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​​​​​​​कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एक पहलू यह भी 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 22 Feb

सार

ओपनएआई ने बड़ी संख्या में गूगल के विशेषज्ञों को इस प्रोजेक्ट के लिये अपने अभियान में शामिल किया है। निश्चित रूप से इसके सक्रिय होने से कई तरह के बदलाव देखने में आएंगे..!!

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विस्तार

इस बात में कोई शंका शेष नहीं है, कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में यह क्रांतिकारी बदलावों की वाहक होगी। यह लगातार नई ताकतवर तकनीकों को जन्म दे रही है। इसी कड़ी में एआई तकनीक से लैस सर्च इंजन के सामने आने की बात कही जा रही है है। कहा जा रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संचालित यह सर्च इंजन कालांतर गूगल के सर्च इंजन की बादशाहत को चुनौती दे सकता है। 

ओपनएआई द्वारा निर्मित इस सर्च इंजन की कभी भी घोषणा हो सकती है। ओपनएआई ने बड़ी संख्या में गूगल के विशेषज्ञों को इस प्रोजेक्ट के लिये अपने अभियान में शामिल किया है। निश्चित रूप से इसके सक्रिय होने से कई तरह के बदलाव देखने में आएंगे। इस सर्च इंजन को लेकर इसलिए भी उम्मीदें बढ़ चुकी हैं क्योंकि ओपनएआई का दूसरा उपक्रम चैटजीपीटी पहले ही दुनिया में धूम मचा चुका है। इसकी सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2022 के अंत में शुरू हुए चैटजीपीटी के अब तक दुनियाभर में दस करोड़ मासिक उपयोग करने वाले हैं। कहा जा रहा है कि ओपनएआई के नये सर्च इंजन के अस्तित्व में आने से चैटजीपीटी की क्षमताओं का भी विस्तार होगा। यह माइक्रोसॉफ्ट समर्थित ओपनएआई की नई कामयाबी होगी। 

॰इससे कालांतर ज्ञान की तलाश में इंटरनेट पर सर्च इंजन का प्रयोग करने वाले जिज्ञासुओं को सटीक जानकारी मिल सकेगी। निश्चित रूप से सर्च इंजन से मिलने वाली जानकारी महज तकनीकी नहीं होनी चाहिए। अब चाहे मूल पाठ हो या अनुवाद उसमें मौलिकता की महक होनी ही चाहिए। निश्चित रूप से जानकारी तार्किक होने के साथ ही आसान भी होनी चाहिए। ऐसे में आने वाले समय में इंटरनेट जगत में नए एआई आधारित सर्च इंजन से नई क्रांति की उम्मीद की जा रही है।

विश्व  में सबसे युवा और प्रतिभाओं के देश भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस संचालित व्यवस्था में अपनी पकड़ बनाने के लिये नई पहल करनी होगी। अमेरिकी कंपनियों माइक्रोसॉफ्ट, गूगल आदि तमाम कामयाब कंपनियों में भारतीय मेधा अपना परचम लहरा रही है। इन्हीं कंपनियों के उत्पाद भारत का आर्थिक दोहन कर रहे हैं। निस्संदेह, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अपने खतरे हैं। हमारा मुकाबला एक ताकतवर तकनीक से है। विकास के लिये इसकी जरूरत भी है,लेकिन इसके खतरों से भी सावधान रहने की जरूरत है। भविष्य में ताकतवर देशों द्वारा इसके दुरुपयोग की संभावनाएं भी कम नहीं हैं। ऐसे में सावधानी के साथ इस दिशा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ कदमताल करने की भी है। लेकिन बाजार इसका उपयोग हमारे दोहन के लिये न कर सके। इसके नियमन के लिये आम लोगों के हितों की रक्षा हो सके। यह ऐसी आग व ऊर्जा है, सावधानी से उपयोग करें तो बेहद उपयोगी है ,लापरवाही हो तो बहुत घातक भी है। 

सरकारों को मौजूदा व्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों के प्रति चिंतित भी होना चाहिए। इसके नियमन के लिये सख्त कानून बनाये जाने चाहिए। इसका उपयोग मानव की भलाई के लिये हो तो अच्छी बात है, लेकिन इसका इंसान के काबू में रहना भी जरूरी है। पश्चिमी जगत के विशेषज्ञ भी चेता रहे हैं कि यदि हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खतरों के लिये खुद को तैयार नहीं कर पाए तो मानव सभ्यता के लिये यह घातक साबित हो सकता है। यह तथ्य विचारणीय है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिये यदि हम मशीनों को इंसानी सोच, उसी तरह कार्य करने व फैसले देने की क्षमता दे देंगे तो दुनिया के लिये कई तरह के खतरे पैदा होंगे ही। निश्चित रूप से भारत जैसे देश में जिसकी आबादी दुनिया में नंबर एक हो चली है, हर हाथ को काम देने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग के कितने खतरे हो सकते हैं, इसको लेकर भी देश के नीति-नियंताओं को गंभीरता से सोचना होगा।