नवदुर्गा के रूपों में औषधि.............................. नवरात्रि विशेष


स्टोरी हाइलाइट्स

नवदुर्गा के रूपों में औषधि नवरात्रि विशेष भारतीय वांडग्मय में ज्योतिष, और आयुर्वेद जैसे वेदांग भगवती दुर्गा के नवरूपों का प्रतीकात्मक रूप से वर्णन कर उनकी कृपा से मनोकामनापूर्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। सर्वप्रथम मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति में माता दुर्गा के नौ रूपों का औषधीय पौधों में निवास की कल्पना कर उनके माध्यम से रोग निवारण की प्रामाणिक बात कही गई है। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है। जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुंचाते हैं। मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति का यह पक्ष सामान्यतः गुप्त ही रखा गया है। लेकिन भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूपों का साररूप वर्णन दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्मा जी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। ये रूप वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियां है। ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है। ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन में करता है। इन समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं का काल कहा जाता है। शैलपुत्री हरड़ : प्रथम रूप शैलपुत्री माना जाता है। भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है। हरीतिका भय को हरने वाली है। पथ्या - जो हित करने वाली है। कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता - अर्थात अमृत के समान। हेमवती-अर्थात हिमालय पर होने वाली। चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी - अर्थात यश देने वाली है शिवा - कल्याण करने वाली। ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी : दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राम्ही आयु एवं स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राम्ही को सरस्वती भी कहा जाता है। क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है अतः इन रोगों से पीडित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए। चंद्रघंटा चनसूर : दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चनसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनियां के पौधे के समान दिखता है। इसकी पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिए इसको सर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, खत को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अतः इस बीमारी से संबंधित रोगी को मां चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए। कूष्माण्डा पेठा : दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं। यह कुम्हडा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक करता है एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को पेठा के उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए। स्कंदमाता अलसी : दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंदमाता है इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। "अलसी नीलपुष्पी पार्वती श्यामा क्षमा, अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरुः। । उष्णा दुष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।" इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए। कात्यायनी मोइया : दुर्गा का छटा रूप कात्यायनी है। इन्हें आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को कात्यायनी की माचिका, प्रस्थिकाम्बष्टा तथा अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका, खताविसार पित्त अस्त्र कफ कण्डामयापहस्य । कहकर आराधना एवं मोहया का सेवन करना चाहिए। कालरात्रि नागदैन : दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाए तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं समी विषयों की नाशक औषधि है। इसके सेवन के साथ ही कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीडित व्यक्ति को करनी चाहिए। महागौरी तुलसी : दुर्गा का अष्ठम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है, तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी,मरुता, दवना, कुछेस्क,अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है। तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी। अपेतराक्षसी महागौरी शूलघनी देवदुन्दुभिः तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत्। मरूदनिप्रदो हध तीखणाष्णः पित्तलो लघुः । इस के साथ ही देवी की आराधना भी सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए। सिद्धिदात्री शतावरी : दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात रोग नाशक है। हृदय को बल देने वाली महौषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक उपासना करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना एवं शतावरी का सेवन करना चाहिए।