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एकतरफा विचारधारा से ही मिला बीजेपी को सत्ता का किनारा

सार

​​​​​​​कांग्रेस ही बीजेपी को हरा सकती है इस बात को मानने में कोई दिक्कत नहीं है. यह मानना जरूर कठिन है, कि विचारधारा की पार्टी, कांग्रेस ही बीजेपी और संघ की विचारधारा को हरा सकती है. कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल गांधी जब यह बात ठोंक कर कहते हैं, तब तालियां तो बहुत बजती हैं, लेकिन यह बात कांग्रेस जनों के दिल तक नहीं पहुंच पाती है..!!

janmat

विस्तार

    सबसे पहले तो कांग्रेस को यह उत्तर खोजना चाहिए, कि कांग्रेस की विचारधारा के बीच में ऐसी क्या परिस्थितियां बनीं, कि बीजेपी और संघ की विचारधारा जीत गई. केवल एक बार नहीं तीसरी बार केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार काम कर रही है. कांग्रेस अभी भी एकतरफा विचारधारा अपनाने की गलती कर रही है. 

    सबसे पहले यह समझना जरूरी है, कि कांग्रेस की वर्तमान में विचारधारा क्या है? कांग्रेस की विचारधारा वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी, जातिवादी, राष्ट्रवादी, समतावादी, करप्शनवादी, मेरिटवादी, दक्षिणवादी, उत्तरवादी, अल्पसंख्यकवादी, उदारवादी, विनिवेशवादी, संविधानवादी, शरियावादी में से क्या है. 

    कांग्रेस पार्टी में तो अधिनायकवाद दिखता है, परिवारवाद दिखाई पड़ता है. पार्टी में जातिवाद दिखाई देता है. कांग्रेस की विचारधारा तो योग्यता विरोधी परिलक्षित होती है. अब तो कांग्रेस जातियों की जनसंख्या के हिसाब से, पार्टी में भी पद देने की बात कर रही है. विधानसभा और लोकसभा में प्रत्याशी चयन में तो सभी दल जातियों का ध्यान रखते हैं, लेकिन कांग्रेस जिस तरह से जातियों का विकराल स्वरूप लाने की कोशिश कर रही है, इसे पार्टी का कौन-सा वाद और कौन-सी विचारधारा माना जा सकता है.

    इंदिरा गांधी ने संविधान में सेकुलरवाद जोड़ा. कालांतर में कांग्रेस ने सेकुलरवाद को प्रेक्टीकल स्वरूप में सनातन विरोध के रूप में स्थापित कर दिया. धर्म जीवन से जुड़ा है, राजनीति ना जीवन से अलग हो सकती है, ना धर्म से अलग हो सकती है, राजनीति धर्म आधारित नहीं हो सकती, लेकिन धर्म को इससे अलग भी नहीं किया जा सकता. 

    आजादी के आंदोलन के लिए कांग्रेस का गठन हुआ था. इस महान पार्टी के पहले अध्यक्ष अंग्रेज थे. आजादी के आंदोलन में पार्टी का योगदान निश्चित रूप से इतिहास है. भारत के पुनर्निर्माण में भी कांग्रेस नेताओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. कांग्रेस का सारा कॉन्ट्रीब्यूशन इंडीविजुअल नेताओं के विचारों से जुड़ा हुआ है. इसमें विचारधारा का कहीं कोई महत्व दिखाई नहीं पड़ता. 

    सत्ता चलती रही, उसके लिए जो जितना जरूरी है, वह काम कांग्रेस करती रही. उन्हीं कामों को कांग्रेस अपनी विचारधारा मानती रही. विचारधारा किसी भी पार्टी का निरंतर प्रवाह है, जो राष्ट्र के बुनियादी मुद्दों पर हमेशा एक होता है. सत्ता रहे या ना रहे, विचारधारा नहीं बदलती. भारत में विचारधारा की राजनीति पर अडिग अगर कोई दल दिखता है, तो वह बीजेपी है. अपने बुनियादी मुद्दों को इस पार्टी ने कभी भी नहीं छोड़ा.

