द्वैत और अद्वैत: पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अद्वैत हैं
स्टोरी हाइलाइट्स
उपरोक्त वाणी में महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अद्वैत हैं। अद्वैत का तात्पर्य है कि उनके समान कोई दूसरा नहीं हो और...
द्वैत और अद्वैत: पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अद्वैत हैं
द्वैत और अद्वैत
" द्वैत आड़े अद्वैत के, सब द्वैते को विस्तार।
छोड़ द्वैत आगे वचन, कियो न किने निरधार।। "
उपरोक्त वाणी में महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अद्वैत हैं। अद्वैत का तात्पर्य है कि उनके समान कोई दूसरा नहीं हो और जिसमें एक ही भाव का बोध हो तथा वहाँ केवल आनन्द तथा प्रेम का भाव हो। उस अद्वैत परमात्मा के आगे द्वैत का पर्दा लगा रहता है जिससे उसको जानना सम्भव नहीं है। द्वैत का तात्पर्य है दो का भाव। इस द्वैत को ही माया कहते हैं।
ये भी पढ़ें.. अध्यात्म और दर्शन
इस संसार में दिन तथा रात दो शब्द है, ये दोनों शब्द कैसे बने? प्रकाश को दिन नाम दे दिया गया और अंधेरे को रात का नाम दे दिया गया। अगर अंधेरा होता ही नहीं तो रात शब्द की रचना नही होती। यदि अकेला दिन ही होता तो रात और दिन दोनों शब्द ही नहीं होते।
परमात्मा के धाम में उनके प्रकाश से ही सब कुछ प्रकाशित है वहां रात नहीं है, अंधेरा नहीं है इसलिए वहां दिन भी नहीं है। इसी प्रकार परमात्मा के धाम में आनंद ही आनंद है वहां दुख नहीं है। दुख नहीं है तो वहां सुख भी नहीं है क्योंकि सुख और दुख दोनों मिटने वाले हैं। लेकिन आनंद कभी मिटता नहीं है।
ये भी पढ़ें.. अध्यात्म क्या है:-जीवन में यह क्यों आवश्यक है -दिनेश मालवीय
परमात्मा के घर में काल नहीं है इसलिए वहां जन्म तथा मृत्यु शब्द नहीं हैं। परमात्मा के धाम में ब्रह्म आत्माएं और परमात्मा एक साथ आनंद मंगल से रहते हैं। वे कभी अलग नहीं होते हैं। वहां विरह शब्द नहीं है, जब विरह शब्द ही नहीं है तो वहां मिलाप शब्द भी नहीं है।
इस प्रकार परमात्मा के धाम में दो विरोधी शब्द नहीं है क्योंकि ये दोनों शब्द मिटने वाले हैं। वहां कुछ मिटता ही नहीं है, जो मिट जाता है वह द्वैत है।
जैसे- सुख और दुख, विरह और मिलाप, जन्म और मृत्यु, साहेब और बन्दा, सच और झूठ, विश्वास और अविश्वास, दोस्त और दुश्मन, असल और नकल, दूर और नजदीक आदि। अर्थात् जब दो विरोधी वस्तुओं का बोध हो तो वह द्वैत है।
ये भी पढ़ें.. शांति का महान लक्ष्य… वृत्तियों पर लगाम और मन पर कंट्रोल का अध्यात्म विज्ञान- P अतुल विनोद
इस मिटने वाले माया के संसार मे दो विरोधी तत्व हैं, अद्वैत परमात्मा के आगे इसी द्वैत माया का पर्दा है, चारों तरफ द्वैत का ही विस्तार है। सभी इसी द्वैत में ही उरझे हैं, किसी ने भी उस अद्वैत परमात्मा के विषय में नहीं बतलाया।
ये भी पढ़ें.. अध्यात्म(Adhyatma) का गूढ़ अर्थ… क्या आत्मा को जानना ही अध्यात्म है?
अतः अद्वैत ब्रह्म को जानने की राह में यह द्वैत जगत या दुई का बोध ही पर्दा है। इस जगत में जहां तक देखा जाए द्वैत का ही विस्तार है। द्वैत जगत को छोड़ इसके आगे का निश्चित ज्ञान किसी ने नहीं दिया।
प्रणाम जी,
बजरंग लाल शर्मा