मध्य प्रदेश का इतिहास खिलजी साम्राज्य


स्टोरी हाइलाइट्स

परमारों के बाद 14वीं शताब्दी के अंत तक मालवा खिलजी साम्राज्य का अंग बना। इसके बाद तुगलक सुल्तानों के साम्राज्य का एक प्रदेश बना रहा.......

मध्य प्रदेश का इतिहास खिलजी साम्राज्य खिलजी साम्राज्य  परमारों के बाद 14वीं शताब्दी के अंत तक मालवा खिलजी साम्राज्य का अंग बना। इसके बाद तुगलक सुल्तानों के साम्राज्य का एक प्रदेश बना रहा, यहाँ उनके गवर्नर नियुक्त होते रहे। जब तैमूर लंग से गड़बड़ी की स्थिति निर्मित हुई तब दिल्ली सुल्तान का साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा। इसी का लाभ उठाकर तत्कालीन गवर्नर दिलावर खां गौरी ने अपने पुत्र अलप खान के कहने पर सन् 1401 में अपने आप को स्वतंत्र घोषित करते हुए उसने अपने आप को बादशाह भी घोषित कर दिया। ये भी पढ़ें.. इतिहास 5 लाख साल पहले से 1945 तक.…..पांच लाख साल की भारत की हिस्ट्री सन् 1405 में दिलावार खान की संदिग्ध स्थितियों में मृत्यु हो गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अलप खान ने अपने पिता दिलावार खान को जहर देकर मार डाला था। दिलावर खां की मृत्यु पर पुत्र अलप खां था, जिसने हुशंगशाह की उपाधि धारण की यह अत्यंत प्रतापी था। मालवा के इतिहास पर नजर डालें तो यहाँ की राजधानी हर शासक के काल में बदलती रही। ठीक उसी तरह नवाबों ने अपनी राजधानी मांडू को बनाया। सन् 1436 में मालवा का राज्य महमूद खां खिलजी ने हथिया लिया और तब से खिलजी वंश के शासक वहां राज करते रहे। 1535 में गुजरात के बहादुर शाह ने मांडू पर अधिकार कर लिया। ये भी पढ़ें.. इतिहास: विजयनगर साम्राज्य ( संगम वंश ) इस तरह मालवा की स्वतंत्रता लुप्त हो गई। मांडू पर खिलजी द्वितीय का भी शासन रहा। 1530 में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने मांडू से खिलजी राजवंश का अंत किया और 1532 में रायसेन के किले को सिलहरी से छीन लिया। मालवा के गौरी और खिलजी सुलतानों के समय मांडू एक वैभवपूर्ण नगर रहा। इसके विशाल और सुरक्षित किले के भीतर बनी सैकड़ों इमारतों के ध्वंसावशेष आज भी इसकी वैभवगाथा सुनाते हैं। ये भी पढ़ें.. मध्यप्रदेश और गुप्तकाल :कैंसे राजा समुद्रगुप्त ने मध्यप्रदेश और दक्षिण पथ के राजाओं पर विजय हासिल की? साभार शिव अनुराग पटैरिया मध्य प्रदेश “संदर्भ”