हाई लेवल का कृत्रिम प्रकाश शाम के समय खासकर शिफ्ट बदलने के दौरान सबसे ज्यादा नींद को प्रभावित करता है। जो बॉडी क्लॉक को प्रभावित करती है। ऐसी स्थिति में दिमाग मेलाटोनिन कम स्त्रावित करता है। इन दिनों कृत्रिम प्रकाश का बड़ा स्त्रोत इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हैं। ये लाइट्स मस्तिष्क में सिग्नल देकर निर्माण होने वाले हार्मोन मेलाटोनिन को अव्यवस्थित कर देती हैं। शरीर में मेलाटोनिन कम बनने के कारण बॉडी क्लॉक अव्यवस्थित हो जाती है और खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।
बॉडी क्लॉक को नियंत्रित करता है दिमाग
ओसाका यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं समेत कई शोधार्थियों के मुताबिक सुपराक्यासमेटिक न्यूक्लियस (एससीएन) दिमाग का वह हिस्सा है जो बॉडी क्लॉक को नियंत्रित करता है। यूसीएलए और जापान साइंस एंड टेक्नोलॉजी एजेंसी भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिक चक्र भी प्रभावित होते हैं।
मेलाटोनिन का महत्व
फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी जर्नल में प्रकाशित, शोध के अनुसार कृत्रिम प्रकाश रात में शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है, खासकर महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर ऐसी रोशनी से महिला दूर रहे तो फर्टिलिटी और प्रेगनेंसी के दौरान भ्रूण में बेहतर डेवलपमेंट के साथ सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। मेलाटोनिन एक हार्मोन है जो शरीर में पीनियल ग्लैंड से स्वतः रिलीज होता रहता है,
जब अंधेरा होता है। इसलिए यह नींद आने में भी मददगार होता है। अण्डोत्सर्ग के दौरान के दौरान ये रसायन अंडों को सुरक्षा देता है और उसे क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। इसके अलावा यह शरीर से फ्री रेडिकल्स को बाहर निकालता है। ऐसी महिलाएं जो कंसीव करना चाहती हैं वे कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें और अंधेरे में ही सोएं ताकि मेलाटोनिन स्टीमुलेट हो और शरीर की बायोलॉजिकल क्लॉक न डिस्टर्ब हो ।
• गर्भधारण में बाधक है मोबाइल
मोबाइल फोन ऐसी डिवाइस है जो सभी इस्तेमाल करते हैं। खासकर देर रात को इसके इस्तेमाल से नींद प्रभावित होती है और अनिद्रा की समस्या हो जाती है। इस कारण तनाव का स्तर बढ़ता है और इनफर्टिलिटी की समस्या होती है। कृत्रिम रोशनी सबसे ज्यादा मेलाटोनिन के निर्माण को प्रभावित करती है जिसके कारण नींद में बाधा आने की दिक्कत आती है। महिलाओं में मासिक धर्म नियमित न होना, प्रेगनेंसी में बाधा आना, भ्रम की स्थिति बनना और बर्थ में दिक्कत होना जैसी समस्याएं सामने आती हैं। वहीं पुरुषों में कृत्रिम रोशनी के कारण शुक्राणु की क्वालिटी का स्तर गिरता है।
इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से निकलने वाली नीली रोशनी का प्रेग्नेंट महिलाओं और उनके बच्चे पर भी बुरा असर पड़ता है। कम से कम 8 घंटे की अंधेरे में नींद भ्रूण के विकास के लिए बेहद जरूरी है। अगर भ्रूण को एक तय मात्रा में मां से "मेलाटोनिन हार्मोन नहीं मिलता है तो बच्चे में कुछ रोगों जैसे एडीएचडी और ऑटिज्म की आशंका होती है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि आठ घंटे की नींद और हेल्दी डाइट •ली जाए। साथ ही कृत्रिम रोशनी से दूर रहा जाए खासकर रात में ताकि फर्टिलिटी को बेहतर रखा जा सके।