मध्य प्रदेश के पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल सरकार के नुमाइंदों से जनता की मांग को लोगों की सरकार से भीख मांगने की आदत बताई. एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा नेता के आते ही मंच पर लोग माला पहनाकर एक पत्र पकड़ा देंगे जिसमें कोई ना कोई मांग होगी. यह आदत अच्छी नहीं है..!!
उनका भाव मुफ्तखोरी के प्रति जनमानस में बढ़ रही आदत पर चोट करना था. उन्होंने जो भी कहा भाव के स्तर पर तो उसमें खोट नहीं है, लेकिन चुनाव के स्तर पर सियासत पर सबसे बड़ी चोट है.
मुफ्तखोरी की सियासत जनता ने नहीं पैदा की है, बल्कि इसके जन्मदाता नेता ही हैं.आज राजनीतिक दलों के बीच मुफ्तखोरी की प्रतिस्पर्धा है. चुनावी घोषणा पत्र और संकल्प पत्रों में जनता को भीख देकर वोट ख़रीदने की आदत किसने विकसित की है? कम से कम जनता ने तो नहीं की.
जिस सरकार के माननीय मंत्री जनता की भीख की आदत पर रुष्ट हो रहे हैं, वह सरकार लाड़ली बहनों को नकद पैसे खातों में देकर ही बन पाई है. कोई दिन नहीं जाता जब सरकारें मुफ्तखोरी या रियायत पर जनता को लुभाने की राजनीति ना करती हों. बदलती राजनीति ही जनता को भीख माँगना सिखा रही है. लाभ लेकर वोट देने का करप्शन सिखा रही है.
सरकारों से मांगने की आदत, सरकारों द्वारा ही विकसित की गई है. केवल मांगने की नहीं, सियासत ने तो समाज में अनेक बुराइयों की आदत भी विकसित कर दी है. जिस तरह स्वार्थ की राजनीति विकसित हो रही है, उससे समाज में निस्वार्थ सेवा लुप्त होती जा रही है. दल-बदल समाज में स्वार्थ के लिए भाई से भाई के टकराने की आदत बढ़ा रही है. राजनीतिक करप्शन साम, दाम, दंड, भेद से धन संपत्ति हासिल करने की अनुचित प्रवृत्ति बढाने के लिए सियासत ही जिम्मेदार है. समाज में अपराधीकरण भी राजनीति का ही प्रोडक्ट कहा जाएगा. जितने भी अपराध हो रहे हैं, वह कहीं ना कहीं से जाकर सियासत से ही जुड़ जाते हैं.
सिस्टम में करप्शन की आदत के लिए भी सियासत जनता को ही जिम्मेदार ठहरा सकती है. मंत्रियों, नेताओं और अफसरों के घरों से जो करोड़ों रुपए जब्त होते हैं, वह भी जनता की ही गलती होगी. संविधान के नाम पर संविधान की रक्षा के लिए बनी सरकारें जब संविधान को अपने हितों के अनुरूप चलाने लगतीं हैं तो फिर सरकारी सिस्टम में आ रही खामियों के लिए जनता कैसे जवाबदार हो सकती है.
समाज आज दलाली के गिरफ्त में है, तो उसकी जड़ें भी सियासत से ही जाकर जुड़ती हैं. कोई भी काम बिना दलाली के संभव नहीं हो सकता. संप्रदायिकरण सियासत की आदत हो गई है. शिक्षा का व्यवसायीकरण और बिना दलालों के संस्थानों में प्रवेश पाना असंभव हो गया है. जनता की आदत पर तो महाज्ञान हमेशा दिया जाता है, लेकिन सियासत कभी भी अपनी जिम्मेदारी के प्रति ज्ञान का उपयोग नहीं करती.
किसी भी ढंग से पावर पर कब्जा करने की सियासत की आदत समाज में घुस गई है. इससे परिवार भी बिखर रहे हैं और टूट रहे हैं. विभिन्न दलों में सियासी परिवार सेवा से ज्यादा सुरक्षा के लिए सक्रिय दिखाई पड़ते हैं.
