शरणार्थियों को नागरिकता देने के कानून पर विरोधी विचार भारत के विभाजन के घाव कुरेद रहे हैं. पाकिस्तान नहीं बना होता तो इस मुस्लिम राष्ट्र से हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई और पारसी अपने धर्म-जीवन और गरिमा की रक्षा के लिए भारत में शरणार्थी नहीं बनते.ये शरणार्थी जहां भी रह रहे होते वहां उन पर भारत की छांव होती..!!
विभाजन के बाद मुस्लिम देश में इन शरणार्थियों का जीवन दूभर हो गया. अपने धर्म और आस्था का पालन करने पर उन्हें प्रताड़ित किया जाने लगा. पाकिस्तान में अल्पसंख्यक इन धर्म के लोगों की प्रताड़ना किस सीमा तक पहुंच गई होगी कि पाकिस्तान बनते समय इन समुदायों की जो आबादी करीब 23% थी वह अब घटकर महज़ 3.7% ही रह गई है. इसका मतलब है कि इन धर्म के लोगों का धर्म परिवर्तन कराया गया. पाकिस्तान बनने के बाद वहां हिंदू और दूसरे भारतीय धर्म पर आस्था रखने वालों का जीवन नर्क बना दिया गया. ऐसी हालत में भारत में आज जो शरणार्थी हैं वह कागजों पर भले ही पाकिस्तान और बांग्लादेशी कहे जा रहे हो लेकिन उन सब का मूल भारत में है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल CAA का विरोध कर रहे हैं. केजरीवाल तो शरणार्थियों को चोर तक घोषित कर रहे हैं. CAA कानून पर भारत के संविधान और प्रधानमंत्री की जहां एक तरफ मानवीयता दिखती है तो दूसरी तरफ विरोध करने वाले मुख्यमंत्रियों की मूढ़ता दिखाई पड़ती है.
केजरीवाल अपने आप को पढ़ा-लिखा बताते हैं लेकिन उनकी संवैधानिक निरक्षरता CAA कानून विरोधी बयानों से झलकती है. राजनीतिक मंसूबों के लिए शरणार्थियों के खिलाफ देशवासियों को भड़काने की कोशिश की जा रही है. यहां तक कहा जा रहा है कि शरणार्थी अगर चोरी करते हैं, कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित करते हैं, देश के लोगों का रोजगार और अवसर छीनते हैं तो फिर इससे देश को नुकसान होगा.
बहुत पुरानी कहावत है, चोरी होने की स्थिति में चोर ही सबसे ज्यादा ‘चोरी-चोरी’ चिल्लाता है. ताकि चोरी करने का आरोप उस पर नहीं लगे. कम से कम केजरीवाल और ममता बनर्जी तो किसी पर भी चोरी का इल्जाम नहीं लगा सकते. इन दोनों के राजनीतिक दलों और सहयोगियों पर संविधान की सुरक्षा के अंतर्गत देश के साथ चोरी करने के आरोपों की सत्यता जांच के दायरे में है. दोनों के सिपहसलार देश के साथ चोरी करने के आरोप में जेल में हैं. शरणार्थी कम से कम ऐसी चोरी करने का तो सोच भी नहीं सकते हैं. अपने जीवन की रक्षा के लिए रोटी चुराने का काम जरूर वे कर सकते हैं और यह चोरी करने का हक़ उन्हें संविधान से ज्यादा अस्तित्व देता है.
शरणार्थियों को आजादी के समय ही नागरिकता दी जानी चाहिए थी. वोट बैंक की राजनीति ने उनकी नागरिकता के सवाल को कभी हल नहीं होने दिया. ये शरणार्थी राजनीतिक पूर्वजों की गलतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं. शरणार्थियों को नागरिकता उनके अधिकार की रक्षा के साथ ही देश की आजादी के नाम पर कुर्बान हुए इन धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हुई ऐतिहासिक गलतियों का सुधार भी कहा जा सकता है.
भारत में तुष्टिकरण की राजनीति ने बहुत सारे ऐतिहासिक मुद्दों पर आंखें मूंदे रखी. हिंदुत्व पर आसन्न खतरे के कारण ही भारत की वर्तमान राजनीति के इस कालखंड के रूप में नया नेतृत्व उभरा है. शरणार्थियों के विरुद्ध मुख्यमंत्रियों के विचार तो यही बता रहे हैं कि तुष्टिकरण की राजनीति पॉलिटिकल पागलपन की सीमाएं तोड़ रही है.
बीजेपी की ओर से नागरिकता संशोधन कानून लागू करने का वायदा बाकायदा घोषणा पत्र में किया गया था. जो चीज पहले से ही घोषित की गई है उसकी टाइमिंग पर सवाल मुख्यमंत्रियों की अज्ञानता को प्रदर्शित करता है. कांग्रेस और उसके गठबंधन के सहयोगी दलों और उनकी सरकारों के मुख्यमंत्री मुस्लिम वोट बैंक को कंसोलिडेट करने के लिए असंवैधानिक वक्तव्य दे रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के साथ ही दक्षिण भारत के दूसरे मुख्यमंत्री भी यह कह रहे हैं कि उनके राज्यों में CAA कानून लागू नहीं किया जाएगा. संवैधानिक पद पर बैठे यह नेता संविधान के विरुद्ध बयान दे रहे हैं. ऐसे लोगों के खिलाफ संविधान और कानून के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही बेहद जरूरी है. यह सारे नेता संविधान की रक्षा के नाम पर पीएम मोदी और बीजेपी का विरोध करते हैं लेकिन स्वयं संविधान की मर्यादा को तार-तार करने सार्वजनिक बयान देते हैं. नागरिकता का मुद्दा केंद्र सरकार का विषय है. राज्य सरकारों की उसमें कोई भूमिका नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव सामने हैं इसलिए मुस्लिम मतदाताओं को कंसोलिडेट रखने के लिए यह सारे नेता ऐसी बयानबाज़ी कर रहे हैं.
