हिन्दी लोकोक्तियाँ-38 -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

हिन्दी लोकोक्तियाँ-38 -दिनेश मालवीय 1.   नाव कागज़ की कभी चलती है? धोखे का व्यवहार अधिक समय नहीं चलता. 2.   निकले हुए दांत फिर अन्दर नहीं जाते. भेद खुलने पर फिर छुपाया नहीं जा सकता. 3.   निरक्षर भट्टाचार्य बे पढेलिखे व्यक्ति के लिए व्यंग्य से कहते हैं. 4.   निर्धन के धन राम. गरीब को ईश्वर का ही भरोसा होता है. 5.   नीयत की मुराद. जैसी नीयत होती है, वैसा ही फल मिलता है. 6.   नीयत से बरकत होती है. जिसके विचार अच्छे होते हैं, वो ही उन्नति करता है. 7.   नेकी कर दरिया में दाल. किसीका उपकार कर उसे कहना नहीं चाहिए. 8.   नेकी-बड़ी रह जाती है. मरने के बाद्व्य्कती का यश-अपयश रह जाता है. 9.   नौकर बन कमाओ, राजा बन खाओ व्यक्ति को मेहनत से खूब कमाना चाहिए और खाने पीने में कसर नहीं रखना चाहिए. 10.  नौकरी खालाजी का घर नहीं. नौकरी करना आसान कम नहीं है. 11.  नौ नकद न तेरह उधार. नकद मिलने पर कम कीमत पर भी वस्तु बेच देना चाहिए, अधिक कीमत मिलने पर भी उधार में नहीं बेचना चाहिए. 12.  नौ सो चूहे खाकर बिल्ली हज को चली. जीवन भर पाप करने वाला व्यक्ति जब बुढ़ापे में बक्त बने तो व्यंग्य से कहते हैं. 13.  न्यारा पूत पड़ोसी दाखिल. घर से अलग होने पर बेटा भी पड़ोसी जैसा हो जाता है. 14.  पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली ही सही. बहुमत की बात माननी ही पड़ती है. 15.  पंछी के पानी पिए झील नहीं सूखती. निर्धन की मदद करने से धनवान कंगाल नहीं हो जाता. 16.  पंडित दूसरों को ही ज्ञान देता है. जो व्यक्ति दूसरों को उपदेश देता है और ख़ुद गलत काम करता है, उसके लिए व्यंग्य से कहते हैं. 17.  पगड़ी दोनों हाथों से थामी जाती है. मर्यादा की रक्षा बहुत सावधानी से की जाती है. 18.  पड़ोसी कान ही भरते हैं, पेट नहीं. पड़ोसियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए. 19.  पड़ोसी बतीस कुल का नाम जाने. पड़ोसी सभी भेद जानते हैं. 20.  पढाये पूत कचहरी नहीं चढ़ते. सिखाये-पढ़ाये व्यक्ति सफल नहीं होते, उनमें अपनी बुद्धि नहीं होती.