जाने ज्योतिष विज्ञान की गूढ़ बातें : भौतिक विज्ञान की तरह की एक शुद्ध एवं दैवी विज्ञान है एस्ट्रोलॉजी |


स्टोरी हाइलाइट्स

यह भौतिक अथवा रसायन विज्ञान की तरह की एक शुद्ध एवं दैवी विज्ञान है, जो देव कृपा से ही प्राप्त होता है । साईंस अथवा विज्ञान की तरह यह जानने के लिए साईंस के अर्थ जानने जरूरी है। ज्योतिष विज्ञान

जाने ज्योतिष विज्ञान की गूढ़ बातें : भौतिक विज्ञान की तरह की एक शुद्ध एवं दैवी विज्ञान है एस्ट्रोलॉजी  

हमारे परम पूज्य महर्षियों, मुनियों तथा विद्वानों की ज्योतिष विज्ञान दुर्लभ देन है। 



यह भौतिक अथवा रसायन विज्ञान की तरह की एक शुद्ध एवं दैवी विज्ञान है, जो देव कृपा से ही प्राप्त होता है । साईंस अथवा विज्ञान की तरह यह जानने के लिए साईंस के अर्थ जानने जरूरी है। 

Science के शाब्दिक अर्थ है। 

systematic knowledge, especially of the physical phenomena ; any branch of such knowledge; trained art or skill 

हिन्दी भाषा में इसके अर्थ हैं, साईंस, ज्ञान, विद्या, विज्ञान, शस्त्र, विज्ञान की कोई शाखा, कौशल। ज्योतिष विज्ञान तो है ही! परन्तु ज्योतिष एक कला भी है क्योंकि गृहों, राशियों, ग्रहों, ग्रहयोगों तथा ग्रहों की दृष्टि के सामंजस्य व तादतम्य की कसौटी पर परख के फलादेश किया जाता है, तो फिर यह कला नहीं तो और क्या है ?

भारतवर्ष में ज्योतिष विज्ञान का वैदिक काल से ही प्रमुख स्थान रहा है। दूरबीन के बिना गणित और फलित ज्योतिष में जितनी खोज व प्रसार प्राचीन काल में भारत में हुआ शायद ही किसी अन्य देश में हुआ हो। ज्योतिष विज्ञान का सम्बन्ध सारे जगत से है। और जगत क्या है? सूरज के इर्द गिर्द आस-पास चन्द्र सहित पृथ्वी, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु व शनि आदि समस्त ग्रह घूम रहे हैं। इन सबको सौर जगत अथवा सूर्य का परिवार भी कहा जाता है। परम पूज्य महषियों, मुनियों, विद्वानों ने सूर्य आदि समस्त ग्रहों की गति प्रभाव आदि का सम्पूर्ण अध्यन करके एवं जो कुछ भी उनके अनुभव में आया को भलीभांति सोच विचार तथा सिद्धांतों की कसौटी पर परख कर जिस विज्ञान अथवा शास्त्र का निर्माण किया उसे ही ज्योतिष विज्ञान अथवा ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। 

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देव-कृपा तपस्या, साधना श्रद्धा, आस्था और अनुभवी ज्ञान इसका आधार है। यह कोई खेल-तमाशा, जादू-टोना, अन्धविश्वास, अनुमान लगाने अथवा कल्पित विद्या नहीं है। यह तो परम पूज्य महर्षियों, मुनियों अथवा विद्वानों द्वारा आस्थापूर्वक की गई घोर तपस्या व आध्यात्मिक अभ्यास का फल है जिससे उन्होंने दिव्य दृष्टि प्राप्त कर ली थी एवं इसके द्वारा वे ग्रहों की स्थिति, मनुष्य जाति पर उनके प्रभाव तुरन्त जान लेते थे। उन्हें ग्रहों की दिव्य भाषा. ग्रहों के संदेश का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता था। ऐसा प्रतीत होता था मानो ग्रह बोलते हों और बातचीत करते हों। इसलिए तो ज्योतिष को ग्रहों का संदेश भी कहा जाता है। 

ज्योतिष शास्त्र वेदों जितना ही प्राचीन है, इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता है। माननीय पाठक वृन्द ज्योतिष का इतिहास सृष्टि की रचना जितना ही पुराना है। परम पुज्य महर्षि गर्ग के अनुसार ज्योतिष विज्ञान का प्रतिपादन सृष्टि की रचयिता ने स्वयं किया तथा रचयिता ब्रह्मा जी ने ज्योतिष के सब मूल भेद उन्हें बताए यह मान्यता है कि महर्षि गर्ग से ही अन्य ऋषियों, मुनियो तथा विद्वानों ने यह विद्या ग्रहण की। 

