भोपाल: मध्यप्रदेश सरकार ने जिस दिन से राज्य के सत्रह प्रमुख हिन्दू धर्मस्थलों की नगरीय सीमा में आगामी वित्त वर्ष से मदिरा निषेध की घोषणा की है, भाजपा सहित हिंदुत्व के बहुसंख्यक झंडाबरदार फूले नहीं समा रहे हैं। सबके हाथ मुख्यमंत्री की जयकार में उठे हुए हैं और मन से मुखों तक तीर्थों की काल्पनिक पुण्य पुनीत सलिलाएँ छलक रही हैं।
अधिकांश अज्ञान और भावना में और कुछ इस घोषणा के गुप्त ज्ञान और कुटिलता के बोध से इतने उत्साहित हैं मानो सूबे की इन सत्रह नगरीय सीमाओं में भावी हिंदू राष्ट्र अतिशीघ्र साकार होने जा रहा है। मगर मदिरा निषेध की इस खुमारी में खोए लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भावनात्मक रूप से सुखद प्रतीत होने वाली इस घोषणा का व्यवहारिक पहलू इन तीर्थस्थलों सहित वहाँ के निवासियों के लिए कितना चुनौती भरा हो सकता है।
इस घोषणा में 'आँखों से काजल चुरा लेने वाली' परिपक्व राजनीतिक कुशलता भी है और अपने लोगों को आर्थिक रूप से उपकृत करने का परोक्ष उपक्रम भी है। शुचिता के नाम पर शुचिता की बलि है और समाज में शांति के नाम पर अशांति का अनुष्ठान भी है। मगर खुमारी का आलम यह है कि किसी को परदे के पीछे कुछ नज़र ही नहीं आ रहा। कुछ हैं जो पीछे झाँकना नहीं चाहते और कुछ जिन्हें नज़र आ रहा है उनके मुँह सिले हुए हैं।
सत्य तो यह है कि ये सपना सुखद है किंतु इसकी हकीकत भयावह है। जो इस स्वप्न में मुदित हैं वे मूर्ख हैं और जो इसकी भयावहता को जानते हुए भी चुप हैं वे डरपोक हैं। यक़ीनन मदिरा निषेध अनुकरणीय है लेकिन तब जब स्वबोध से हो। यह निषेध खतरनाक है यदि बलपूर्वक किया जाए। अनुशासन से घटे तो मदिरा निषेध मंगलमय है और शासन से घटे तो अमंगलमय है। इसमें जिसे ज़रा भी शक़ हो वे देश में मदिरा निषेध का इतिहास और सम्बंधित क्षेत्र व समाज पर उसके दुष्परिणामों का अध्ययन कर सकते हैं।
गाँधी का गुजरात और बुद्ध का बिहार देश के उन प्रमुख राज्यों में शुमार हैं जहाँ ज़माने से मदिरा निषेध है। कहने को मिजोरम और नागालैंड सहित देश के और कई नगर-कस्बे भी हैं मगर जो गुजरात और बिहार पूर्णतः मदिरा निषेध के लिए प्रचारित हैं, उनकी ज़मीनी हकीकत भला कौन नहीं जानता? इन राज्यों का शायद ही ऐसा कोई मोहल्ला होगा जिसमें मदिरा की दुकान न हो।
कारोबार वैध हो तो एक शहर में गिनती की दुकानें होती है और अवैध हो तो ग्राहक से ज़्यादा दुकानें हो जाती है। ये दो राज्य इसके साक्षात् उदाहरण हैं। मदिरा के सत्ता संरक्षित अवैध कारोबार के भी और अवैध मदिरा उत्पादन के भी।
इन दो राज्यों से लगभग हर साल आती विषैली मदिरा के सेवन से लोगों के बेमौत मरने की खबरें भी प्रमाण रूप में सामने धरी जा सकती है। सत्ता में बैठे लोग गाँधी या बुद्ध के नाम पर पवित्रता के कितने भी तराने गाए, उनकी कथनी और करनी का सच आप किसी भी आम गुजराती या बिहारी से पूछ सकते हैं।