फर्जी सर्टिफिकेट से मंत्रालय में नौकरी, खुलासा होने के बाद भी कार्रवाई अटकी


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स्टोरी हाइलाइट्स

एक मामले में तत्काल सेवा समाप्त, तो दूसरे मामले में जांच की आड़ में लीपापोती..!!

भोपाल: फर्जी प्रमाण पत्रों से राज्य मंत्रालय में सेवा देने वाले प्रकरणों का खुलासा हो गया है बावजूद इसके इन पर कार्रवाई नहीं हो रही है, यह आश्चर्य का विषय है। जिम्मेदार अधिकारी लीपा पोती में लगे हैं इससे सरकार के सुशासन का सपना टूटता नजर आ रहा है।

पहला मामला..

आशीष कुल्हाडे, सहायक अनुभाग अधिकारी, गृह विभाग मंत्रालय को जाति प्रमाण पत्र गलत पाए जाने पर डिमोशन कर दिया गया है।  नतीजे में सहायक ग्रेड-2 बतौर कार्यरत हैं। 

दूसरा मामला..

कामिल खान, सहायक ग्रेड-3 के पद पर खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन पर विक्रम अवॉर्डी होने पर नौकरी मिली, लेकिन 12वीं फर्जी मार्कशीट उ.प्र. मदरसा बोर्ड की लगाई। बर्खास्त किया गया। 

तीसरा मामला..

शिखा पांडे चौरसिया, स्टेनो टाइपिस्ट, लेखा शाखा मंत्रालय का पीजीडीसीए  फर्जी मार्कशीट पेश की। तथ्यों सहित शिकायत के बाद भी महीनों से जांच शुरू तक नही हो सकी है।

यह बानगी है राज्य मंत्रालय में फर्जी दस्तावेजों से नौकरी पाने वालों के खिलाफ चीन्ह-चीन्ह कर कार्रवाई करने की। आरक्षित वर्ग के फर्जी जाति प्रमाण पत्रों से लेकर फर्जी शैक्षणिक मार्कशीटों से नौकरी हड़पने वालों के खिलाफ कार्रवाई में भेदभाव के चलते दो दर्जन मामले आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। 

दरअसल जीएडी में वर्ष 2017 में सुश्री शिखा पांडेय की नियुक्ति स्टेनो टाइपिस्ट के पद पर हुई थी, जिसके लिए हायर सेकंडरी के साथ हिंदी या अंग्रेजी स्टेनो परीक्षा 80 शब्द प्रति मिनिट के साथ एक वर्षीय कम्प्यूटर डिप्लोमा और मैप आईटी की सीपीसीटी परीक्षा पास होना जरूरी है। 

वर्ष 2017 में नियुक्ति हेतु शिखा पांडेय ने ये सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए और इनको जीएडी ने नियुक्ति भी दे दी। हालांकि चौंकाने वाला तथ्य है कि इंदौर आईटीआई से स्टेनो प्रमाण पत्र वर्ष 2015 में प्राप्त किया और उसी वर्ष  कंप्यूटर डिप्लोमा रायपुर स्थित कलिंगा यूनिवर्सिटी से नियमित छात्रा के तौर पर उत्तीर्ण किया। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री और जीएडी तक पहुंची, जिसमें खुलासा किया गया कि शिखा पांडेय ने वर्ष 2015 में इंदौर स्थित एक प्राइवेट संस्था में कार्य कर रही थीं, जिसका ईपीएफ कटौत्रा भी होता था। भविष्य निधि कटौत्रा पत्रक शिकायत में दिया है। हद तो यह है कि कलिंगा यूनिवर्सिटी रायपुर से 2015 में दूरस्थ शिक्षा से कोई भी कोर्स नहीं होता था, फिर भी कंप्यूटर डिप्लोमा पेश किया गया। 

दो दर्जन मामलों में जांच अटकी..

सूत्रों की मानें तो नियुक्ति के लिए फ्रेब्रीकेटेड सर्टिफिकेट और फर्जी निवास पत्र लगाने संबंधी दो दर्जन मामले जांच में लंबित है। इसके चलते घेरे में आने वाले कर्मचारी नौकरी में बरकरार हैं। जांच के लिए बार-बार संबंधित से पत्राचार किया जाता है और फिर समय गुजरने पर जांच फाइल ठंडे बस्ते में चली जाती है।