सनातन धर्म में चैत्र नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा की पूजा को समर्पित है। हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि शुरू होती है। इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से शुरू हो गई हैं। इस दौरान अलग-अलग दिन माता रानी के नौ रूपों की पूजा और व्रत करने की परंपरा है। ऐसे में नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। इस दिन विशेष रूप से मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। साथ ही जीवन में सुख-शांति के लिए भी व्रत रखा जाता है।
आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा के स्वरूप और पूजा विधि के बारे में।
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां चंद्रघंटा की पूजा और व्रत करने से साधक को जीवन में आध्यात्मिक शक्ति मिलती है और मां भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप अनोखा और अलौकिक है। धार्मिक मान्यता है कि मां चंद्रघंटा संसार में न्याय और अनुशासन स्थापित करती हैं। इसकी 10 भुजाएं अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित हैं। वह देवी पार्वती का विवाहित रूप हैं। माता चंद्रघंटा सिंह पर विराजमान हैं। देवों के देव महादेव से विवाह करने के बाद मां चंद्रघंटा ने अपने माथे पर अर्धचंद्र सजाया था।
चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठकर देवी-देवताओं का ध्यान करके दिन की शुरुआत करें। इसके बाद स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। अब मंदिर को साफ करें और गंगा जल छिड़कें। मां को फूलों की माला अर्पित करें। सिन्दूर या कुमकुम लगाएं। श्रृंगार का सामान चढ़ाएं। देसी घी का दीपक जलाएं, आरती करें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। फल और मिठाई अर्पित करें, इसके बाद प्रसाद वितरित करें।
मां चंद्रघंटा का मंत्र है-
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