पांच दिवसीय दीपोत्सव मंगलवार 29 अक्टूबर से शुरू होगा। इस साल दो अमावस्या के कारण पांच दिवसीय दीपोत्सव छह दिन तक मनाया जाएगा। 29 अक्टूबर को धन्वंतरि जयंती के साथ-साथ खरीदारी के लिए भी बेहद शुभ मुहूर्त रहेगा। धन्वंतरि पूजा के साथ प्रदोष व्रत भी रखा जाएगा।
31 अक्टूबर को दिवाली पूजन का मुख्य समय प्रदोषकाल है। जिसमें स्थिर लग्न की प्राथमिकता रहती है। इस दिन वृष लग्न सायं के 06:37 मिनट से रात 08:33 तक है, जो दीपावली पूजन के लिए उत्तम समय है। इसके बाद अर्थ रात्रि में सिंह लग्न में रात्रि के 12:59 से रात 02:33 मिनट तक और कुंभ लग्न में भी दिन के 3:22 से दिन के 03:32 तक भी गणेश, कुबेर आदि दवेताओं का पूजन किया जा सकता है।
नरक चतुर्दशी का पर्व 30 अक्टूबर, बुधवार को मनाया जाएगा। इसे रूप चतुर्दशी, छोटी दिवाली, दक्षिण दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। शिव चतुर्दशी व्रत के साथ यम-काल की पूजा की जाएगी। इस दिन दक्षिण दिशा में चौमुखी दीपक जलाने से मृत्यु भय, कष्ट और पीड़ा से मुक्ति मिलती है। इस दिन अमृत सिद्धि योग भी रहेगा।
दीपावली का त्योहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार 31 अक्टूबर अमावस्या तिथि को महानिशा काल में कुबेर के साथ भ्रमण कर रहीं महालक्ष्मीजी की शुचिता और पवित्रता के लिए दोपहर 2.42 बजे से प्रतिष्ठानों और कारखानों में लक्ष्मी पूजन शुरू हो जाएगा। इसके बाद देवस्थान और गृहस्थ प्रदोषकाल सूर्यास्त के बाद दीपोत्सव मना सकते हैं। इस दिन लक्ष्मी कुबेर पूजा के साथ-साथ कुल देवता, पितृ देवता और वास्तु देवता सहित पंचदेवता की पूजा करना लाभकारी माना जाता है।
1 नवंबर को उदयकालिक अमावस्या तिथि शाम 4:30 बजे तक ही रहेगी। यह स्नान अमावस्या पर भगवान के पितृ श्राद्ध के समान फलदायी माना जाता है। इस दिन शाम से कई लोगों द्वारा दीपोत्सव की शुरुआत की जाएगी। अहीर और बाड़व समुदाय गाय की वंशावली को प्राथमिकता से चित्रित करने से शुरुआत करते हैं। इस दिन सुबह माता लक्ष्मी के लिए प्रदोष काल में घर के ईशान कोण और घर के बाहर दीपक जलाना शुभ होता है।
2 नवंबर शनिवार को अन्नकूट, गोवर्धन पूजा, बाली पूजा, गौ क्रीड़ा आदि उत्सव मनाए जाएंगे। 3 नवंबर, रविवार को भाई दूज का त्योहार होगा। इसके साथ ही चित्रगुप्त पूजा भी की जाएगी। इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार इस वर्ष पांच दिवसीय दीपोत्सव छह दिन तक मनाया जाएगा। इस दौरान व्रत और त्योहार मिश्रित रूप में रहेंगे। इसलिए यह पर्व त्रिगुण फलदायी माना जाता है।