कैसे हुयी माँ दुर्गा की उत्पत्ति
-दिनेश मालवीय
संसार में भारत ही ऐसा देश है, जहाँ सर्वशक्तिमान ईश्वर की स्त्री रूप में पूजा की जाति है. इसका मूल स्वरूप सर्वव्याप्त चेतना का है. श्रृष्टि के कण-कण लप अनुप्राणित करने वाली इस चेतना को ही देवी कहा गया है. उनके विभिन्न स्वरूपों यानि menifestations को ही अलग-अलग नामों से पुकारा गया है.
श्रृष्टि में दैवीय और आसुरी शक्तियाँ सदा से विद्यमान हैं. कई बार ऐसा समय आया जब आसुरी शक्तियाँ इतनी मजबूत हो गयीं कि दैवीय शक्तियाँ उनके सामने कमजोर पड़ने लगीं. ये शक्तियाँ देवताओं के साथ-साथ अच्छे सदाचारी, ईश्वर को मानने वाले और सहृदय लोगों पर घोर अत्याचार करने लगीं. इनके अत्याचार और अनाचार इतने बढ़ गये कि अच्छे लोगों का जीना दूभर हो गया. देवता अपनी तमाम योग्यताओं के बाबजूद इन लोगों की मदद करने में असमर्थ हो गये.
ऐसी स्थति में दुष्टों के विनाश के लिए परा-प्रकृति शक्ति से ही संबल की याचना करने का विकल्प रह जाता है. यह शक्ति सारी श्रृष्टि का आधार है. देवता और भक्त जब उनसे सहायता की याचना करते हैं, तो वह कोई रूप धरकर आततायियों का विनाश और अच्छे लोगों की रक्षा करती है.
श्रीमद देवी भागवत में एक कथा आती है. एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उपासना करते देखा. उनके मन में संदेह उत्पन्न हुआ कि ब्रह्माजी तो श्रृष्टि की रचना की है. भगवान् श्रीहरि विष्णु इसका पालन करते हैं. भगवान शिव समय आने पर इसका संहार करते हैं. भला ऐसे तीनों महान देवताओं के ऊपर कौन है, जिसकी ये देवता भी आराधना करते हैं. उन्होंने शिवजी के सामने अपनी जिज्ञासा प्रकट की. उन्होंने पूछा कि आप सर्वशक्तिमान हैं, फिर आप किसकी आराधना करते हैं. इसी प्रकार श्रीहरि विष्णु और ब्रह्माजी भी किसकी उपासना करते हैं?
भगवान् शिव बोले कि यह सच है कि हम त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश क्रमश: श्रृष्टि निर्माण, पालन और संहार का कार्य करते हैं. उनके अनुसार हम तीनों ही श्रृष्टि के कारण हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि सूक्ष्म और स्थूल से परे जो महाप्राण रूप आदि शक्ति है, वही स्वयं परब्रह्म है. वह सर्वसमर्थ है. वह सगुण भी है और निर्गुण भी. हम सभी उसके अधीन हैं.
शिवजी बोले कि धर्म की रक्षा और दुष्टों का विनाश करने के लिए वही आदिशक्ति समय-समय पर विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है. वह सांसारिक प्राणियों की समझ से परे है. जो लोग भक्ति की उपेक्षा कर सांसारिक भोगों को ही जीवन का लक्ष्य मानकर जी रहे हैं, उनके लिए तो इस शक्ति की कल्पना तक असंभव है.
इसी कथा में श्रीहरि विष्णु कहता हैं कि मैं भी देवी भगवती की आज्ञा के अधीन हूँ. हम तीनों देव इस महाशक्ति के आदेशों और इच्छा का पालन भर करते हैं. यह संसार में चेतना स्वरूप में प्रकट होने के कारण “चितस्वरूपिणी” भी कही जाती है.
एक समय जब दानवों के भयानक अत्याचारों से देवता बहुत परेशान हो गये तो वे ब्रह्माजी से रक्षा की प्रार्थना करने पहुँचे. ब्रहमाजी ने बताया कि दैत्यराज महिषासुर वरदान प्राप्त करके इतना शक्तिशाली हो चुका है कि उसे मारना बहुत कठिन है. वरदान के अनुसार, उसकी मृत्यु किसी कुँवारी कन्या के हाथों ही होगी.
ऐसी स्थिति में सभी देवताओं के सम्मिलित दिव्य तेज से देवी की उत्पत्ति हुयी. रूद्र भगवान् शिव के तेज से देवी के मुख की रचना हुयी. यमराज के तेज से उनके केश, श्रीहरि विष्णु के तेज से भुजाओं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, अग्नि के तेज से नेत्रों और अन्य देवताओं के तेज से उनके शेष अंगों की उत्पत्ति हुयी.
सभी देवताओं ने देवी को विभिन्न अस्त्र-शस्त्र समर्पित किये. शिवजी ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने अपना अमोघ शस्त्र सुदर्शन चक्र, अग्निदेव ने कभी समाप्त न होने होने वाला वाणों से भरा तरकश और वरुण देव ने उन्हें दिव्य शंख प्रदान किया. देवराज इंद्र ने देवी को अपना वज्र, और पर्वतराज हिमालय ने उन्हें सवारी के लिए सिंह समर्पित किया.
दिव्य तेज से युक देवी के अद्भुत स्वरूप के दर्शन मात्र से ही मनुष्यों के समस्त पाप धुल जाते हैं. जो व्यक्ति पतिदिन शुद्ध मन से देवी की उपासना करता है या नौ देवियों की अमर कथा का श्रवण करता है, उस पर जगदम्बा की अपार कृपा होती है.
विभिन्न अवसरों पर देवी माँ नौ स्वरूपों में प्रकट हुयी हैं. इसीलिए देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं. इन रूपों में
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्र्घंटा, कुष्टमांडा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी देवी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल हैं. नवरात्रि में हर दिन देवी के एक स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है.
दिनेश मालवीय