तोमर और सिंधिया के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई में हार गए वन मंत्री राम निवास रावत


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स्टोरी हाइलाइट्स

मंत्री की इस हार के पीछे भाजपा के वन मंत्री की हार का एक मिथक भी बताया जा रहा है..!!

भोपाल: मप्र के विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में वन मंत्री और भाजपा के प्रत्याशी रामनिवास रावत की हार पार्टी के दो नेताओं विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री जो ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल में चल रही वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा माना जा रहा है। हालांकि मंत्री की इस हार के पीछे भाजपा के वन मंत्री की हार का एक मिथक भी बताया जा रहा है, जिसमें विजय शाह को छोड़कर जो भी वन मंत्री रहा वह चुनाव हारकर हाशिये पर चला गया है। जंगल महकमे के आईएफएस-एसएफएस की नाराजगी भी रावत की हार का सबब रहा है। 

मप्र में विजयपुर और बुदनी के उपचुनाव में एक तरफ विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर का सबकुछ दांव पर लगा था तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर थी। बुदनी का रिजल्ट कांग्रेस के खिलाफ आने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन विजयपुर में भाजपा ने काफी ताकत लगा रखी थी। मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकार की तरफ से कुछ वादे भी किए गए थे जिसमें वन क्षेत्र में रहने वाले मतदाताओं को फायदा होने की बात तक कही गई। 

मगर अब भाजपा के खिलाफ नतीजा आया है, जिसमें मंत्री रहते हुए रामनिवास रावत 7364 वोटों से हार गए हैं। मगर इस हार से ग्वालियर-चंबल में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई सामने आई है। केंद्रीय मंत्री सिंधिया रामनिवास रावत के चुनाव प्रचार में नहीं गए। जबकि विजयपुर विधानसभा क्षेत्र सिंधिया का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। 

विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत को भाजपा ज्वाइन कराई थी मगर इससे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया खुश नहीं थे। रावत एक समय कांग्रेस में सिंधिया खेमे के उनके सबसे विश्वस्त साथी माने जाते थे लेकिन 2020 में सिंधिया का पार्टी छोड़ते समय उन्होंने साथ नहीं दिया था। वहीं, 2023 में विधानसभा चुनाव में वे विधायक बन गए लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों ने उनकी वरिष्ठता को नजरअंदाज कर उपेक्षा का भाव दिखाया तो वे तोमर का साथ लेकर भाजपा में पहुंच गए। 

इसको लेकर सिंधिया ने किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखाई लेकिन उपचुनाव में रावत के प्रचार के लिए वे विजयपुर में नहीं गए। रावत को इसका नुकसान चुनाव में दिखाई दिया और नतीजे आए तो उन्हें 7364 वोटों से हार मिली। यह हार उनकी नहीं बल्कि ग्वालियर-चंबल में भाजपा के दो दिग्गजों के बीच कथित रूप से चले वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम माना जा रहा है। 

विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी मुकेश मलहोत्रा को 21 में से 12 राउंड में भाजपा प्रत्याशी रावत से बढ़त मिली। मलहोत्रा को 15-16-17 राउंड में 3083 से लेकर 3547 वोटों तक की मिली जबकि रावत को अधिकतम बढ़त दूसरे राउंड में 2653, पांचवें राउंड में 2913 और सातवें राउंड में 2945 वोटों की मिली। मुकेश मलहोत्रा को एक लाख 469 वोट मिले तो रावत को 93105 मत ही मिले। 

शाह के अलावा बीजेपी नेताओं के लिए अशुभ रहा वन मंत्रालय..

कहा जा रहा है कि भाजपा सरकारों के वन मंत्रियों की हार होती रही है जिसमें विजय शाह एक अपवाद माने जा सकते हैं। वन मंत्री रहे चौधरी चंद्रभान सिंह, ढालसिंह बिसेन, गौरीशंकर शेजवार इस कड़ी में शामिल हैं और इन नामों में अब रामनिवास रावत का नाम भी जुड़ गया है। वैसे जंगल महकमे के मंत्रियों का इतिहास रहा है कि जिनके कार्यकाल में अवैध कटाई, चरम पर ट्रांसफर उद्योग और वन्य प्राणियों की मौतें हुई वह वन मंत्री कभी दोबारा चुनाव नहीं जीता। 

चौधरी चंद्रभान सिंह, ढाल सिंह बिसेन,  गौरीशंकर शेजवार और अब रामनिवास रावत वन मंत्री के रूप में चुनाव हारे। विजय शाह इसके अपवाद रहे हैं। रावत के पहले नागर सिंह चौहान को भी विवादों के चलते ही भाजपा सरकार ने वन मंत्रालय ले लिया था।