स्टोरी हाइलाइट्स
कल्याणेश्वर महादेव मंदिर : दूध और जल के अद्रश्य होने का रहस्य kalyaneshwar-mahadev-temple-the-mystery-of-milk-and-water-being-invisible
कल्याणेश्वर महादेव मंदिर : दूध और जल के अद्रश्य होने का रहस्य
उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में स्थित कल्याणेश्वर महादेव मंदिर :-
भगवान शिव के अभिशप्त गणों की मुक्ति करने वाले मुक्तीश्वर महादेव का पावन धाम अर्थात् गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ क्षेत्र में भगवान परशुराम ने तीन शिवलिंग स्थापित किए थे। जिनमें पहला शिवलिंग राजा नुहुष द्वारा बनवाए| नुहुष कूप के प्रांगण में मुक्तीश्वर महादेव का, दूसरा शिवलिंग नुहुष कूप के निकट मुक्तीश्वर महादेव मंदिर के पीछे झारखंडेश्वर महादेव का और तीसरा शिवलिंग गंगा के ही किनारे कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर है। कल्याणेश्वर महादेव का यह पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर दिल्ली से लगभग 80 किलोमीटर दूर दिल्ली-मुरादाबाद मार्ग पर स्थित गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ से चार किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।
भगवान शिव का यह मंदिर अपने में कई ऐतिहासिक रहस्यों को छिपाए हुए है, जिनके कारण इस मंदिर की दूर -दूर तक प्रसिद्धि है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां शिवलिंग पर भक्तों द्वारा चढ़ाया हुआ जल और दूध भूमिगत हो जाता है, इस रहस्य का पता आज तक नहीं चल पाया है। बुजुर्गों से सुना है कि एक बार अपने समय के प्रसिद्ध राजा नल ने यहां शिवलिंग का जलाभिषेक किया था, किंतु उनके देखते-ही-देखते शिव पर चढ़ाया हुआ जल भूमि में समा गया। यह चमत्कार देखकर राजा नल चौक गए और उन्होंने इस रहस्य को जानने के लिए बैलगाड़ियों से ढुलवाकर हजारों घड़े गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाया, किंतु इतना सारा जल कहां समाता चला गया, राजा नल इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए। अंत में इसे उन्होंने जगतपिता विषपायी भगवान शंकर का अलौकिक चमत्कार समझा और अपनी इस धृष्टता की भगवान शिव से क्षमा मांगकर वे अपने राज्य में लौट गए।
द्वापर युग में महाभारत के युद्ध में मारे गए असंख्य योद्धाओं की आत्मशांति के लिए पांडवों ने कार्तिक मास की चतुर्दशी को कल्याणेश्वर मंदिर के समीप गंगा में दीप-दान कर इसी मंदिर में कई दिनों तक पूजन-यज्ञ किया था। यज्ञ के पूर्ण होने पर पांडव यहां से सुरंग-मार्ग से अपने स्थान पर लौट गए, जिसका प्रमाण आज भी मंदिर के प्रांगण में देखा जा सकता है।
एक बार मुगल सम्राट औरंगजेब ने छल से मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी को बंदी बना लिया था, किंतु वे अपने अदम्य साहस और बुद्धिबल से कैट मे बाहर आने में सफल हो गए। इसे उन्होंने भगवान शिव की असीम कृपा मानी। शिवाजी ने तीन माह तक इसी मंदिर में रूद्र-यज्ञ किया था।
भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर दूर दूर तक विख्यात है। यह शिवभक्तों की श्रद्धा और आस्था का मुख्य केंद्र है। आस्था का केंद्र होने के कारण यहां शिवभक्तों का आगमन लगा रहता है, किंतु श्रावण मास में आने वाली शिवरात्रि और फाल्गुन मास में पड़ने वाली महाशिव रात्रि पर कल्याणेश्वर मंदिर में शिवभक्तों की अपार भीड़ रहती है। इन अवसरों पर असंख्य शिवभक्त हरिद्वार-ऋषिकेश से कांवड़ों में गंगाजल लाकर श्रद्धा भक्ति से भगवान कल्याणेश्वर का जलाभिषेक कर पुण्यार्जन करते हैं, अत: यह मंदिर शिवभक्तों के अतिरिक्त अन्य श्रद्धालुओं के लिए भी दर्शनीय है।
कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर गढ़मुक्तेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर मुक्तीश्वर महादेव से चार किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में वन क्षेत्र में स्थित है। भगवान शिव का यह मंदिर कई रहस्यों को छिपाए हुए है, जिनके कारण इस मंदिर की दूर-दूर तक प्रसिद्धि है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों द्वारा शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल और दूध भूमि में समा जाता है। न जाने वह जल कहां समा जाता है, इस रहस्य का पता आज तक नहीं चल पाया है।
कहा जाता है कि एक बार अपने समय के प्रसिद्ध राजा नल ने यहां शिवलिंग का जलाभिषेक किया था, किन्तु उनके देखते ही देखते शिव पर चढ़ाया जल भूमि में समा गया| यह चमत्कार देखकर राजा नल चौंक गए और उन्होंने इस रहस्य को जानने के लिए बैलगाड़ी से ढुलवा कर हजारों घड़े गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाया, पर वह सारा जल कहां समाता गया, राजा नल इस रहस्य का पता न लगा पाये। अंत में अपनी इस धृष्टता की भगवान शिव से क्षमा मांग कर अपने देश को लौट गए।
महारानी कुंती के पुत्र पांण्डवों ने भी झारखंडेश्वर मंदिर में पूजन - यज्ञ किया था। मराठा छत्रपति शिवाजी ने भी यहां तीन मास तक रुद्रयज्ञ किया था। भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए कल्याणेश्वर महादेव का मंदिर दूर-दूर तक विख्यात है| यह शिव भक्तों की आस्था का केन्द्र होने के कारण यहां शिवभक्तों का आगमन लगा ही रहता है, किन्तु श्रावण मास में आने वाली शिवरात्रि और फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि पर तो इस मंदिर में शिवभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
इस चर्चित पौराणिक और ऐतिहासिक शिव मंदिरों के अतिरिक्त कई अन्य मंदिर भी प्रसिद्ध हैं, जिनमें से गंगा मंदिर विशेष उल्लेखनीय है।