मक्का में जो पवित्र स्थान था, उसमें 360 मूर्तियां स्थापित थीं ? ब्रह्माँड के रहस्य -37 


स्टोरी हाइलाइट्स

Is there really a Shiva Linga in Makka Madina? , मक्का में जो पवित्र स्थान था, उसमें 360 मूर्तियां स्थापित थीं? ब्रह्माँड के रहस्य -37

ब्रह्माँड के रहस्य -37                          प्राण 12

रमेश तिवारी 
पवित्र गाय और उसके वृषभ परिवार की विश्व व्यापी स्वीकार्यता के संदर्भ में हम कल की कथा को आगे बढा़ते हैं। कुछ दिनों से वैदिक और ब्राह्मण ग्रंथों के उद्धरण देते, देते हम गाय, वृषभ और शंकर जी के विश्व व्यापी प्रभाव पर चर्चा करते हुए, इस्लाम के पूर्व के अरब में शिवलिंग (मूर्ति पूजा )के प्रसंग पर पहुँच गए थे।

मित्रो, मक्का में जो पवित्र स्थान था, उसमें 360 मूर्तियां स्थापित थीं। इस संबंध में भविष्य पुराण और पुस्तक 'तारीखे इस्लाम' के भाव एक ही हैं। तारीखे इस्लाम कहता है कि मोहम्मद साहब 20 रमजान को दल बल सहित वैतुल्लाह (पवित्र स्थान) की ओर गये और खुदा के घर को बुतों से पाक किया। बैतुल्लाह के आसपास 360 बुत रखे हुए थे। नबीं, धनुष के कोने या छडी़ की नोंक से हर एक बुत को गिराते जा रहे थे। और कहते जा रहे थे कि "हक आ गया और वातिल (असत्य और धोखा) चला गया।"

सनातन ग्रंथ भी यही कहते हैं कि काबा के मंदिर में 360 मूर्तियां रखीं थीं और प्रतिदिन एक मूर्ति की विशेष पूजा होती थी। मोहम्मद साहब द्वारा इस्लाम की स्थापना के समय अरब का वातावरण बहुत ही नकारात्मक था। चोरी, लूट, व्यभिचार, हत्या, डकैती, जुआ और शराब का बोलवाला था। अराजकता थी। ब्रह्म (एकेश्वर) के नाम पर लोग मूर्ति पूजा में लगे रहते थे। वहां शिवालय में वाम मार्ग का बोलवाला था।

                               ब्रह्माँड के रहस्य -37 

मक्का के शिवलिंग को, जिसको आज "संगे अस्वत:" का सम्मान है, भविष्य पुराण में "मक्केश्वर महादेव" कहा गया है। संगे अस्वद की पूजा पहले इसरायली और यहूदी भी करते थे। इस्लाम के आगमन तक पंडों के 4 कुल यहां पूजा करते थे। इजिप्ट-मैसिफ और अशीरिस प्रांत वासी नदी पर बैठे हुए त्रिशूल हस्त और व्याध्र चर्मधारी शिव मूर्ति की पूजा करते थे। बेबीलोन (ईराक) में 1100 फुट का शिवलिंग था। ब्राजील में अनेकों शिवलिंग हैं। कुछ समय पूर्व तक इटली में अनेकों ईसाइयों द्वारा शिवलिंग पूजने के लेख मिलते हैं। स्काटलैण्ड के ग्लासगो में सुवर्णाच्छादित शिवलिंग है।

फीजियंस में एटिव्स और निनवा में 'एसीर'नाम के प्राचीन और यहूदियों के देश में भी बहुत से शिवलिंग हैं। अफरीदिस्तान, काबुल, बलख, बुखारा में शिवलिंग हैं जिनको 'पंचशेर' और 'पंचवीर' नामों से पुकारते हैं। इंडोचाइना, कम्बोडिया, जावा, सुमात्रा में भी शिवलिंग की पूजन होती थी।

बेबीलोनिया, मिश्र, चीन और भारत सहित विश्व में शिव के अर्धनारीश्वर रूप की भी पूजा होती रही है। हमारे पुराणों में तो शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का वर्णन भी है। बाइबिल में भी, उनके अनुसार आदम, जो सँसार में सबसे पहले आया, स्त्री, पुरुष रुप में ही था। गाजी में प्राप्त सिक्के देवता 'अश्वात' की स्त्री, पुरुष रुपी दो आकृतियां थीं। यूनान में अपोलो और डायना (देवी देवता) की आकृति थी। बेबीलोन में माना जाता है कि जन्मे प्रथम पुरुष में दो सिर थे किंतु प्रतिनिधित्व स्त्री, पुरुष का था। मिश्र,यूनान,चीन जापान और भारत में कमल और कुमुदनी के फूलों को इसलिए महत्व दिया जाता था, क्योंकि इनमें स्त्री और पुरुष, दोनों का ही प्रतिनिधित्व माना जाता है ।

ब्रूसेनवर्ग लिखता है कि प्लोलमी, फिकाडे़ लफस के समय एक वृहद् लिंग की स्थापना की गई थी, जिसकी लंबाई 390 फुट थी। यह लिंग ऊपर से स्वर्णमंडित था। हिरोपोलिस में वीनस के मंदिर के सामने पत्थर का 200 फुट ऊंचा लिंग था। मिश्र में तो सांड को स्वच्छ स्थान में आरामदायक बिछौने पर बैठाया जाता था। विशेष चिह्नों वाले इस सांड को अच्छा भोजन और पवित्र कुयें का जल उपलब्ध कराया जाता था।

उत्सवों के समय सांड की विशेष पूजा और दर्शन किये जाते थे। मृत्योपरांत सुगंधित लेप के साथ उत्सव की तरह उसका अंतिम संस्कार किया जाता था। हमारी माताओं की तरह विश्व भर में भोजन के पूर्व रूंयें बनाये जाते थे, जिनका आकार योनि और लिंग की तरह ही होता था।