देवास, खण्डवा एवं बुरहानपुर वनमंडलों से अब गोंद निकाला जा सकेगा


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स्टोरी हाइलाइट्स

मामला धार जिले की मनावर सीट से कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा ने एक पत्र लिखकर राज्य शासन के समक्ष उठाया था..!!

भोपाल: प्रदेश के तीन वनमंडलों देवास, खण्डवा एवं बुरहानपुर से अब स्थानीय आदिवासियों द्वारा गोंद निकाला जा सकेगा। इन वनमंडलों में गोंद निकालने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है।

दरअसल यह मामला धार जिले की मनावर सीट से कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा ने एक पत्र लिखकर राज्य शासन के समक्ष उठाया था। पत्र के जवाब में वन विभाग ने उन्हें अब सूचित किया है कि उक्त तीनों वनमंडलों में गोंद निकालने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है। ज्ञातव्य है कि यह गोंद धावड़ा और सलाई के पेड़ों से लिया जाता है लेकिन ज्यादा लाभ के चक्कर में माफिया व्यापारी जंगल के आदिवासियों को अप्राकृतिक तरीके से इथिफोन रसायन का इंजेक्शन लगाकर गोंद निकाले के लिये प्रोत्साहित करते हैं।

रासायनिक इंजेक्शन लगाने से इन पेड़ों को जहां पर्यावरणीय नुकसान होता है, वहीं पेड़ निर्धारित क्षमता से अधिक गोंद उगलते हैं जो सेहत के लिए खासतौर पर प्रसव करने वाली महिलाओं हेतु नुकसानदायक होता है और इससे 5-6 साल में वृक्ष नष्ट होने लगते हैं। इंजेक्शन से गोंद निकालने पर प्रतिबंध है। आमतौर पर गोंद निकालने की प्रक्रिया हर साल नवंबर से जून तक की जाती है। वनमंडलों के डीएफओ को अधिकार रहता है कि वे अप्राकृतिक तरीके से गोंद निकालने पर प्रतिबंध लगा सकें। लेकिन अब यह प्रतिबंध इस आधार पर हटाया गया है कि गोंद प्राकृतिक तरीके से वृक्ष को नुकसान पहुंचाये बगैर निकाला जा सकेगा।

उल्लेखनीय है कि वनों में गोंद सलई, गुग्गल, धावड़ा, कुल्लू, पलाश, खैर, बबूल एवं साजा आदि वृक्षों से मिलता है। सलई गोंद का उपयोग औषधीय रुप से पूजन व हवन सामग्री, पेंट तथा वार्निश निर्माण में किया जाता है तथा इसकी मांग पेपर, टेक्सटाईल, खाद्य उद्योग, फार्मास्युटिकल, पेट्रोलियम तथा अगरबत्ती उद्योग आदि में भी है। इससे सुगंधित तेल भी बनता है। जहां इसका निर्यात होता है वहीं इसकी महत्ता को देखते हुये इसकी तस्करी भी होती है। मप्र में सलई के वृक्ष उक्त तीन वनमंडलों के अलावा शिवपुरी, श्योपुर, ग्वालियर, खण्डवा, टीकमगढ़, बड़वानी, झाबुआ, सतना, अशोकनगर, गुना, मंडला एवं डिण्डौरी में भी पाये जाते हैं।