पुरातन काल में प्रत्येक पाठशाला में इस विद्या की पढ़ाई अत्यावश्यक थी। गुरु से शिष्य तक एवं इसी प्रकार ज्योतिष विज्ञान का प्रसार भारत में होता रहा। यह दिव्य ज्योति फैलते फैलते सारे विश्व में फैल गई। भारत की इतिहास महान ज्योतिषयों विद्वानों से भरा पड़ा है, जिन्होंने पूज्य पीरों, संतों, महात्माओं के इस पृथ्वी पर आने की बहुत अग्रिम भविष्यवाणी कर रखी थी। 




प्राकृतिक विपतियों, युद्दों एवं विशेष घटित होने वाली घटनाओं के सम्बन्ध में यह लोग लोकहित के दृष्टिगत पूर्व घोषणा कर देते थे। गर्ग, विद्वा गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, वृहस्पति, भडाला, देवास्वामी मुनीथा, परसारा, ऋषिपुता साका, सप्तर्षि सारावाथा, सत्याचार्य, वराहमीहीरा, भटोटपला पृथ्यु आसास (वराहमहीरा के पुत्र) ऐसे पूज्य मर्हिष, मुनि, विद्वान तथा ज्योतिष शास्त्री हुए हैं, जिन्हें इतिहास सदैव स्मरण रखेगा। 

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भटोटपला का प्रश्न ज्ञान कालिदास का उत्तराकलामृत पृथ्यु अनास का शतपंचासिका एवं भृगु के महान ग्रंथ ज्योतिष विज्ञान को एक बहुमूल्य देन हैं। भारत में ऐसे पूज्य मर्हिष भी हुए हैं जो 20वीं शताब्दी में जन्म लेने वाले व्यक्तियों की ठीक जन्म समय घटनाएं व समस्य जीवन का हाल बता सकते थे, जिनमें महर्षि भृगु प्रमुख थे। इनके कारण अब भी ज्योति | विज्ञान जीवित है। इसके द्वारा रचित आज भी उतने ही खरे उतरते हैं जितने पहले उतरा करते थे। फिर भी आज के युग में खोज निरंतर जारी है। जयपुर विश्वविद्यालय में ज्योतिष शिक्षा को शामिल किया हुआ है। भारत के प्रमुख नगरों में अनेक ज्योतिष खोज केन्द्र काम कर रहे हैं। ज्योतिष को कम्प्यूटर के घेरे में लाया गया है। भारत में ही नहीं, दुनिया के समस्त देशों में ज्योतिष विज्ञान का पूरा सम्मान है तथा निरन्तर खोज हो रही है।

सहृदय पाठकजन! दुनिया के कई प्रमुख देशों में ज्योतिष विज्ञान का बहुत पहले प्रसार हो चुका था। पश्चिमी देशों में यह आम धारणा है कि विद्वान सेठ ( 3769 बी.सी.) विश्व का प्रथम ज्योतिष हुआ है।

अरब, मिस्र, यहूदी तथा फ्रांस वासियों के पुरातन, ग्रन्थों पुस्तकों में ऐसे ही संकेत मिलते हैं। यह भी ख्याल किया जाता है कि कोई 2600 वर्ष पहले कालडीयन ने ज्योतिष का गूढ़ अध्ययन किया और ज्योतिष विज्ञान की खोज एवं प्रसार में बहुत योगदान दिया। इस काल को ज्योतिष विज्ञान का स्वर्णिम काल कहा जाता है। पाईथोगोरियन ने ज्योतिष विज्ञान में अथाह वृद्धि की तथा परिणामस्वरूप यूनान में ज्योतिष विज्ञान पूर्णरूपेण प्रभावी हो गया था। अनेक विद्वानों का कथन है कि मिस्र में तो ज्योतिष विज्ञान 5000 बी.सी. में ही फैल चुका था। फ्रांस के राजा, महाराजा ज्योतिषों का बहुत आदर-सत्कार करते थे। 

चीन में सम्राट फो ही 2752 बी.सी.) को समय में शास्त्र का बोलबाला था। ज्योतिषी समस्त राज्य के कार्य क्लापों को नियमबद्ध करते थे। फ्रांस के हैनरी कौरनेलियस अगरीपा बड़े ही सम्माननीय एवं प्रसिद्ध ज्योतिष हुए हैं। सन् 711 ए. डी. में स्पेन में  ज्योतिष विज्ञान फैल चुका था। जोहन डी महारानी एलिजबैथ के मनभाते ज्योतिषी थे। के अल्बू माजार बगदाद के बहुत बड़े ज्योतिषी हुए है। 