मंत्री महोदय ने जो भी बात कही है, भावनाओं के स्तर पर निश्चित रूप से उसमें दम है, लेकिन केवल जनता की आदत पर ही सवाल उठाना और सियासत की आदत पर आंखें मूंदे रहना कहां तक जायज है?
झूठ और फरेब, सियासत की आदत हो गई है. प्राकृतिक संसाधनों का बेतरतीब दोहन कर सियासी जेबें भरने का स्वभाव बन गया है. राजनीतिक बयानों में हमेशा यह झलकता है, कि अगर मन का नहीं हुआ तो सब खराब हो रहा है. और यदि मन का हो गया तो फिर उससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता. सियासत के मन की चाल न केवल सिस्टम की आदत बिगाड़ रही है बल्कि समाज की आदतें बिगाड़ने के लिए यही जिम्मेदार कहीं जा सकती है.
मंत्री महोदय पढ़े-लिखे नेता हैं. भारत सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. उनके विचार कई बार विवादास्पद रहते हैं लेकिन उनके चिंतन में थोड़ा नैतिक बल तो दिखाई पड़ता है. आज पूरा समाज नशे के गिरफ्त में है. नशे की आदत और नशे का सामान सरकारों द्वारा ही फैलाया जा रहा है. जिस तरह की सियासत देश में चल रही है उसमें सत्ता के लिए सब कुछ कुर्बान करने का स्वभाव राजनीतिक शैली हो गया है.
राजनीति पूरे समाज का थर्मामीटर है. वहां जो होता है, वह सब जिंदगी में होना शुरू हो जाता है. राजनीति में बुरा आदमी जब सफल होता है तो जीवन के सभी क्षेत्रों में बुरा आदमी सफल होने में लग जाता है और अच्छा आदमी यहीं हार जाता है और यही देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है.
मांगने की आदत एक बुराई है. एक राजनेता सत्ता में आने के लिए सभी अच्छे बुरे साधनों का उपयोग करता है. एक बार सत्ता में आने के बाद अगर बुरे साधनों का उपयोग शुरू हो जाता है तो जीवन की सब दिशाओं में बुरे साधन का प्रयोग होने लगता है. जब एक राजनीतिज्ञ बुरे साधन का उपयोग कर मंत्री हो जाता है तो एक गरीब आदमी मांगने के बुरे साधन का उपयोग कर अमीर क्यों नहीं होना चाहेगा.
राजनीति जितनी स्वस्थ होगी. जीवन के साधन उतने ही स्वस्थ होंगे. राजनीति के पास ही सबसे बड़ी ताकत है. अगर कमजोरों और गरीबों में कोई अशुभ आदत दिखाई पड़ रही है तो निश्चित रूप से उसकी जड़ें राजनीति के अशुभ से ही जुड़ीं होंगी. राजनीति में जो अशुद्धता है उसने जीवन के सब क्षेत्रो को अशुद्ध किया है.
भारत का लोकतंत्र सियासत की बुरी आदतों का ही शिकार बना हुआ है. यह सारी दुनिया की तकलीफ है. अगर चुनाव में दल से ज्यादा अच्छे व्यक्ति को चुनने की आदत विकसित हो जाएगी तो बड़ा परिवर्तन आ सकता है. बड़ी क्रांति हो सकती है.
इंसान आदतों का ही पुंज है. जनता भी इसी में फंसी है, तो सियासत भी आदतों का ही शिकार है. आदत बदलना आसान नहीं होता. इंसान पूरा जीवन आदतों के हिसाब से यंत्रवत चलता रहता है. समाज की बुराइयों और आदतों को बदलना सियासत की सेवा है. अगर सियासत बुरी आदत डालकर सत्ता का मेवा हासिल करने में लग जाएगी, तो फिर आदतों के लिए जनता नहीं बल्कि सियासत ही जिम्मेदार मानी जाएगी.