स्टोरी हाइलाइट्स
एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा -- गुरुदेव ! परमात्मा की बिना आज्ञा के पत्ता भी नहीं हिलता है । हम जो कर्म करते हैं उसकी आज्ञा के बिना तो करते नहीं हैं , फिर उस कर्म के फल के रूप में हमें दंड क्यों मिलता है ।
परमात्मा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता
एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा -- गुरुदेव! परमात्मा की बिना आज्ञा के पत्ता भी नहीं हिलता है। हम जो कर्म करते हैं उसकी आज्ञा के बिना तो करते नहीं हैं, फिर उस कर्म के फल के रूप में हमें दंड क्यों मिलता है।
गुरुदेव ने शिष्य से पूछा -- क्या तुम्हारे घर में फ्रिज तथा रूम हीटर है ?
शिष्य ने उत्तर दिया -- हाँ गुरुजी!
गुरुदेव ने फिर पूछा -- यदि तुम बिजली का बटन दबाओगे तो फ्रिज तथा हिटर क्या काम करता है ?
शिष्य ने उत्तर दिया -- गुरुदेव! फ्रिज तो सामान को ठंडा करने का तथा हीटर कमरे को गर्म करने का काम करता है।
गुरुदेव ने शिष्य से फिर पूछा-- जब इन दोनों उपकरणों को बिजली समान रूप से मिलती है तथा इनको काम करने की स्वतंत्रता भी है, तो वे दोनों अलग-अलग कर्म क्यों करते हैं?
शिष्य ने उत्तर दिया -- जब इनके उपकरणों की बनावट अलग-अलग है तो फिर वे कर्म तो अलग-अलग ही करेंगे।
गुरुदेव ने उत्तर दिया -परमात्मा की कृपा सभी जीवों पर समान रूप से है, उनको कर्म करने की स्वतंत्रता भी दी गई है। इनके शरीर की बनावट अलग अलग होने के कारण इनके द्वारा किए गए कर्म समान नहीं होते हैं।
इनके शरीर की रचना तीन गुणों (सत, रज, तम) से हुई है तथा इनमे तीनों गुणों के अनुपात समान रूप में नहीं होते हैं, इसलिए इनके कर्मों में भिन्नता दिखाई देती है।
जब इन्हें कर्म करने की स्वतंत्रता दी गई है तो फिर दंड तो इन्हें ही दिया जाएगा। परमात्मा की कृपा सब पर समान रूप से है वे किसी के साथ भेद भाव नहीं करते हैं।
महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि-
" कोई कहे याको कर्म करता ,
सब बंधे आवे जावे ।
तीनों गुण भी करमे बांधे ,
सो फेर फेर फेरे खावे ।। "
क्या पूर्णब्रह्म परमात्मा इस नश्वर संसार में हैं ? आध्यात्मिक प्रश्न उत्तर भाग- 3
संसार में आवागमन का कारण कर्म है और इसके कारण सभी संसार में बंधे हुए हैं। इन कर्मों को भी बांधने वाला गुण है और इन सत, रज, तम तीन गुणों के द्वारा ही संकल्प-विकल्प रुपी विचार उत्पन्न होते हैं तथा इन विचारों से इच्छा उत्पन्न होती है। इच्छा से कर्म उत्पन्न होते हैं।
इस प्रकार कर्म का कारण ये गुण ही हैं। गुणों को ऊंचा उठाना और नीचे गिराना जीव का ही काम है। परोपकार रुपी पुण्य कर्म करने से सतोगुण की वृद्धि होती है । स्वार्थ रुपी कर्म करने से रजोगुण की वृद्धि होती है तथा किसी को दुख देने रुपी पाप कर्म करने से तमोगुण की वृद्धि होती है।
इस प्रकार कर्म के द्वारा ही गुण उत्पन्न होते हैं तथा गुणों के द्वारा ही कर्म की उत्पत्ति होती है। फल तो जीव को ही भोगना पड़ता है तथा फल को भोगने के लिए जीव को पुन: इस संसार में जन्म लेना पड़ता है। परंतु परमात्मा की तो सब जीवों पर समान रूप से कृपा रहती है ।
बजरंग लाल शर्मा