भारत की तरह वुलह पश्चिमी देशों के कई ऐसे ज्योतिषी हुए हैं जिन्होंने कई महत्वपूर्ण और चकित कर देने वाली भविष्यवाणियां की है। कीरो ने 1925 ए.डी. में ही भारत के विभाजन सम्बन्धी भविष्वाणी कर दी थी। फ्रांस के पूज्य संत नोखादम की तीन सौ वर्ष पश्चात भी भविष्वाणियां ठीक-ठीक सिद्ध हो रही हैं। ऐलन, ल्यू. डब्ल्यू लिलि, जार्ज ऐगरिपा जोहन डी. ऐगरिपा स्टारके, प्लासीडस तथा सैफाइरल के नाम ज्योतिष विज्ञान जगत में बड़े ही आदर सहित लिए जाते हैं। आदरणीय सैफाइटल तो भारतीय ज्योतिष में निपुण थे । इन माननीय विद्वानों की खोज एवं अथक प्रयत्नों के कारण पश्चिमी देशों में ज्योतिष शास्त्र के प्रति पूरी-पूरी श्रद्धा है तथा आज समस्त विश्व में ज्योतिष शास्त्र का निरन्तर प्रसार हो रहा है। 

अमरीका के कई-एक विश्वविद्यालयों में ज्योतिष विज्ञान का पाठ्यक्रम इसका प्रमाण कहा जा सकता है। न्यूयार्क की ज्योतिष खोज संस्था (Astrological Research Association of New york) ज्योतिष विज्ञान के प्रसार में बड़ा योगदान कर रही है। जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड, हालैंड, फ्रांस आदि में ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई के केन्द्र स्थापित हो चुके हैं। मलाया की 'The Malayan Astrological Society'; कैनेडा जाज़ में खोज केन्द्र तथा श्रीलंका के Astrological Research Institute Matale ज्योतिष शास्त्र की खोज व प्रसार में जुटे हुए हैं।

सुहृदय पाठकजन! ज्योतिष विज्ञान का प्रसार चाहे भारत से हुआ अथवा यूनान, मिस्र आदि से परन्तु इन तथ्यों के आधार पर यह बात तो सुस्पष्ट है कि समस्त विश्व को ज्योतिष शास्त्र में अपार श्रद्धा व विश्वास है।

आधुनिक युग तर्क का युग भी कहा जाता है। किसी भी शास्त्र विज्ञान, ज्ञान तथा विद्या में तर्क के बिना विश्वास हो नहीं सकता। ज्योतिष विज्ञान में प्राचीन काल से आज तक मनुष्य जाति की जो श्रद्धा और विश्वास बना हुआ है, उसका आधार केवल तर्क ही है। तर्कसंगत होने पर भी कई व्यक्ति आज भी हैं जो ग्रहों के प्रभाव को निर्मूल मानते हैं। प्रिय पाठकगण ! इस सम्बन्ध में भी विचार करना अत्यावश्यक है।

क्या सचमुच ही ग्रह प्रभाव है? पिछले दिनों यह पढ़ने में आया है कि दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने ग्रहों के प्रभाव को परख करके यह कहा है कि ग्रह मनुष्य य-जीवन को प्रभावित नहीं करते। यह निराधार तथा तर्क-रहित है। क्या सूर्य की गर्मी जून, जुलाई में शरीर में तड़फ पैदा नहीं करती? क्या सर्दियों में शरीर ठण्ड अनुभव नहीं करता? यह किसके प्रभाव से होता है। सुहृदय पाठक वृन्द! इसको और स्पष्ट से यह सिद्ध हो जाएगा कि समस्त ग्रह मनुष्य जीवन पर प्रभाव डालते हैं? यह तो सर्वसिद्ध हो चुका है कि सूर्य के आस-पास समस्त ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। यह सभी ग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर विशेष प्राकृतिक नियमानुसार सूर्य के आस-पास घूमते हैं। इनमें प्रत्येक ग्रह की अपनी-अपनी अलग-अलग आकर्षण शक्ति है, जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा, पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के प्रभावाधीन खींचा हुआ पृथ्वी के निकट-घूम रहा है। 