    कांग्रेस ने तो यही साबित किया है, कि सत्ता ही उनकी विचारधारा है. राहुल गांधी वर्तमान में कांग्रेस की सबसे बड़ी धारा हैं. उनके विचार, उनके एक्शन, उनकी यात्राएं उनके वक्तव्य, किसी विचारधारा से प्रेरित तो नहीं दिखते 

    कांग्रेस बीजेपी की राजनीति को कम्युनल और अपनी पार्टी को सेकुलर बताती है. यह उनका सबसे बड़ा विचारधारा का रंग है. क्या धर्म के आधार पर आरक्षण इस विचारधारा को समाप्त नहीं करता है. संविधान पर शरिया कानून को प्राथमिकता क्या धर्मनिरपेक्षता की हत्या नहीं है. समान नागरिक संहिता से किनारा क्या समतावादी समाज की विचारधारा का माखौल नहीं है. परिवारवाद और वोट बैंक की राजनीति की विचारधारा देश की कौन सी धारा का प्रतिनिधित्व कर रही है.

    क्षेत्रीय दल जो किसी परिवार द्वारा बनाए गए हैं, जिनका नेतृत्व उनके गठन से लेकर अब तक परिवार के लोग ही करते रहे हैं, उनमें और कांग्रेस में क्या अंतर है. क्षेत्रीय दलों की विचारधारा एन-केन प्रकारेण सत्ता तक पहुंचने की है. कांग्रेस क्या इससे अलग कुछ कर रही है. 

    कांग्रेस का इतिहास क्या सत्ता हथियाने की विचारधारा का नहीं है. इसी विचारधारा ने देश में जो राजनीतिक अनैतिकता, विभाजन, वोट बैंक की राजनीति का खेल खेला है. इसी खेल से उसने सत्ता भोगी है और आज इसी खेल ने उसे सत्ता से दूर किया है. कांग्रेस सनातन को नजरअंदाज करती है. सनातन कांग्रेस की नीति और विचारधारा से ना जुड़ाव महसूस करता है और ना ही सम्मानित महसूस करता है. 

    कांग्रेस नेताओं के जो भी एक्शन होते हैं, वह सब वोट बैंक को पोषित करते हैं. कांग्रेस सबसे बड़ी भूल यह कर रही है कि उसने यह मान लिया है, कि हिंदू और सनातन बीजेपी का वोट बैंक है. इसीलिए उनसे किनारा या बदला उनका वोट बैंक मजबूत कर सकता है.

    वह इसी नीति पर आगे चलती है. इसके विपरीत मुसलमान को अपना वोट बैंक मानती है और उनके लिए ही काम करने को प्राथमिकता देती है. कर्नाटक में ठेकों में मुस्लिम आरक्षण इसी नीति का हिस्सा है.

    देश में आर्थिक उदारीकरण की जनक कांग्रेस रही है. अब उसी कांग्रेस के नेता उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ़ काम करते हुए दिखाई पड़ते हैं. निजीकरण और विनिवेश की नीति कांग्रेस ही देश में लेकर आई थी और आज जब कांग्रेस के समय बनी विनिवेश की नीतियों पर अमल हो रहा है, तो कांग्रेस इसका विरोध करती है. अडानी-अंबानी को विनिवेश नीति के तहत अगर कोई पारदर्शी ढंग से संपत्तियां दी जाती हैं, तो उसे राजनीति का मुद्दा राहुल गांधी बनाते हैं. अब यह समझना मुश्किल हो गया है, कि कांग्रेस निजीकरण के पक्ष में है या इसके खिलाफ़ है. इसी तरीके का वैचारिक द्वंद कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट है.

    कांग्रेस को तो सबसे पहले यह सोचना चाहिए कि अगर वह कभी भी विचारधारा पर चल रही होती, तो कम से कम उस विचारधारा को मानने वाले तो उसके साथ अधिक खड़े रहते. यहां तक कि मुसलमान भी राम जन्म भूमि का ताला खुलवाने के बाद कांग्रेस से छिटक गए. क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व ही यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त है, कि कांग्रेस को धाराविहीन विचारों की धारा ने ही मारा है.

    कांग्रेस जब तक यह नहीं समझ पाएगी कि उसके विचारों और उसकी धारा में ऐसी क्या गड़बड़ी हो गई, कि जो बीजेपी, कभी दो सीटों से ज्यादा लोकसभा में जीत नहीं सकी थी,वह तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में सफल हो गई है. गठबंधन की राजनीति में भी कांग्रेस से ज्यादा सहयोगियों का बीजेपी में भरोसा दिखता है. जब कांग्रेस को अपनी गलतियां ही पता नहीं है, अभी भी वह मानती है कि उसकी कोई विचारधारा है, तो फिर तो कांग्रेस की धारा सूखने के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है.