हिन्दी लोकोक्तियाँ-41 -दिनेश मालवीय 1. पीर की सगाई मीर के यहाँ. बड़े लोगों का सम्बन्ध बड़े लोगों से ही होता है. 2. पीहर के भरोसे ओढ़नी जलाना. यह सोचकर अपनी ओढ़नी जला देना कि मायके से कपड़े आ ही जायेंगे. भविष्य में किसी चीज के मिलने की आशा में वर्तमान में उपलब्ध चीज को नष्ट कर देना. 3. पूत सपूत तो क्या धन संचय, पूत कपूत तो क्या धन संचय. पुत्र अच्छा हो तो धन इकट्ठा करने की ज़रुरत नहीं है, क्योंकि वह ख़ुद अर्जित करा लेगा. पुत्र बिगड़ा तो तो भी धन इकट्ठा करने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि वह उसे बर्बाद कर देंगा. 4. पूरी रामायण हो गयी, सीता किसका बाप. ऐसे मूर्ख व्यक्ति के लिए व्यंग्य में कहते हैं, जो पूरी बात सुनकर भी कुछ नहीं समझ पाता. 5. पेट के पत्थर भी प्यारे. पाने बचे सभीको प्रिय होते हैं, चाहे अच्छे हों या बुरे. 6. पेट खाय तो आँख लजाये. जिसका खाते हैं, उसका लिहाज तो करना ही पड़ता है. 7. पेट खाली तो दिमाग खाली. भूख लगने पर दिमाग काम नहीं करता. 8. पेट पापी है. पेट भरने के लिए सभीको उचित-अनुचित काम करना पड़ता है. 9. पेट भरे की बातें. ऐसा तब कहा जाता है, जब कोई किसी काम के लिए अनुचित पारिश्रमिक माँगे या नखरे दिखाए. 10. पेट में आंत न मुँह में दांत. बहुत बूढ़े व्यक्ति के लिए कहा जाता है. 11. पेट में कतरनी होना. ऐसे व्यक्ति के लिए कहते हैं, जो ऊपर से सज्जनता दिखाए और भीतर से दुष्ट हो. 12. पेट में चूहे कूदना. बहुत भूख लगने पर कहते हैं. 13. पेट से सीखकर कोई नहीं आता. हर व्यक्ति करके और अनुभव से ही सीखता है. 14. पैदल और सवार का क्या साथ. गरीब और अमीर की दोस्ती नहीं निभती. 15. पैसा गांठ का विद्या कंठ की. जो धन पाने पास होता है और जो विद्या कंठ पर हो वही काम की होती है. 16. पैसा न हो पास तो मेला लगे उदास. जीवन में पैसे के बिना सब फीका है. 17. पोपले से हड्डी नहीं चबती. कमजोर व्यक्ति कठिन कम नहीं कर सकता. 18. पौबारा होना. चौपड़ के खेल में पौबार दांव बहुत अच्छा माना जाता है. किसीको बड़ा लाभ मिलने पर कहते हैं. 19. प्यास लगने पर कुआँ नहीं खोदा जाता. किसी भी काम के लिए पहले से तैयारी रखनी पड़ती है. 20. प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय. प्रेम न तो खेत में उगता और न बाजार में बिकता. दिल का सौदा होता है.