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शब्द और बातें नयी, सत्ता का स्वभाव वही

सार

​​​​​​​भाजपा अपना 46वां स्थापना दिवस मना रही है. सत्ता के नजरिए से बीजेपी आज देश में मुख्य भूमिका में है. लोकसभा में दो सीटों से शुरू इस पार्टी का सफर लगातार तीन बार केंद्र में सत्ता हासिल करने तक पहुंच गया है. इस सफर में बीजेपी अपनी विचारधारा पर चलते हुए सत्ता के लिए बहुत बदली है..!!

janmat

विस्तार

    विचारधारा तो नहीं छोड़ी लेकिन गैर विचारधारियों को गले लगाकर सत्ता की सिंहासन पर पहुंचने में कोई गुरेज़ नहीं किया. राष्ट्रीय पुनर्निर्माण, जन सेवा, नैतिकता, शुचिता, राष्ट्रवाद की बातें और शब्द नए हैं लेकिन सत्ता  का स्वभाव वही पुराना है. बहुमत की राजनीति संख्या बल पर चलती है. इसमें नैतिक बल का कोई काम नहीं है. बहुमत की प्रतिस्पर्धा में जो जीता वही निर्माता बन जाता है.

    जब तक जो भी दल सत्ता पर काबिज है वही उसकी सफलता है. इस सफलता में डिस्ट्रक्शन भी छुप जाता है. जब विरोधी लंबे समय तक सत्ता में रह चुका हो तो फिर नई सरकार द्वारा पुरानी सरकार की गलतियों को बदलना ही सत्ता की बुनियाद को मजबूत करती है. बीजेपी की यात्रा बदलाव की ही यात्रा है. पुरानी सरकारों की नीतियों और गलतियों में सुधार बीजेपी के शिखर का आधार बन गई है.

    बीजेपी के पक्ष में जो सबसे बड़ी उपलब्धि जाती है, वह यह हैकि, विचारधारा के मामले में उन्होंने जो भी निश्चय किया था उस पर अभी भी अडिग हैं. जबकि उनके हालिया विरोधियों की कोई विचारधारा ही नहीं है. अयोध्या में राम मंदिर, कश्मीर में धारा 370 का खात्मा और समान नागरिक संहिता लागू करने की प्रतिबद्धता उनका एजेंडा था. इस पर अमल से  उन पर विश्वास मजबूत हुआ है. भले ही यूसीसी उत्तराखंड में ही लागू है लेकिन इसे सभी राज्यों में लागू करने की उनकी प्रतिबद्धता पर लोगों को भरोसा है. अपने एजेंडे  पर चलते हुए भाजपा को जो बातें पहले नुकसान दे रही थी वही अब लाभ का सौदा साबित हो गई है.

     कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों में सुधार बीजेपी के ऐतिहासिक उपलब्धियां बनती जा रही हैं. लोकतंत्र में  एकाधिकार कभी स्वीकार नहीं किया जाता. जब भी कोई राजनीतिक दल इस गलतफहमी में आता है तो फिर लोकतंत्र अपना काम करता है.

    संगठन, बीजेपी की ताकत है. संगठन के दम पर बीजेपी ने काफी संघर्ष किया लेकिन सक्सेस नहीं मिली. बीजेपी की सफलता का चेहरा निसंदेह नरेंद्र मोदी बने हैं. बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी को भी वर्ष 2009 में प्रधानमंत्री पद  उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन समर्थन नहीं मिला. 

    नेतृत्व के व्यक्तित्व की करिश्माई छवि का ही परिणाम है कि, पीएम उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट बहुमत के साथ भारत में पहली बार बीजेपी को सरकार बनाने का मौका दिलाया. इसके पहले वामपंथी विचारधारा देश में हावी थी. दक्षिणपंथी विचारधारा के उदय के साथ ही उसमें निरंतर मजबूती बीजेपी की सक्सेस है.

    वामपंथी और दक्षिणपंथी विचारधारा की टकराहट का ही नतीजा है कि, आज देश की राजनीति भारत और इंडिया के विवाद में उलझी हुई है. देश में राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य रूप से हैं. बीजेपी दक्षिणपंथी  विचारधारा का प्रधिनित्व करती है तो कांग्रेस का इतिहास वामपंथी विचारधारा का रहा है. विचारधारा के मामले में बीजेपी को देश में मिल रहे समर्थन की व्यापकता नजरअंदाज नहीं की जा सकती.

    इस सबके बावजूद सत्ता के स्वभाव के मामले में आमतौर पर भाजपा व कांग्रेस में अंतर करना मुश्किल हो गया है. बीजेपी में कांग्रेस के इतने नेता शामिल हो गए हैं कि अब कई राज्यों में तो अगर वह नेता एक मंच पर बीजेपी नेताओं के साथ दिखाई पड़ते हैं तो यह अंतर करना मुश्किल हो जाता है कि, यह किस पार्टी की सरकार का समारोह है. 

    मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन से जब बीजेपी ने सरकार बनाई थी, तब ऐसे ही हालात दिखाई पड़ रहे थे. विचारधारा के लिए समर्पित बीजेपी कार्यकर्ता कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं से भारी निराश और टकरा रहे हैं. कई वरिष्ठ नेताओं का राजनीतिक कैरियर दांव पर लग गया.

    विचारधारा के लिए समर्पित कार्यकर्ता अगर ऐसे ठगे जाएगें तो फिर विचारधारा के लिए काम करने वालों को ढूंढना पड़ेगा. राजनीतिक दल के लिए सत्ता में आना एक सच्चाई हो सकती है, लेकिन उसके लिए ऐसे समझौते जो बुनियाद ही हिला दें, उससे पार्टी को बचाना भी जरूरी होता है.

   अगर विरोधी कमजोर होता है, तो डगमग प्रयास भी चुनाव में सक्सेस दिला देते हैं. यह सक्सेस पॉजिटिव नहीं है. संसदीय व्यवस्था में चुनाव प्रणाली तो एक वोट के बहुमत से भी विजयी बना देती है. सत्ता ही लोकप्रियता का पैमाना नहीं हो सकता. इसीलिए कई बार राजनीतिक तर्क दिया जाता है कि, भले ही विजयी प्रतिनिधियों की संख्या कम हो लेकिन वोट प्रतिशत ज्यादा है. जबकि सच्चा जनादेश वही है जिसमें देश की बहुतायात मतदाताओं का समर्थन हो.

    भाजपा का गठन एकात्म मानववाद, मूल्य आधारित राजनीति, सांस्कृतिक मूल्य की प्रतिबद्धता और राष्ट्रवाद जैसे महान उद्देश्यों के लिए किया गया. सार्वजनिक जीवन में आज नैतिक मूल्यों का सबसे बड़ा संकट फैला हुआ है. राजनीति में अपराधीकरण और राजनीतिक भ्रष्टाचार से कोई भी दल अछूता नहीं कहा जा सकता है. 

    मूल्य आधारित राजनीति शब्दों में तो अच्छी लगती है, लेकिन चुनावी राजनीति में इसका वास्तविक स्वरूप दिखाई पड़ता है. चुनाव में विजयी होने मात्र से राजनीतिक दल के सारे लक्ष्य और उद्देश्य पूरे नहीं हो सकते. पार्टी के गठन के लिए जो लक्ष्य तय किए गए थे, उन पर भी अमल दिखाई पड़ना चाहिए.

   कांग्रेस के राजनीतिक भ्रष्टाचार बीजेपी के सत्ता मेंआने के लिए आधार बने थे. राष्ट्रीय स्तर पर भले ही बीजेपी सरकार के खिलाफ करप्शन के कोई गंभीर आरोप नहीं आए हो लेकिन राज्यों में तो बीजेपी और कांग्रेस की सरकार के रवैये और स्वभाव में कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ता.

    बीजेपी राज्यों का चुनाव जीतती है तो कई राज्यों में हारती भी है. जिन राज्यों में बीजेपी चुनाव हारती है वहां उसकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते हैं. विरोधी करप्ट सरकार होने के स्पेसिफिक अभियान चलाते हैं और जनादेश में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है. अगर इसे केवल राजनीति ही मान लिया जाएगा तब तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर मूल्य और नैतिकता की बात की जाएगी तो फिर इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती.

    तुलना में देखा जाएगा तो निश्चित रूप से दूसरे दल और बीजेपी में डिफरेंस है. बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व नैतिकता, शुचिता और मूल्य आधारित राजनीति पर चलने की कोशिश करता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में बीजेपी के बाद इतना बड़ा सांस्कृतिक संगठन है जो उसे मूल्यों में बांधे रखने की कोशिश करता है. राजनीति में बहुत बुनियादी सवाल हैं, जिन पर बीजेपी को काम करना ही होगा. राजनीतिक भ्रष्टाचार समाप्त करना होगा. केवल विरोधियों को ही नहीं अपनों में भी भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को दुरुस्त करना होगा.

    पीएम मोदी के चेहरे, छवि और कर्मठता को पार्टी ने भरपूर भुनाया है. पूरे संगठन को पार्टी के उद्देश्य, मूल्य आधारित राजनीति, नैतिकता, शुचिता के कमिटमेंट ना केवल पूरा करना होगा बल्कि ऐसा करते हुए दिखना भी पड़ेगा.

  वर्तमान राजनीति के सामने विश्वास का संकट खड़ा हुआ है. चुनाव का विजयी अंकगणित भी इस संकट को दूर नहीं कर पा रहा है. इसके लिए मोदी जैसा सोचने और करने वाले करोड़ों समर्पित कार्यकर्ता जब पार्टी तैयार करने में सफल होगी तभी देश की राजनीति बदलेगी.