आयुर्वेद में मान्यता है कि हम सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं और हमारा स्वास्थ्य प्रकृति के साथ संयोग से बना होता है। इसलिए, हमें प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए, जैसे कि ऋतुओं के अनुसार आहार, व्यायाम और विश्राम का प्रबंधन करना।
आयुर्वेद में मान्यता है कि व्यक्ति का स्वास्थ्य त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के संतुलन पर निर्भर करता है। यदि दोषों का संतुलन विकृत हो जाता है, तो रोगों का उदय हो सकता है। इसलिए, आयुर्वेद में रोगों के उपचार में दोष संतुलन को बनाए रखने का महत्वपूर्ण स्थान है।
आयुर्वेद में स्वास्थ्य को संतुलित रखने और रोगों के उपचार के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूत्र (golden rules) हैं। नीचे कुछ ऐसे सूत्र दिए गए हैं जो आपके शरीर को मशीन बनाने में मदद कर सकते हैं:-
ऋतुचर्या (Seasonal Routine): आयुर्वेद में ऋतुचर्या का महत्वपूर्ण स्थान है। हर ऋतु में अपने आहार, व्यायाम और विश्राम को समयबद्ध रूप से प्रबंधित करने की सलाह दी जाती है। यह हमारे शरीर के लिए प्राकृतिक और संतुलित होने में मदद करता है।
आहार (Diet): आहार आयुर्वेद में स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको स्वस्थ और प्राकृतिक आहार लेना चाहिए, जिसमें सभी पोषक तत्वों का संतुलित मिश्रण हो। आहार को तृप्ति के साथ खाना चाहिए और भोजन करने के बाद पानी पीना चाहिए।
व्यायाम (Exercise): नियमित व्यायाम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। योग, प्राणायाम, ध्यान, ताई ची और अन्य शारीरिक गतिविधियां शरीर को मजबूत, सुचारू और तंदुरुस्त रखने में मदद कर सकती हैं।
विश्राम (Rest): पर्याप्त आराम लेना आयुर्वेद में महत्वपूर्ण है। रात्रि की नींद, ध्यान, आरामदायक क्रियाएं और स्वस्थ विश्राम के तकनीकों का पालन करना चाहिए।
जीवनशैली (Lifestyle): स्वस्थ जीवनशैली अपनाना आयुर्वेद में विशेष महत्व रखता है। तंबाकू, अत्यधिक शराब और नशीली पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। स्वस्थ और सकारात्मक संगत, संगत संगठनों के साथ समय बिताना चाहिए और स्थायी और स्थायी रूप से खुश रहने का प्रयास करें।