मध्यप्रदेश का इतिहास: मुगलों का आगमन

स्टोरी हाइलाइट्स
मुगलों का आगमन: पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर सन् 1526 में बाबर ने मुगल बादशाह के रूप में मध्यप्रदेश में प्रवेश किया।
मध्यप्रदेश का इतिहास: मुगलों का आगमन
मुगलों का आगमन: पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराकर सन् 1526 में बाबर ने मुगल बादशाह के रूप में मध्यप्रदेश में प्रवेश किया। बाबर ने ग्वालियर, चंदेरी और रायसेन पर अपना कब्जा जमाया। हुमायूँ ने मंदसौर को अपने कब्जे में लिया, उसके बाद उज्जैन, धार और माण्डू को अपने राज्य में मिलाया।
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बाद में मालवा पर शेरशाह और फिर अकबर का राज रहा। मालवा में जो भी मुगल सम्राट रहे उन्होंने कई ऐतिहासिक इमारतें बनवाई, विशेषकर मांडू पर इनका कुछ ज्यादा ही ध्यान रहा। अकबर ही वह शासक था, जिसने रानी दुर्गावती से युद्ध करने आसफ खां को गोंडवाना भेजा।
इस युद्ध में रानी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। अकबर यहां पर शक्तिशाली मुगल सम्राट के रूप में जाना गया। ओरछा के राजा मधुकर शाह और रीवा नरेश ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकारा। अकबर ने असीरगढ़ के किले पर अपना कब्जा जमाकर निमाड़ और खानदेश पर भी कब्जा जमाया।
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मुगल शासकों के पैर तो मध्यप्रदेश में जमते गए, मगर बुंदेलखंड के राजाओं ने मुगलों के सामने घुटने टेकने के बजाय विद्रोह का बिगुल फूंका और संघर्ष जारी रखा। बुंदेलों का नेतृत्व चम्पतराय ने किया।
1661 में वे दिवंगत हो गए, लेकिन पिता के पदचिंहों पर चलते हुए पुत्र छत्रसाल ने मुगलों के खिलाफ करीब पचास साल तक संघर्ष किया। उन्होंने इस क्षेत्र में अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। महाराजा छत्रसाल को अपनी संघर्षशीलता और जुझारू तेवरों के कारण आज भी याद किया जाता है।
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शिव अनुराग पटेरिया