठबंधन होता तो उसका प्रदर्शन बेहतर होता। अब लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति बनाते समय कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के सदस्यों को ध्यान देना होगा।कुछ टिप्पणीकारों का तर्क है कि भाजपा की हिन्दू राष्ट्रवादी राजनीति के प्रति समर्थन मुख्यतः हिन्दी-भाषी राज्यों सीमित है। कांग्रेस और अन्य दलों को इस तथ्य की ओर भी ध्यान देना चाहिए कि उसके तमाम दावों के बावजूद भाजपा की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है। यदि हम इन पांच राज्यों में डाले गए कुल वोटों की बात करें तो कांग्रेस को 4.92 करोड़ वोट मिले हैं जबकि बीजेपी को 4.81 करोड वोट ही हासिल हुए हैं।
आज सवाल यह है कि क्या इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दल,एक बार फिर गठबंधन के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करेंगे? इन चुनावों के नतीजों से इंडिया गठबंधन को धक्का लगा है। तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस की हार से कांग्रेस नेतृत्व चिंतन और उन गलतियों को सुधारने का प्रयास करना चाहिए जिनके चलते गठबंधन के अन्य सदस्य नाराज हैं। विपक्षी दल यह अच्छी तरह जानते हैं कि वे अलग-अलग रहकर भाजपा से मुकाबला नहीं कर सकते। बीआज भाजपा के पास मानव संसाधन और धन प्रचुर मात्रा में हैं और मीडिया भी केन्द्र ने साधा हुआ है।
सब जानते हैं, भाजपा के पीछे आरएसएस के प्रचारकों और स्वयंसेवकों की पूरी टीम है। आरएसएस के सहयोगी संगठन वीएचपी, एबीव्हीपी, बजरंग दल, वनवासी कल्याण आश्रम और उससे जुड़ी अन्य संस्थाएं हर चुनाव में भाजपा को परोक्ष रूप से समर्थन करते हैं।ये सब भाजपा के मददगार हैं।
सब जानते है भाजपा देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की ओर ले जाना चाहती है। वह खुलकर और दबे-छुपे ढंग से भारतीय संविधान के मूल्यों को कमजोर कर रही है, तीन राज्यों में उप मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है ।
कहने को कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, मिलकर चुनाव लड़ने के लिए ज़रूरी त्याग करने के लिए अब तैयार दिखते हैं। विधानसभा चुनावों में तो वे राज्य स्तरीय नेतृत्व को सभी पार्टियों के साथ सहयोग करने के लिए राजी नहीं कर पाए, लेकिन लोकसभा चुनाव में उन्हें बड़ी उम्मीद है ॰। राहुल गांधी ने कहा है कि विपक्ष को एक रखने के लिए कांग्रेस कोई भी त्याग करने के लिए तैयार है।
अभी तो विभिन्न विपक्षी दल अलग-अलग दिशा में भाग रहे हैं। संभावना व्यक्त की जा रही है कि लोकसभा चुनाव की औपचारिक घोषणा से पहले ही इंडिया गठबंधन मज़बूत हो जाएगा।