भोपाल: पहले से ही खरीदी और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द्र पर एक और आरोप लगा है। हाल ही में सत्तारूढ़ दल के पूर्व आदिवासी विधायक दुलीचंद उरेती ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि एमएफपी पार्क द्वारा सहकारी संस्थान होने का ढोंग किया जा रहा है।
उरेती का कहना है कि वन मेले में रॉ मटेरियल खरीदी के लिए आदिवासियों से, वन समितियों और वन धन केन्द्रों से अनुबंध किया जाता है पर उन सभी रॉ मटेरियल को टेन्डर के माध्यम से अपनी पसंद की फर्मों से खरीदी कर भ्रष्टाचार किया जाता है। इसी कड़ी में महंगी कीमत पर गूग्गल खरीदी प्रकरण में पहली बार एक प्रभारी एसडीओ को बचा लिया गया। जबकि एक एसीएफ की जांच में सेवानिवृत्ति पीसीसीएफ डॉ. दिलीप कुमार और सीसीएफ को आरोपी के घेरे में आ गए है।
वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं पूर्व विधायक उरेती ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में लिखा है कि वनों पर निर्भर अदिवासियों को सशक्त बनाने के लिये स्थापित किये गये इस प्रसंस्करण केन्द्र को अधिकारियों द्वारा अवैध खरीदी कर भ्रष्टाचार किया जा रहा है। साथ ही क्विड प्रो क्यो (किसी के बदले कुछ पाना) के द्वारा नियमों में बदलाव कर बड़े व्यापारियों को लाभ देकर पैसा कमाने का केन्द्र बना दिया गया है।
विधायक ने दावा किया है कि विगत 5 वर्षों का रिकार्ड निरीक्षण करने पर पता चलता है कि एमएफपी-पार्क द्वारा टेन्डर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार किया गया है। टेंडर की शर्त के अनुसार परफारमेंस गारंटी डिपोजिट करना जरूरी है पर फर्मों को लाभ देने के लिए परफारमेंस गारंटी डिपोजिट नहीं की जाती है। सहकारी उपक्रम होने के वाबजूद दवाईयों के उत्पादन के लिये उपयोग किया जाने वाला रॉ मटेरियल सहकारी समितियों से नहीं क्रय की जाती। टेंडर में ऐसी शर्ते लगाई जाती है, जिससे केवल व्यापारिक फर्मे ही टेंडर में हिस्सा लेती आ रहीं है।
8 वर्षों में 100 करोड़ रूपयें की वनोपज खरीदी..
पूर्व विधायक ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि लघु वनोपज प्रसंस्करण केन्द (एम.एफ.पी. पार्क) बरखेड़ा पठानी द्वारा विगत 8 वर्षों में 100 करोड़ रूपयें की वनोपज खरीदी की गई। आदिवासी नेता ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को लिखे शिकायती पत्र में उल्लेख किया है कि अधिकारियों द्वारा खरीदी नियमों के लिये बिना संचालक मंडल में अनुमोदन कराये अथवा वनोपज संघ से विभागीय अनुमोदन लिये बिना क्विड प्रो क्वो (किसी के बदले कुछ पाना) निविदा नियम बनाये ही रॉ मटेरियल खरीदी की जा रही है।
अभी हाल ही में एक मामला गुगुल खरीदी का है जिसमें एमओयू से व्यापारी से ही खरीदी की गई और मंहगे दर पर खरीदी कर के लाखों रूपये का नुकसान अधिकारियों द्वारा संस्था का किया गया।वनोपज खरीदी में अनियमिताओं में मिलीभगत में शामिल मुख्य कार्यपालन अधिकारियों और उत्पादन प्रबंधकों के भ्रष्टाचार की जांच गैर विभागीय तरीके से कराने का अनुरोध किया है।
व्यापारिक धर्म के लिए जोड़ते हैं शर्तें..
आदिवासियों के बीच काम करने वाले पूर्व विधायक उरेती ने अपने पत्र में उल्लेख किया है किअभी वर्तमान टेंडर मे ऐसी शर्ते लगाई है, जिससे केवल व्यपारिक फर्मे ही टेन्डर डाल सके। निविदा में 1 करोड़ टर्नओवर एवं लैब रिर्पोट की ऐसे नियम जोड़ दिए गए हैं जिससे न तो वनों पर निर्भर वन समितियां और न ही वनोपज के छोटे संग्राहक एवं व्यापारी खरीदी प्रक्रिया में शामिल हो सकें।
निविदाओं के माध्यम से उन वनोपज को भी क्रय किया जा रहा है जो कि प्रदेश के वनों में उपलब्ध हैं। आवंला, हर्रा, बहेड़ा, गिलोय, शहद गुड़मार, अर्जुन छाल, महुआ, नागरमोथा, धवई फूल, एरंडमूल, कंरजबीज, निरगुंडी, बला पंचाग, बबूल गोंद, बराहीकंद, सतावर, अष्वगंधा, चित्रक, बच इत्यादि वनोपज महंगे दरों पर व्यापारियों से क्रय किये जा रहे हैं।
गैर विभागीय समिति से जांच कराएं..
पूर्व विधायक ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वनोपज खरीदी के लिए जारी किया गया टेंडर तत्काल निरस्त किया जाए। उच्च स्तरीय गैर विभागीय जांच समिति गठित कर अधिकारियों द्वारा खरीदी में किए गए करोड़ों के भ्रष्टाचार एवं नियमों में बदलाव क्विड प्रो क्वो (किसी के बदले कुछ पाना) की निष्पक्ष जांच कराई जाए। प्रदेश के आदिवासी वनोपज संग्राहकों, वन समितियों, वनधन केन्द्रों के माध्यम से खरीदी करना सुनिश्चित कराया जाए। विगत 10 वर्षों में किए गए समस्त एमओयू एवं उससे कय की गई सामग्री, फर्म एवं भुगतान की जांच की जाये।