लोकसभा में संविधान पर बहस के दौरान प्रियंका गांधी ने कहा कि 'हमारे देश में हजारों साल पुरानी धर्म की परंपरा है, ये परंपरा संवाद और चर्चा की रही है। दार्शनिक ग्रंथों, वेदों और उपनिषदों में एक भव्य परंपरा है। विभिन्न धर्मों में, इस्लाम, जैन और सिख धर्म में चर्चा और बहस की संस्कृति रही है। हमारा स्वतंत्रता संग्राम इसी परंपरा से जन्मा है।
यह सत्य और अहिंसा पर आधारित एक अनोखा विश्व युद्ध था। हमारा स्वतंत्रता संग्राम लोकतांत्रिक था, जिसमें हर वर्ग, जाति और धर्म के लोगों ने भाग लिया और आजादी के लिए संघर्ष किया। उस आज़ादी की लड़ाई से एक आवाज़ निकली, वो आवाज़ है हमारे देश का संविधान।
प्रियंका गांधी ने कहा कि ये सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है, इस संविधान के निर्माण में कई नेता वर्षों से लगे हुए थे। इस संविधान ने प्रत्येक नागरिक को सरकार बनाने और बदलने का अधिकार दिया है। संविधान को अपनाने से प्रत्येक नागरिक को यह विश्वास हुआ कि देश के निर्माण में उसका भी योगदान है।
मैं उन्नाव में रेप पीड़िता के घर गई थी, उसे जला दिया गया था। हम सभी के बच्चे हैं, हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं कि उन पर क्या गुजरी होगी। पीड़िता ने अपनी लड़ाई अकेले लड़ी। पीड़ितों और करोड़ों महिलाओं को ये लड़ने की क्षमता, ये साहस हमारे संविधान ने दिया है। मैं हाथरस गई, वहां अरुण वाल्मिकी थाने में सफाई कर्मचारी के पद पर कार्यरत था, चोरी के आरोप में उसकी पिटाई हुई और उसकी मौत हो गयी। उनके परिवार ने कहा कि हम न्याय चाहते हैं और हमारे संविधान ने उन्हें यह शक्ति दी है।
मैंने संविधान की धरती को जलते देखा है। हमारा संविधान एक सुरक्षा कवच है, जो नागरिकों को सुरक्षित रखता है। यह न्याय, एकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ढाल है।' बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सत्ताधारी दल के मित्र, उन्होंने पिछले 10 सालों में इस सुरक्षा कवच को तोड़ने की कोशिश की।
संविधान सामाजिक और आर्थिक न्याय का वादा करता है, उसे ख़त्म करने का काम शुरू हो गया है। यह सरकार लैटरल एंट्री के जरिये संविधान को कमजोर करने का काम कर रही है। अगर लोकसभा के नतीजे ऐसे नहीं आते तो संविधान बदलने का काम शुरू हो गया होता।
आज लोगों की मांग है कि जातीय जनगणना होनी चाहिए। आम चुनाव में ऐसे नतीजों के लिए सत्ता पक्ष ने इसका जिक्र भी किया। जब समूचे विपक्ष ने चुनाव में जाति गणना की आवाज उठायी तो सत्ता पक्ष ने गंभीरता नहीं दिखायी। संविधान ने आर्थिक न्याय की नींव रखी। जिन लोगों का नाम लेकर आप भूमि सुधारों का जिक्र करने से झिझकते हैं, वे वही लोग हैं जिन्होंने एचएएल, ओएनजीसी, आईआईटी और कई अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का निर्माण किया।
उनका नाम किताबों और भाषणों से मिटाया जा सकता है, लेकिन राष्ट्र निर्माण में उन्होंने जो भूमिका निभाई, उसे कभी नहीं मिटाया जा सकता। पहले जब संसद चलती थी तो लोगों को उम्मीद होती थी कि संसद मुद्दों पर चर्चा करेगी और अगर कोई आर्थिक नीति बनेगी तो वह उनके कल्याण के लिए होगी। नारी शक्ति की बात हो रही है, लेकिन हमारे संविधान ने महिलाओं को इतना सशक्त बनाया है, इसलिए आप नारी शक्ति की बात दोहरा रहे हैं। आज महिला सशक्तिकरण कानून क्यों लागू नहीं किया जा रहा?
संसद में बैठे सत्ता पक्ष के लोग अतीत की बात करते हैं, वर्तमान की बात करते हैं। देश को बताएं कि आपकी जिम्मेदारी क्या है, आप क्या कर रहे हैं। आज देश में सारे संसाधन एक ही व्यक्ति को दिये जा रहे हैं। एक व्यक्ति के लिए देश के 140 करोड़ लोगों का गला घोंटा जा रहा है।