सूर्य की आकर्षण शक्ति से खींचे हुए चन्द्रमा एवं पृथ्वी सूर्य की परक्रिमा कर रहे हैं। इसी प्रकार ग्रहों के उपग्रह हैं जो उन ग्रहों का आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर सूर्य के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। पृथ्वी से लाखों मील दूर होते हुए भी जब पृथ्वी पर सूर्य की आकर्षण शक्ति का प्रभाव पड़ता है, तो फिर यह प्रभाव मनुष्यों, जीवों तथा पशु-पक्षिओं पर पड़ना निश्चित है। तभी तो जब सूर्य विशेष राशियों में होता है तब गर्मी, सर्दी, वसन्त, पतझड़ तथा वर्षा ऋतु का परिवर्तन होता है। इन ऋतुओं का क्या मनुष्य जीवन पर प्रभाव नहीं पड़ता?

 

सूर्य को व्यक्ति की आत्मा कहा गया है। सूर्य शक्ति का स्वामी है। सूर्य से ही मनुष्य को शक्ति तथा जीवन मिलता है। मनुष्य जीवन सूर्य के साथ है। सूर्य की अनुपस्थिति में जीवन जीना अत्यन्त कठिन है। जान है तो जहान है। सूर्य जान 'Life Force' का कारक है। सूर्य की किरणें प्रातः काल तिरछी, दोपहर को सीधी एवं रात्रि में इन किरणों में अभाव होता है। इसी प्रकार की विशेष राशियों में (जैसे वृष व मिथुन राशियों में) सूर्य की किरणें सीधी (वृश्चिक व धनु राशि में) तिरछी होती हैं। फलतः उस समय गर्मी तथा सर्दी की ऋतु होती है। 

सूर्य की किरणों के प्रभावस्वरूप ही चिकित्सा की जा रही है, सौर चूल्हे एवं सौर विद्युत् तैयार की जा रही है। क्या यह सूर्य के पृथ्वी पर प्रभाव का चमत्कार नहीं, इसी प्रकार जिस समय प्रातः दोपहर, सन्ध्या रात्रि तथा जिस राशि विशेष में बालक का जन्म होता है; समय, राशि एवं ग्रह अनुसार बालक के स्वभाव, चरित्र तथा जीवन पर प्रभाव पड़ना निश्चित है। क्योंकि समस्त ग्रह आकर्षण की कड़ी में गतिशील हैं, इस प्रकार समस्त ग्रहों का प्रभाव बालक पर अवश्यमेव पड़ेगा। यह सर्वविदित है कि मानव शरीर पांच तत्त्वों से निर्मित है तथा मरणोपरान्त इन्हीं में विलीन हो जाता है। 

परम पिता परमात्मा ने दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को इन पांचों तत्त्वों का भिन्न-भिन्न अनुपात प्रदान किया है। किसी में किसी तत्त्व की प्रधानता है तथा किसी में किसी अन्य तत्त्व की कमी है और किसी में किसी अन्य तत्त्व की समस्त ग्रहों का प्रभाव इन तत्त्वों की भिन्नता के अनुसार होता है। तभी तो दो सगे भाईयों का स्वभाव, चरित्र एवं जीवन एक जैसा नहीं होता। क्या यह ग्रहों के प्रभाव का फल नहीं है?



चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत निकट है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने (अमावस, पूर्णिमा) समुद्र की लहरों पर प्रत्यक्ष प्रभाव देखा गया है। पूर्णिमा को चन्द्रमा के प्रभाववश ज्वारभाटा इसका प्रमाण है, तो फिर मनुष्य पर इसका प्रभाव क्यों कर नहीं पड़ सकता। अब तो यह प्रमाणित हो चुका है कि चन्द्रमा का प्रभाव मनुष्य के चित्त, मन पर अवश्य पड़ता है। पागलों, मिरगी के रोगियों पर यह प्रभाव प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।

इसलिए तो सनक, पागलपन को लूनेसी (Lunacy), पागल (Luna tic) लूनाटिक कहा जाता है। लूना (Luna) चन्द्रमा को कहते हैं। पागलखाने का नाम भी (Lunatic Asylum) लूनाटिक असाइलम लिया जाता है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने इस व्याधि का नाम वैसे ही नहीं रख दिया। इससे स्पष्ट संकेत मिलते है। कि चिकित्सा वैज्ञानिक भी चन्द्रमा के प्रभाव को मानते हैं। कई मिसालें इस सम्बन्ध में दी जा सकती हैं। मानवीय बुद्धि का नाम सीधा बुद्ध ग्रह से मेल खाता है। क्योंकि बुद्ध ग्रह बुद्धि कारक है।

साभार

डॉ हरभजन सिंह मान

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