भोपाल: वन विकास निगम को एक बड़ी राहत मिली है। निगम को अब जीएसटी शुल्क के 22 करोड़ रुपए नहीं देने होंगे। केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central GST and Central Excise) के आयुक्त (अपील), भोपाल (म.प्र.) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में माना है कि ऐसी वन उपज GST कानून के तहत कृषि उपज की श्रेणी में आती है।
अपील आयुक्त ने यह भी निर्णय दिया कि वन विभाग से निगम को प्राप्त एजेंसी कमीशन GST से मुक्त है, चूंकि यह इमारती लकड़ी की बिक्री से संबंधित है जो कि कृषि उपज है।निगम के एमडी बीएन अम्बाड़े ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्त के एक याचिका दाखिल कर जुलाई 2017 से मार्च 2018 की अवधि के लिए ₹22 करोड़ से अधिक के कर, ब्याज और शास्ति की मांग को निरस्त किए जाने का आग्रह किया था।
निगम ने अपने तर्क में कहा कि मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम द्वारा विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) को डिपॉजिट वर्क श्रेणी के अंतर्गत वृक्षारोपण जैसे कार्यों के लिए प्रदान की जाने वाली सेवाएँ GST से मुक्त हैं, क्योंकि यह सेवाएँ ऐसी इमारती लकड़ी और अन्य वन उपज से संबंधित हैं जो वन भूमि में पेड़ों की कटाई से प्राप्त होती हैं और अंततः रेशा, ईंधन, कच्चा माल तथा इसी प्रकार के उपयोगों के लिए प्रयुक्त होती हैं।
अपील आयुक्त ने माना कि ऐसी वन उपज GST कानून के तहत कृषि उपज की श्रेणी में आती है। अपील आयुक्त ने यह भी निर्णय दिया कि वन विभाग से निगम को प्राप्त एजेंसी कमीशन GST से मुक्त है, चूंकि यह इमारती लकड़ी की बिक्री से संबंधित है जो कि कृषि उपज है।
ढुलाई खर्च भी GST से मुक्त..
इसके अतिरिक्त, निगम द्वारा इमारती लकड़ी को वन डिपो तक परिवहन करने पर किए गए ढुलाई खर्च को भी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत GST से मुक्त माना गया है, क्योंकि यह कृषि उपज के परिवहन से संबंधित सेवा है।
अपील आयुक्त ने निगम द्वारा सम्पहृत नीलामी में प्राप्त बयाने की राशि (EMD) पर लगाए गए GST की मांग को भी निरस्त कर दिया, यह मानते हुए कि यह अनुबंध के उल्लंघन पर देय क्षतिपूर्ति है, न कि किसी कार्य या स्थिति को सहन करने के बदले में प्राप्त प्रतिफल है। अतः यह करयोग्य नहीं है।
क्या था मामला..
इस आदेश के माध्यम से जुलाई 2017 से मार्च 2018 की अवधि के लिए ₹22 करोड़ से अधिक के कर, ब्याज और शास्ति की मांग को निरस्त कर दिया गया है। यह निर्णय निगम के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, क्योंकि ₹24 करोड़ से अधिक की समान प्रकृति के अन्य विवादित मामलात विभिन्न प्राधिकरणों के समक्ष लंबित हैं। यह निर्णय एक सकारात्मक मिसाल स्थापित करता है, विशेषकर ऐसे परिदृश्य में जब कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के अग्रिम निर्णय प्राधिकरणों (AAR) ने एक संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए वन उत्पादों को कृषि उपज मानने से इनकार किया था।