स्टोरी हाइलाइट्स
उपरोक्त मंदिरों के अतिरिक्त वाई, अवढा नागनाथ, भाद्रचामल, कूर्मक्षेत्र, गुत्तेनदीवि, इन्दुरबौधन, याल्गुरु, तुलसीगिरि, कोर्वार, कोल्हार, मनुर....
दक्षिण भारत के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर
-दिनेश मालवीय
दक्षिण भारत में भी महावीर हनुमान की भक्ति में लोग किसी से पीछे नहीं हैं. देश के इस भाग से रामायण और श्रीराम के जीवन के कुछ बहुत महत्वपूर्ण प्रसंग जुड़े हुए हैं. इनमें ऋष्यमूक पर्वत, किष्किन्धा आदि प्रमुख हैं.
ऋष्यमूक पर्वत- यह स्थान हम्पी के पास बेल्लारी जनपद में स्थित है. हम्पी के मध्य में विरूपाक्ष मंदिर है. इस मंदिर के सामने सीधे जाने पर हम ऋष्यमूक पर्वत के पास चले जाते हैं. यह वही प्रसिद्ध स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम और वानरराज सुग्रीव के बीच मैत्री हुयी थी. यहीं पर हनुमानजी पहली बार श्रीराम से ब्राह्मण वेष में मिले थे. यहाँ तुंगभद्र नदी धनुषाकार बहती है. इसलिए वहाँ नदी में चक्रतीर्थ माना जाता है. चक्रतीर्थ के पास पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है, जिसमें लक्ष्मण और सीताजी की भी विशाल मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं.
किष्किन्धा- विट्ठलस्वामी मंदिर मार्ग पर नदी के उस पार आधा मील की दूरी पर अनागुन्दी गाँव है. इसीको प्राचीन काल में किष्किन्धा कहा जाता था. इससे कुछ आगे चलकर वह स्थान है, जहाँ श्रीराम ने सुग्रीव को अपने बल के प्रति आश्वस्त करने के लिए एक ही वाण से सात पेड़ों का वेधन किया था. यहाँ एक शिला पर श्रीराम के वाण रखने का चिन्ह है. इस स्थान के सामने तुंगभद्रा के उस पार वह जगह है, जहाँ श्रीराम ने बाली का वध किया था. सप्तताल-वेध से पश्चिम में एक गुफा है. कहते हैं कि बाली के वध के बाद भगवान् श्रीराम ने वहाँ विश्राम किया था. गुफा के पीछे हनुमान पहाड़ी है. नदी के उसी पर तारा, अंगद और सुग्रीव नाम के तीन पर्वत शिखर हैं.
अंजनी पर्वत- पम्पासर से एक मील दूर अंजनी पर्वत है. यह पर्वत बहुत ऊंचा है. पर्वत पर एक गुफा मंदिर है, जिसमें हनुमानजी और माता अंजनी की मूर्तियाँ हैं. कहते हैं कि यह माता अंजनी का निवास था.
माल्यवान पर्वत- श्रीराम ने वर्षाकाल यहीं बिताया था. विरूपाक्ष मंदिर से 4 मील पूर्वोत्तर में माल्यवान पर्वत है. इसके एक भाग का नाम प्रवर्षणगिरि है. इसी पर स्फटिकशिला मंदिर है. श्रीराम और लक्ष्मण ने वर्षा काल के चार महीने यहीं व्यतीत किये थे. इसी पर्वत पर लंका से लौटकर हनुमानजी ने अशोक वाटिका में बंदिनी सीताजी के अनुसन्धान के बारे में भगवान को बताया था.
श्री सुपारी हनुमान मंदिर- औरंगाबाद नगर के बिल्कुल मध्य बस्ती में “श्री सुपारी हनुमान” का प्रसिद्ध मंदिर है. इसमें हनुमानजी की बैठी हुयी पूर्वाभिमुखी मूर्ति है. मारुति के नेत्र चक्राकार होने के कारण मुँह पर दीप्ति छाई रहती है, जिसके कारण मूर्ति बहुत भव्य दिखती है. कहते हैं कि ये मारुति स्वयम्भू होने के कारण पहले सुपारी के आकार थे. धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते वे वर्तमान आकार के हो गये. इसीलिए उन्हें श्रीसुपारी मारुति कहा जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर में पूजा के बाद भक्तों को सुपारी का प्रसाद मिलता था, इसलिए उनका यह नाम पड़ा. परीक्षा देने जाने वाले छात्र यहाँ बड़ी संख्या में हनुमानजी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं.
भद्र मारुति स्थल- औरंगाबाद से ग्यारह मील दूर खुलताबाद कि दक्षिणी सीमा पर एक खुली पथरीली जगह में “भद्र मारुति” स्थान है. दर्शनार्थी को इस स्थान के समीप जाकर भी मूर्ति का दर्शन नहीं होता, क्योंकि हनुमानजी लेटे हुए हैं. चट्टान पर खुदी हुयी इस मूर्ति ऐसी नक्काशीदार है कि सिन्दूर से लिप्त होने पर भी उनके अवयव सहज ही पहचाने जाते हैं. केवल मूर्ति का मुख स्पष्ट नहीं होता, यही इसकी विशेषता है. यहाँ भक्तों की मनोकामना पूरी होने की बात भी कही जाती है.
पलगूर- कर्णाटक में हनुमानजी की सबसे अधिक मान्यता है. वहाँ श्री माधवाचार्य के शिष्यों ने तेरहवीं शताब्दी में बहुत हनुमान मंदिरों का निर्माण करवाया. इन मंदिरों में प्रतिष्ठित मारुति प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि उनकी पूंछ नक्काशी की हुयी है. विजयनगर के श्रीयंत्रोद्धार मारुति के अतिरिक्त इस प्रकार के विग्रह बीजापुर के पास अचनूर, धारवाड़ जिले में भी हैं. पलगूर एक छोटा-सा गाँव है. यह क्षेत्र शोलापुर-हुबली रेलमार्ग पर स्थित है. यहाँ की आठ फुट ऊंची मूर्ति बहुत भव्य है.
स्वयंप्रभा तीर्थ- रामायण में इस स्थान का बहुत महत्त्व है. सीताजी की खोज में निकले वानर जब निराश हो गये थे, तब एक गुफा में स्वयंप्रभा नाम की साध्वी ने उन्हें मार्गदर्शन दिया था. कड़ीनल्लूर स्टेशन से करीब आधा मील दूर श्रीराम मंदिर है, जहाँ हनुमानजी की भी एक विशाल मूर्ति है. पास ही पर्वत में एक गुफा है, जो 30 फुट लम्बी है. इसी गुफा में वानरों को स्वयंप्रभा के दर्शन हुए और उसने अपनी योगशक्ति से वानरों को समुद्र-तट पर पहुंचा दिया था.
उपरोक्त मंदिरों के अतिरिक्त वाई, अवढा नागनाथ, भाद्रचामल, कूर्मक्षेत्र, गुत्तेनदीवि, इन्दुरबौधन, याल्गुरु, तुलसीगिरि, कोर्वार, कोल्हार, मनुर, अगरखेड़, दोड़दारापुरम, बसवनगुडी, शियाली , मंजरथ, शुचीन्द्रम, कन्याकुमारी, नंदी दुर्ग. रामेश्वरम, हनुमात्कुंड आदि स्थानों पर हनुमानजी के बड़ी संख्या में मंदिर स्थित हैं.