शरणार्थियों का विषय मानवीयता का विषय है. ऐतिहासिक भूलों को सुधारने का विषय है. भारत में हिंदू, जैन, सिख,बौद्ध, ईसाई और पारसी धर्म की रक्षा का विश्वव्यापी संदेश देने का विषय है. भारत के पॉलिटिकल पूर्वजों की गलतियों को सुधार कर भारतीयता को गौरवान्वित करने का समय है. जिस कानून के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए उस कानून के खिलाफ पागलपन के स्तर तक राजनीतिक विरोध एक प्रकार से भारत का विरोध ही कहा जाएगा.
भारत के लोगों का भारत में शरणार्थी के रूप में रहने पर इन राजनीतिक लोगों को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन अगर इन शरणार्थियों को संविधान के अंतर्गत अधिकार और गरिमा दी जाती है तो उस पर उन्हें राजनीतिक आपत्ति इसलिए होती है क्योंकि दशकों तक जो काम उन्होंने नहीं किया वह उनके विरोधी राजनीतिक दल द्वारा किया गया है. वह काम भले ही अच्छा हो लेकिन उससे उनके मुस्लिम वोट बैंक का प्रभाव कम हो सकता है इसलिए यह कानून लागू नहीं होना चाहिए.
जानते समझते हुए घुसपैठियों और शरणार्थियों को एक ही तराजू पर रखने की कोशिश तुष्टिकरण में विश्वास रखने वाले दल कर रहे हैं. भारत के कई राज्यों में में रोहिंग्या मुसलमान घुसपैठियों के रूप में एक बड़ी समस्या बने हुए हैं. लेकिन जो देश के लिए समस्या बने हैं वही कुछ राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक के रूप में सत्ता तक पहुंचने का साधन भी बने हुये हैं. इसलिए उनके विरोध में प्रतिक्रिया नहीं दी जाती.
आजादी के नाम पर कुर्बान मूल रूप से भारतीय इन धार्मिक अल्पसंख्यकों को अधिकार देने का विरोध भविष्य के बड़े राजनीतिक संकेत कर रहा है. ऐसे शरणार्थी भी खुलकर सामने आ गए हैं. वे अपनी आजादी के लिए उन दलों और नेताओं का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें नागरिकता देने के विरोधी हैं. दिल्ली में बड़ी संख्या में शरणार्थी अरविंद केजरीवाल के घर और कांग्रेस मुख्यालय के सामने जबर्दस्त प्रदर्शन कर चुके हैं.
पीएम मोदी और भाजपा जहां शरणार्थियों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़कर संवैधानिक अधिकार देने की कोशिश कर रही है, वहीं विपक्ष सिर की गणना करते हुए वोट बैंक के नजरिए से राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. भारत का पॉलिटिकल विभाजन पाकिस्तान के रूप में अगर नहीं हुआ होता तो यह हालत निर्मित नहीं होते. वोट बैंक की राजनीति में पॉलिटिकल विभाजन का दौर अभी भी विकृत स्तर पर चलाया जा रहा है.
समाज में अपराधी भी हैं और राजनेता भी हैं. आपराधिक माइंड और राजनीतिक माइंड का अगर विश्लेषण किया जाए तो केवल दिशा का भेद दिखाई पड़ेगा. लक्ष्य में कोई भेद नहीं मिलेगा. लक्ष्य दोनों का कुछ हासिल करना है. जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य दिखाई पड़ रहे हैं, बड़े-बड़े राजनेता आर्थिक अपराध करके जेलों में बंद हैं. ऐसे राजनेताओं के माइंड और जेल में बंद अपराधियों के माइंड में क्या कोई अंतर कहा जा सकता है?
CAA के विरोध में मुख्यमंत्रियों का जो स्टैंड है वह भी पॉलिटिकल माइंड का आपराधिक स्टैंड ही कहा जाएगा. संविधान के सुरक्षा कवच में आपराधिक स्टैंड पर भी पॉलिटिकल लोगों को सजा मिलने में लंबा समय लगता है. इस प्रक्रिया को सहज-सरल और त्वरित बनाने की जरूरत है ताकि पॉलिटिकल लोग संविधान के संरक्षण में अपराध करने से भयाक्रांत रहें.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पूरी ताकत से यह बात कह रहे हैं कि CAA हर हालत में लागू किया जाएगा. शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी. शरणार्थियों में खुशी की लहर है. उनकी खुशी कई राजनीतिक दलों में गम पैदा कर रही है. जब किसी की खुशी, किसी को गम पैदा करती है तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति अपना जीवन वेदना और तनाव में गुजार रहा है. ऐसा व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों से भटका हुआ है. पद-प्रतिष्ठा और धन होने के बाद भी ऐसे व्यक्ति के पास सुख शांति का एहसास नहीं है.
सामान्य लोगों को मुख्यमंत्री का पद और उस पर बैठा व्यक्ति बहुत भाग्यशाली और गरिमापूर्ण लगता होगा लेकिन वोट बैंक की राजनीति के लिए मानवीयता और मानवता के खिलाफ संविधान की अवहेलना करने वाले मुख्यमंत्रियों का आचरण स्वयं के साथ ही नादानी कही जाएगी. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ वाले भारत में मूल रूप से भारतीय लोगों को ही नागरिकता देने के कानून के विरोध की मानसिकता भारतीय मानसिकता तो नहीं हो सकती.