हिन्दी कविता: बेटी सृष्टि को जन्मदिन पर बेटी तुम्हे पढ़ना है
अंजना मिश्र
बेटी सृष्टि को जन्मदिन पर
बेटी तुम्हेपढ़ना है
कयोंकि तुम्हे उडना है
उड़ा सिर्फ पंखों से नही जाता
हौसलों से भी उड़ा जाता है
हौसलों के उडान की गति
पंखो की उड़ान से बहुत तेज है
पंख कतर दिये जाते है
पंख काटदिए जाते है
मगर हौसले कभी नही टूटते
हौसले कभी नही हारते
हौसलों से ही उड़ान है
पढना सिर्फउसकी कमान है
आसमान हो मुट्ठी में
लिख पाओ सब चिठ्ठी में
बांचो तुम दुनिया की भाषा
बन जाओ तुम सबकी आशा
पढना बहुत जरूरी है
तहजीब, संस्कृति श ऊरी है
अंत नहीं पढने का कोई
काटी फसल वही जो बोई
नन्हे नन्हे पौधे रोपो तुम
क,ख ग घ बोओ तुम
मेरे कहने भर से नहीं
अपने लिये पढो
उन तमाम तमाम औरतों के लिये पढो
जिनकी आवाज़ तुम्हे बनना है
जिनके मरे हुये सपनो को
तुम्हे आज पूरा करना है
सिर्फ अपने ही जीवन में नही
तुम्हे औरो के जीवन में भी रंग भरना है
रंग भरने के लिए चाहिए ताकत
ताकत से पहले करनी होगी
खुद अपनी हिफाजत
हिफाजत के लिये पढना जरूरी है
पढने के बाद गढना जरूरी है
माना तुम्हारे रास्ते में
बहुत से बंदरों की उछलकूद है
लेकिन दुनिया के नक्शे में
तुम्हारा आधा वजूद है
औरत मानवता का आधा हिस्सा है
गुजर गया वह समय
कि औरत कोई किस्सा है।
सादर अंजना मिश्र भोपाल से।