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आप और कांग्रेस आत्म मंथन करें !

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 22 Feb

सार

यह भाजपा की स्वाभाविक जीत नहीं, बल्कि केजरीवाल ब्रांड की सियासत का ‘अंधकूप’ में गिरना है..!

janmat

विस्तार

और दिल्ली ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति को खारिज कर दिया। जनादेश भाजपा को मिला है, उसका 27 साल का ‘चुनावी वनवास’ समाप्त हुआ। कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला । ‘आप’ सरकार में मुख्यमंत्री रहे केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया और मंत्री रहे सत्येन्द्र जैन, सोमनाथ भारती, सौरभ भारद्वाज आदि चुनाव हार गए हैं। मुख्यमंत्री आतिशी अंतिम दौर में चुनाव जीतने में सफल रही हैं। केजरीवाल 4089 वोट और सिसोदिया सिर्फ 675 वोट से पराजित हुए। वैसे यह भाजपा की स्वाभाविक जीत नहीं, बल्कि केजरीवाल ब्रांड की सियासत का ‘अंधकूप’ में गिरना है।

पूरा चुनाव केजरीवाल के इर्द-गिर्द सिमटा रहा। बेशक ‘आप’ चुनाव हारी है, लेकिन उसे 43.57 फीसदी वोट हासिल हुए हैं। सत्तारूढ़ होने वाली भाजपा को 45.56 फीसदी वोट मिले हैं। मात्र 2 फीसदी वोट का ही अंतर रहा, लेकिन भाजपा ने 48 सीटों का ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया, जबकि ‘आप’ 62 सीटों से लुढक़ कर 22 सीटों पर आ गई। यकीनन यह अप्रत्याशित जनादेश है। 

‘आप’ का शीर्ष नेतृत्व पराजित हुआ है। इसके लिए केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं। यदि उनके साथ-साथ ‘आप’ की कट्टर ईमानदार, जन-लोकपाल वाली, भ्रष्टाचार-विरोधी और वैकल्पिक राजनीति वाली छवि भंग हुई है, तो दोष उन्हीं का है। आम मतदाता ने उनकी दोगली छवि को स्वीकार नहीं किया। केजरीवाल ने अपने मुख्य चुनावी वायदे भी पूरे नहीं किए और वह नया जनादेश मांगने सडक़ पर निकल पड़े। जनता ने उन्हें खारिज कर दिया।

एक सर्वेक्षण के दौरान लोगों ने बताया कि 2020 के जनादेश वाले कालखंड में केजरीवाल और ‘आप’ ने कुछ भी ‘नोटेबल’ नहीं किया, जिसके आधार पर एक और बार उन्हें जनादेश दिया जाए। यह निष्कर्ष भी सामने आया है कि दलित, महिला, मध्य वर्ग ने भाजपा के पक्ष में लबालब मतदान किया, नतीजतन भाजपा सत्ता तक पहुंच पाई। पिछले चुनाव तक ये समुदाय ‘आप’ के समर्थक और जनाधार माने जाते थे, क्योंकि केजरीवाल की नई छवि के साथ इन वर्गों ने उन्हें वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक माना था। अब सब कुछ बेनकाब हो गया। केजरीवाल भी बुर्जुआ राजनेता साबित हुए। वह भी भ्रष्टाचारी और पैसावादी हैं।

इस चुनाव ने सब कुछ बिखेर कर भी रख दिया, लेकिन अभी ‘आप’ का सफाया नहीं हुआ है। ‘आप’ अब भी एक राजनीतिक ताकत है, लेकिन केजरीवाल का पराजित नेतृत्व ही तय करेगा कि ‘आप’ के भविष्य का अस्तित्व क्या होगा? अलबत्ता इस चुनाव ने विपक्ष के ‘इंडिया’ वाले नेरेटिव और गठबंधन को ध्वस्त कर दिया है। लोकसभा चुनाव के जनादेश की व्याख्या यह की गई थी कि विपक्ष के पास कुल 234 सीटें हैं, लिहाजा वह मजबूत हुआ है। उसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली के चुनाव जीत कर भाजपा-एनडीए ने ‘इंडिया’ को लगभग बिखेर दिया है। 

इस चुनाव में ‘इंडिया’ के ही घटक दलों ने ‘आप’ का समर्थन किया और कांग्रेस का खुलेआम विरोध किया। नतीजा यह रहा कि कांग्रेस लगातार तीसरे चुनाव में ‘शून्य’ रही। दिल्ली में 70 में से 68 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई है।