क्या वेद सती प्रथा का समर्थन करते हैं? “सती होने के लिए वेद की आज्ञा नहीं हैं”


स्टोरी हाइलाइट्स

वैदिक काल के इतिहास में कहीं भी सती होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। महाभारत में माद्री के पाण्डु के मृत शरीर के साथ आत्मदाह का उल्लेख हैं जिसका सती...

क्या वेद सती प्रथा का समर्थन करते हैं? “सती होने के लिए वेद की आज्ञा नहीं हैं” वैदिक काल के इतिहास में कहीं भी सती होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। महाभारत में माद्री के पाण्डु के मृत शरीर के साथ आत्मदाह का उल्लेख हैं जिसका सती प्रथा से कोई सम्बन्ध नहीं हैं। मध्य काल में जब अवनति का दौर चला तब नारी जाति की दुर्गति आरम्भ हुई। सती प्रथा उसी काल के देन हैं। जहाँ तक वेदों का प्रश्न हैं सायण ने अथर्ववेद के मंत्र में सती प्रथा दर्शाने का प्रयास किया हैं। यहाँ पर सायण के अर्थों को देखकर अनेक शंका उत्पन्न होती हैं। वेद मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार हैं – यह नारी पुरातन धर्म का पालन करती हुई पतिगृह को पसंद करती हुई। हे मरण धर्मा मनुष्य , तुझ मृत के समीप नीचे भूमि पर बैठी हुई हैं। उसे संतान और सम्पति यहाँ सौप। अर्थात पति की मृत्यु होने के पश्चात पत्नी का उसकी सम्पति और संतान पर अधिकार हैं। हमारे कथन की पुष्टि अगले ही मंत्र में स्वयं सायण करते हुए कहते हैं “हे मृत पति की धर्मपत्नी ! तू मृत के पास से उठकर जीवलोक में आ, तू इस निष्प्राण पति के पास क्यों पड़ी हुई हैं? पाणीग्रहणकर्ता पति से तू संतान पा चुकी हैं, उसका पालन पोषण कर.’ मध्यकाल के बंगाल के कुछ पंडितो ने ऋग्वेद में अग्रे के स्थान पर अग्ने पढकर सती प्रथा को वैदिक सिद्ध करना चाहा था, परन्तु यह केवल असत्य कथन हैं। इस मंत्र में वधु को अग्नि नहीं अपितु अग्रे अर्थात गृह में प्रवेश के समय आगे चलने को कहा गया हैं। नारी जाति के विषय में वेदों को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। भारतीय समाज में वेदों पर यह दोषारोपण किया जाता हैं की वेदों के कारण नारी जाति को सती प्रथा, बाल विवाह, देवदासी प्रथा,अशिक्षा, समाज में नीचा स्थान, विधवा का अभिशाप, नवजात कन्या की हत्या आदि अत्याचार हुए हैं। किसी ने यह प्रचलित कर दिया गया था की जो नारी वेद मंत्र को सुन ले तो उसके कानों में गर्म सीसा डाल देना चाहिए और जो वेदमंत्र को बोल दे तो उसकी जिव्हा को अलग कर देना चाहिए। कोई नारी को पैर की जूती कहने में अपना बड़प्पन समझता था तो कोई उसे ताड़न की अधिकारी बताने में समझता था। इतिहास इस बात का साक्षी हैं की नारी की अपमानजनक स्थिति पश्चिम से लेकर पूर्व तक के सभी देशों के इतिहास में देखने को मिलती हैं। इस विषय में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह हैं की वेद इन अत्याचारों में से एक का भी समर्थन नहीं करते अपितु वेदों में नारी को इतना उच्च स्थान प्राप्त हैं की विश्व की किसी भी धर्म पुस्तक में उसका अंश भर भी देखने को नहीं मिलता । डॉ विवेक